मरते वक्त दी गई गवाही पर एक आरोपी बरी तो दूसरे को दोषी नहीं ठहरा सकते, SC का बड़ा फैसला

नई दिल्ली

मरते वक्त दी गई गवाही यानी Dying Declaration को काफी अहम माना जाता है। लेकिन क्या एक ही केस में किसी एक आरोपी को लेकर डाइंग डेक्लरेशन को विश्वसनीय और दूसरे आरोपी के मामले में भरोसे लायक नहीं माना जा सकता है? क्या डाइंग डेक्लरेशन के आधार पर एक ही मामले में किसी आरोपी को बरी और दूसरे आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में कहा है कि एक ही केस में डाइंग डेक्लेशन को खारिज करके किसी आरोपी को बरी तो दूसरे आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने इस मामले में हाई कोर्ट से दोषी ठहराए गए शख्स को बरी कर दिया।

क्या है मामला?
मामला दहेज हत्या से जुड़ा है। महिला ने मरते वक्त पति और सार-ससुर के खिलाफ बयान दिया था। 1999 में निचली अदालत ने पति को दोषी ठहराते हुए 7 साल कैद की सजा सुनाई लेकिन उसके माता-पिता को बरी कर दिया। मामला हाई कोर्ट पहुंचा। पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले पर मुहर लगाते हुए पति की सजा और सास-ससुर के बरी होने को बरकरार रखा। हाई कोर्ट के फैसले को पति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां से वह आखिरकार बरी हो गया।

परिस्थितियों को संपूर्णता में देखें तो ये नहीं कहा जा सकता कि डाइंग डेक्लरेशन (मृत्युपूर्व बयान) संदेह से परे होते हैं। लेकिन विचार के लिहाज से सबसे अहम पहलू ये है कि हाई कोर्ट ने खुद मृतका के ससुर जोरा सिंह के संदर्भ में डाइंग डेक्लरेशन पर विश्वास नहीं किया। हमें समझ में नहीं आता कि आखिर वही डाइंग डेक्लरेशन अपीलकर्ता को दोषी ठहराने का आधार कैसे हो सकता है जबकि उसी डाइंग डेक्लरेशन को किसी दूसरे आरोपी को लेकर अविश्वसनीय माना गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
इस मामले में जस्टिस बीआर गवई, पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र की बेंच ने बुधवार को फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के मरते वक्त दिए बयान पर सिर्फ उसके पति को सजा देते वक्त भरोसा किया गया जबकि सास-ससुर के खिलाफ उसके आरोपों पर यकीन नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा, ‘परिस्थितियों को संपूर्णता में देखें तो ये नहीं कहा जा सकता कि डाइंग डेक्लरेशन (मृत्युपूर्व बयान) संदेह से परे होते हैं। लेकिन विचार के लिहाज से सबसे अहम पहलू ये है कि हाई कोर्ट ने खुद मृतका के ससुर जोरा सिंह के संदर्भ में डाइंग डेक्लरेशन पर विश्वास नहीं किया। हमें समझ में नहीं आता कि आखिर वही डाइंग डेक्लरेशन अपीलकर्ता को दोषी ठहराने का आधार कैसे हो सकता है जबकि उसी डाइंग डेक्लरेशन को किसी दूसरे आरोपी को लेकर अविश्वसनीय माना गया है।’सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में मृत महिला के मृत्युपूर्व दिए बयान पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता और इसलिए पति फुलेल सिंह को बरी किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए डाइंग डेक्लरेशन को किया खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में टिप्पणी की कि अगर किसी मामले में डाइंग डेक्लरेशन के आधार पर सजा दी जाती है तो अदालत को यह बताना ही चाहिए डाइंग डेक्लरेशन भरोसे के योग्य है, विश्वसनीय है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने डाइंग डेक्लरेशन को विश्वसनीय नहीं मानते हुए कहा कि महिला ने अपनी गवाही में ये भी कहा था कि पति ने उसके ऊपर पानी फेंककर आग को बुझाया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के विरोधाभासों और अनिरंतरता के दोखते हुए अभियोजन पक्ष अपने दावों को संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा। लिहाजा पति को सभी आरोपों से बरी किया जाता है।

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