नई दिल्ली
सरकार ने मंगलवार (19 सितंबर) को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने के लिए संविधान का 128वां संशोधन विधेयक, 2023 पेश किया गया। यह कोटा एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का कानून 90 के दशक के मध्य से ही लटका हुआ था। संसद में महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने का सबसे पहला प्रयास एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार ने किया था। देवगौड़ा सरकार में कानून राज्य मंत्री रमाकांत डी खलप ने 12 सितंबर, 1996 को संसद में महिला आरक्षण बिल पेश किया था।हालांकि संयुक्त मोर्चा सरकार की इस कोशिश से बहुत पहले संविधान में दो महत्वपूर्ण संशोधन कर ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू कर दी गई थी।
संविधान का 73वां और 74वां संशोधन
प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की नेतृत्व वाली सरकार ने संविधान में 73वां और 74वां संशोधन किया था। इस अमेंडमेंट एक्ट के जरिए पंचायती राज संस्थाओं की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गई थीं। यही व्यवस्था शहरी स्थानीय निकायों में भी की गई थी।संविधान का 73वां और 74वां संशोधन अधिनियम, दोनों दिसंबर 1992 में संसद द्वारा पारित किया गया था। दोनों संशोधन क्रमश: 24 अप्रैल, 1993 और 1 जून, 1993 को लागू हो गया था।
संशोधन की पृष्ठभूमि
1957 में बलवंतराय मेहता समिति ने सिफारिश की थी कि ग्राम स्तर पर एक एजेंसी स्थापित की जानी चाहिए, जो ग्राम समुदाय के हितों का प्रतिनिधित्व करेगी और सरकार के विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाएगी। समिति ने निर्वाचित स्थानीय निकायों की शीघ्र स्थापना और उन्हें आवश्यक संसाधनों, शक्ति और अधिकार के हस्तांतरण का सुझाव दिया।
1977 में अशोक मेहता समिति ने पंचायती राज की अवधारणा को एक राजनीतिक संस्था में बदलने का सुझाव दिया। समिति ने पाया कि पंचायती राज संस्थाएं अपने वादे को पूरा करने में विफल रही हैं और सिस्टम को मजबूत करने के उपाय सुझाए। समिति ने संस्था की कमज़ोरी के कारणों के रूप में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और संस्था की भूमिका अस्पष्टता होने की पहचान की।
कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश ने अशोक मेहता समिति की रिपोर्ट के आधार पर नए कानून पारित किए। 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के अंत में संविधान के 64वें संशोधन विधेयक के माध्यम से देश भर में पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने का प्रयास किया गया था, लेकिन यह प्रयास राज्यसभा में विफल हो गया।
संविधान संशोधन के बाद क्या-क्या बदल गया?
73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम ने क्रमशः ग्रामीण और शहरी भारत में स्थानीय स्वशासन की स्थापना की। संशोधनों के बाद पंचायतों और नगर पालिकाओं को ‘स्वशासन संस्था’ कहा गया।ग्राम सभा गांवों में लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूल इकाई बन गई। पंचायत या नगर पालिका को मतदाताओं के प्रति जवाबदेह बनाया गया।शासन के सभी तीन स्तरों – गांव के स्तर पर ग्राम पंचायत, मध्यवर्ती स्तर पर तालुका या ब्लॉक पंचायत और जिला स्तर पर जिला पंचायत या जिला परिषद के लिए प्रत्यक्ष चुनाव शुरू किए गए।
महिलाओं के लिए आरक्षित कुल 1/3 सीटों में से 33% अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी स्तरों पर पदाधिकारियों और अध्यक्षों की एक तिहाई सीटें भी महिलाओं के लिए आरक्षित हो गईं।प्रत्येक निकाय के लिए पांच साल का कार्यकाल निर्धारित किया गया था। निकाय विघटित (भंग) होने की स्थिति में 6 माह के अन्दर चुनाव कराना अनिवार्य कर दिया गया।
इन चुनावों के लिए प्रत्येक राज्य में एक राज्य चुनाव आयोग भी बनाया गया। अनुच्छेद 243जी के तहत, पंचायतों को कृषि, भूमि, सिंचाई, पशुपालन, मत्स्य पालन, कुटीर उद्योग और पेयजल सहित ग्यारहवीं अनुसूची के विषयों पर आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजना तैयार करने का काम सौंप दिया गया।74वें संशोधन में पंचायतों और नगर पालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं को मजबूती देने के लिए जिला योजना समितियों की स्थापना का भी प्रावधान किया गया।