पाकिस्तान लौटते ही नवाज शरीफ ने की भारत से रिश्ते बेहतर बनाने की पैरवी, जानिए क्या है इसकी वजह

नई दिल्ली

चार साल के लंदन प्रवास से लौटे पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ फिर से सत्ता में लौटने को लालायित हैं। उनके लिए मुफीद बात ये है कि सेना उनको समर्थन कर रही है। लेकिन उन्होंने अपने पहले भाषण में जो बातें कहीं वो हैरत में डालने वाली हैं। शरीफ ने भारत समेत तमाम पड़ोसियों से रिश्ते बेहतर बनाने की पैरवी की। उनका ये पैंतरा हैरत में डालने वाला है। ये चीजें ना तो पाकिस्तान की जनता और ना ही सेना को रास आती हैं।

शरीफ ने अपने भाषण में भारत के चंद्रयान मिशन की सफलता का जिक्र किया। उनका कहना था कि वो चांद पर पहुंच गए और हम दूसरे मुल्कों से कुछ अरब डॉलर्स के लिए मिन्नतें कर रहे हैं। उन्होंने बांग्लादेश का भी उदाहरण दिया। वो कहते हैं कि 1971 में आजादी हासिल करने वाला बांग्लादेश भी पाकिस्तान से आर्थिक मामलों में कहीं ज्यादा बेहतर है। हालांकि शरीफ की छवि आर्थिक मोर्चों पर कुछ बेहतर करने वाले हुक्मरान की रही है। लेकिन उनकी ये बात भारत सरकार पर कितना असर डालेगी इसमें बड़ा संदेह है, क्योंकि नई दिल्ली हमेशा से पाकिस्तान को सशंकित नजरिये से देखता आया है।

वैसे नवाज शरीफ को सत्ता से इसी वजह से हटना पड़ा था। वो 2014 में पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। 2015 में कश्मीर के जिक्र के बगैर भारत से समझौता किया। उनकी ये बातें पाक की सेना को रास नहीं आईं। उसके बाद सेना से उनकी तनातनी इतनी ज्यादा बढ़ी कि 2017 में शरीफ सत्ता से बेदखल कर दिए गए। हालांकि अब हालात पहले से अलग हैं। शरीफ को हटाने के बाद सेना ने इमरान खान पर दांव खेला। लेकिन रिश्ते इतने ज्यादा बिगड़े कि वो सेना की सरेआम फजीहत करने लग पड़े। फिलहाल इमरान जेल में हैं और शरीफ सेना का दामन थामकर पाकिस्तान की धरती पर फिर से लौट आए हैं।

शरीफ के पाकिस्तान लौटने से पहले सेना की पहल पर यूएई और सऊदी अरब से आर्थिक मोर्चे पर बात होने लगी है। खास बात है कि ये दोनों देश फिलहाल भारत के रणनीतिक साझेदार हैं। शरीफ इन दोनों मुल्कों के खासे करीब रहे हैं। वो पाकिस्तान लौटने से पहले दोनों देशों में कुछ देर के लिए रुके। तो क्या माना जाए कि शरीफ का भारत प्रेम का राग इन दोनों देशों के दबाव में था। क्या खाड़ी के देश रावलपिंडी और इस्लामाबाद को एक पेज पर ले आए हैं,जिसमें भारत से दोस्ती की शर्त शामिल हैं। लेकिन इन सारी बातों का जवाब आने वाले कुछ हफ्तों में पाकिस्तान के राजनीतिक घटनाक्रम देंगे।

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