कैसे फिर सुलग उठा मणिपुर? आंकड़ों में देखें 150 दिन की हिंसा में अबतक मची कितनी तबाही

नई दिल्ली,

इसी साल 3 मई को मणिपुर के बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों की सीमा से लगे इलाकों में आदिवासी एकजुटता मार्च के दौरान राज्य में पहली झड़प हुई और उसके बाद हालात कैसे बिगड़ते चले गए, ये किसी से छिपा नहीं है. इस हिंसा को लगभग पांच महीने हो गए हैं लेकिन रुक-रुक कर होने वाली हिंसा अभी भी जारी है. मैतेई और कुकी समुदायों के बीच उभरे जातीय संघर्ष से राज्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है. अभी तक 175 से अधिक लोगों की जान इस हिंसा में जा चुकी है और 1100 से अधिक लोग घायल हुए हैं जबकि 30 से अधिक लोग लापता हैं.

पूरा राज्य अशांत क्षेत्र घोषित
मणिपुर सरकार ने मौजूदा कानून व्यवस्था की स्थिति के मद्देनजर बुधवार को पूरे राज्य को “अशांत क्षेत्र” घोषित कर दिया. राज्य सरकार की अधिसूचना के अनुसार, 19 विशिष्ट पुलिस थाना क्षेत्रों को छोड़कर पूरे राज्य को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत “अशांत क्षेत्र” घोषित किया गया है. सरकार का मानना है कि विभिन्न चरमपंथी/विद्रोही समूहों की हिंसक गतिविधियों के कारण पूरे मणिपुर राज्य में नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है.

फिर से कैसे भड़की हिंसा
राज्य के दो छात्र फिजाम हेमजीत (20) और हिजाम लिनथोइनगांबी (17) जुलाई में लापता हो गए थे और तभी से उनकी तलाश जारी थी. कुछ दिन पहले दोनों की तस्वीर सामने आई तो हंगामा मच गया. तस्वीरों में छात्रों को जमीन पर बैठा दिखाया गया है, जबकि उनके पीछे 2 हथियारबंद लोगों को देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर वायरल एक अन्य तस्वीर में दोनों छात्रों के शव देखे जा सकते हैं. तस्वीरें सामने आने के बाद ही हिंसा का दौर फिर से शुरू हो गया.प्रदर्शनकारियों की रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) के साथ भी झड़प हुई, जिसमें कम से कम 45 प्रदर्शनकारी घायल हो गए. काबू पाने के लिए आंसू गैस के कई गोले छोड़ने पड़े.

भीड़ ने उपायुक्त कार्यालय में तोड़फोड़ की और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया.थौबल जिले के खोंगजाम में प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यालय में भी आग लगा दी. केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों ने हालात पर कड़ी मशक्कत के बाद काबू पाया. इंफाल ईस्ट और इंफाल वेस्ट जिलों में सुरक्षाबलों के हिंसक प्रदर्शनों से निपटने के बीच कर्फ्यू फिर से लगा दिया गया है.

तबाही के आंकड़े
मणिपुर में मई से भड़की हिंसा में अभी तक मानवीय से लेकर संपत्ति तक का भारी नुकसान हो चुका है. 15 सितंबर को आईजीपी (ऑपरेशंस) आईके मुइवा ने बताया था कि मणिपुर में जातीय संघर्ष में कम से कम 175 लोग मारे गए और 1,108 अन्य घायल हो गए हैं. उन्होंने बताया कि हिंसा के इस दौर में कुल मिलाकर 4,786 घरों को आग लगा दी गई और 386 धार्मिक स्थलों को तोड़ दिया गया जिनमें से 254 चर्च और 132 मंदिर शामिल हैं.

इसके अलावा जो हथियार “खो” गए हैं, उनमें से 1,359 आग्नेयास्त्र (फायरआर्म्स) शामिल हैं और 15,050 गोला-बारूद बरामद किए गए हैं. हिंसा के दौरान कथित तौर पर दंगाइयों ने पुलिस के बड़ी संख्या में हथियार और गोला-बारूद लूट लिए थे. मुइवा ने कहा कि कम से कम 5,172 आगजनी के मामले दर्ज किए गए थे.

325 लोगों की गिरफ्तारी
15 सितंबर को हीआईजीपी (प्रशासन) के जयंत ने बताया कि मरने वाले 175 लोगों में से नौ अभी भी अज्ञात हैं. उनहत्तर शवों पर दावा किया गया है जबकि 96 शव लावारिस हैं. रिम्स और जेएनआईएमएस (इम्फाल के अस्पताल) में क्रमशः 28 और 26 शव रखे गए हैं, जबकि 42 शव चूराचांदपुर अस्पताल में हैं. उन्होंने बताया कि कुल 9,332 मामले दर्ज किये गये और 325 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

3 मई को हुई थी हिंसा की शुरुआत
पूर्वोत्तर राज्य में 3 मई को जातीय हिंसा भड़क उठी थी, जब मेतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था. मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

3 मई को हुई झड़पों के बाद मणिपुर सुलग उठा था, जिसके परिणामस्वरूप यहां कर्फ्यू लगा दिया गया और फिर मोबाइल इंटरनेट पर रोक लगा दी गई. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जल्द ही भारतीय सेना, असम राइफल्स, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और रैपिड एक्शन फोर्स को तैनात किया गया लेकिन फिर भी हालात पर काबू पाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इसके बाद कुकी-ज़ोमी समुदाय की दो महिलाओं को पुरुषों की भीड़ द्वारा नग्न घुमाए जाने और उनके साथ यौन उत्पीड़न किए जाने का एक वीडियो जुलाई वायरल हो गया तो हिंसा फिर भड़क गई. मणिपुर हिंसा की वजह से ही संसद का मॉनसून सत्र काफी हंगामेदार रहा था.

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