लोकसभा चुनाव 2024: बिहार एनडीए में चक्रव्यूह भेदने जैसा है सीटों का बंटवारा, हर डेग पर है पेच!

पटना

लोकसभा चुनाव 2024 में अभी वक्त है। बिहार की 40 लोकसभा सीटों के लिए I.N.D.I.A की तरह N.D.A में भी सियासी दंगल होने की संभावना है। गठबंधन में शामिल छोटे दल बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। एनडीए के सामने छोटे दलों की महत्वाकांक्षा पूरी करने की चुनौती है। खासकर चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी की। एनडीए में बिहार की हाजीपुर सीट पर मामला सुलझा भी नहीं कि जमुई लोकसभा सीट को लेकर विवाद शुरू हो गया है। हाजीपुर सीट पर चिराग पासवान दावा कर रहे हैं, तो दूसरी ओर जीतन राम मांझी जमुई लोकसभा पर अपनी पार्टी का दावा ठोक कर बीजेपी के साथ चिराग का टेंशन बढ़ दिए हैं। HAM प्रमुख तर्कों के साथ इस सीट पर दावा ठोक रहे हैं। मांझी का कहना है कि जमुई सीट भोला मांझी की सीट रही है। वे यहां से सांसद थे। ऐसे में यह सीट मुसहरों और भुइयां की है। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा का कहना है कि एनडीए में सीट बंटवारे पर बात होगी तो पार्टी अपनी बात रखेगी कि भोला मांझी की विरासत को कायम रखा जाए।

बढ़ सकती है खींचतान
माना जा रहा है कि अगर जीतन राम मांझी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए के अंदर अपनी मांग को रखते हैं तो खींचतान हो सकती है। दरअसल, इस सीट से एलजेपी ( रामविलास ) के नेता चिराग पासवान सांसद है। चिराग पासवान 2014 और 2019 में यहां से एमपी चुने गए थे। संभव है कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी यहीं से लड़ें। ऐसे में एलजेपी (R ) किसी भी कीमत पर इस सीट को नहीं छोड़ेगी। हालांकि चिराग पासवान पहले ही साफ कर चुके हैं कि चुनाव के वक्त नेता सीट बदलते रहते हैं। ऐसा बहुत होता है। किस सीट से कौन चुनाव लड़ेगा, कौन सा सीट किसे देना है, यह काम एनडीए नेताओं का है। अपनी मांग रखना गलत नहीं है। बता दें कि भोला मांझी सीपीआई के नेता थे। 1971 में जमुई सीट से लोकभा पहुंचे थे।

बताया जा रहा है कि जीतन राम मांझी की नजर गया की एक लोकसभा सीट के अलावा जमुई पर नजर है। संभव है कि NDA पर अभी से प्रेशर बनाने के लिए जमुई वाला दांव चल दिए हैं। ये भी हो सकता है कि चाचा-भतीजे की लड़ाई का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। इन सब के बीच सियासी पंडितों का मानना है कि एनडीए में सीटों का बंटवारा बहुत मुश्किल है। इसको समझने के लिए आपको 2019 के घटनाक्रम को याद करना होगा। उस वक्त नीतीश कुमार की जेडीयू भी एनडीए में थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल के बाद ही सीट बंटवारे पर फैसला हो सका था। इस बार तो बीजेपी के लिए यह एक बड़ी उलझन है। हाजीपुर सीट के लिए चाचा-भतीजा यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान आमने-सामने हैं। दूसरी ओर मांझी ने जमुई वाला दांव चलकर अभी से ही एनडीए की उलझन बढ़ा दी है।

ऐसा नहीं है कि जीतन राम मांझी की मांग बहुत हैरान करने वाली है। रामविलास पासवान जब जीवित थे, तब भी तो उनके और मांझी के बीच दलीतों के नेता होनों के मुद्दे पर खींचतान चल रही थी। एनडीए में रहकर भी दोनों एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी करते थे।

कुशवाहा भी दे सकते हैं BJP को टेंशन
जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और पशुपति पारस के अलावा उपेंद्र कुशवाहा भी बीजेपी का टेंशन बढ़ा सकते हैं। उपेंद्र कुशवाहा कुछ दिन पहले ही जेडीयू से अलग होकर एनडीए में शामिल हुए हैं। 2014 में उपेंद्र कुशवाहा रोहतास जिले के काराकाट से सांसद थे। हालांकि 2019 में चुनाव हार गए थे। काराकाट में इस वक्त महागठबंधन बहुत मजबूत है। यह जेडीयू की सीटिंग सीट है। काराकाट में आरजेडी और सीपीआईएमएल की भी अच्छी मौजूदगी है। कहा जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा अपने लिए थोड़ी सुरक्षित सीट की मांग बीजेपी से कर सकते हैं। चर्चा है कि केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय वाली सीट उजियारपुर मांग सकते हैं, ऐसे में बीजेपी की टेंशन बढ़ सकती है।

सहयोगियों के लिए 10 सीट छोड़ेगी बीजेपी!
बताया जा रहा है कि बीजेपी अपने सहयोगियों के लिए 10 सीट छोड़ सकती है। 2014 लोकसभा चुनाव रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में थे। उस वक्त भी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू एनडीए के साथ नहीं थी। तब बीजेपी ने सहयोगियों के लिए 10 सीट छोड़ी थी। संभव है कि इस बार भी 10-12 सीट सहयोगियों के लिए छोड़ सकती है। लेकिन बिहार में मुद्दा ये नहीं है कि कौन सी पार्टी कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, मुद्दा ये बन सकता है कि कौन किस सीट से चुनाव लड़ेगा। यही मुद्दा बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।

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