झुलसती धरती पर पलेंगे आपके बच्चे… 1.5 डिग्री का स्तर 10 साल पहले पार, आगे भयानक गर्मी

मेलबर्न,

भारत में इस बार सर्दियां 15 दिन देरी से आईं. दिसंबर में जहां बर्फ जमने लगती थी. वहां जनवरी के अंत में बर्फबारी हुई. कैलिफोर्निया में बाढ़ आई पड़ी है. स्पेन में सूखा है. ये बढ़ते तापमान का नतीजा है. इंसान 2010 में ही धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा चुका है. इस समय तो यह 2 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच चुका है.

यह खुलासा हुआ है समुद्री स्पॉन्ज के केमिकल रिकॉर्ड्स की स्टडी करने के बाद. दुनियाभर के देशों ने 2050 तक तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोकने का दावा किया था. वो बेकार हो चुका है. इस बढ़े तापमान की वजह से ही दुनियाभर में खतरनाक मौसमी आपदाएं देखने को मिल रही हैं. अचानक बाढ़ आ जाती है. तूफान आ जाते हैं.

पिछला साल सबसे गर्म था. साल 2023 का हर महीना गर्मी का रिकॉर्ड तोड़ रहा था. वैज्ञानिक हैरान-परेशान थे. समझ नहीं आ रहा था कि कुछ तो है जो इतनी गर्मी पैदा कर रहा है. लेकिन खोजने पर मिल नहीं रहा था. यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के जियोकेमिस्ट मैल्कम मैक्लुलोच ने कहा तापमान में अंतर साफ तौर पर दिख रहा है.

सरकारें और नेता कुछ नहीं कर रहे सिवाय दावे और वादे के
मैल्कम ने कहा कि हमारे पास इस बात का सबूत ही नहीं है कि पूरी दुनिया तापमान घटाने पर जुटी है. किसी भी देश की सरकार या नेता क्यों न हों. सिर्फ अंतरराष्ट्रीय समिट में वादा और दावा करके चले आते हैं. लेकिन करते कुछ नहीं. यह सबसे ज्यादा भयावह स्थिति है. बढ़ते तापमान की स्टडी के लिए मैल्कम ने समुद्री स्पॉन्ज का परीक्षण किया.

समुद्री स्पॉन्ज रखता है हजारों साल के तापमान का रिकॉर्ड
समुद्री स्पॉन्ज एक तरह का प्राकृतिक थर्मामीटर होता है. यह इतिहास के गिरते बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड रखता है. समुद्री स्पॉन्ज में स्ट्रोंटियम और कैल्सियम का अलग-अलग अनुपात होता है. जो पानी के नीचे बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड रखता है. ये जीव बहुत धीमे-धीमे विकसित होते हैं. करीब 0.2 मिलिमीटर प्रति वर्ष. कुछ को पूरी तरह विकसित होने में 5 हजार साल लग जाता है.

समंदर में हर स्तर पर पहुंच रही है गर्मी, यानी मुसीबत वहीं से
मैल्कम और उनकी टीम ने जिस स्पॉन्ज का इस्तेमाल किया वह कैरिबियन समंदर में 197 फीट की गहराई में मौजूद Ceratoporella nicholsoni है. यह गहराई ऐसी है जहां पर वायुमंडलीय गर्मी का असर होता है. भूकंपीय गतिविधियों का असर होता है. औसत तापमान का असर होता है. यह इलाका वैश्विक तापमान नापने के लिए सबसे सही होता है.

164 साल से इंसान धरती का तापमान बढ़ाता जा रहा है
मैल्कम ने आधा दर्जन स्पॉन्ज की जांच की जो करीब 300 से 400 साल पुराने हैं. यानी वैज्ञानिकों को 1700 से अब तक का तापमान मिला. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट साइंटिस्ट जियोर्जी फाल्स्टर ने बताया कि नई स्टडी में खुलासा हुआ कि इंसानों की वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग की शुरूआत 1860 के आसपास शुरू हो चुकी थी.

अब 2 डिग्री ज्यादा तापमान का इंतजार करिए… पहुंच ही गया है
जियोर्जी ने बताया कि 2015 में जब पेरिस एग्रीमेंट हुआ. इंसान तभी 1.5 डिग्री सेल्सियस का लेवल पार हो चुका था. 2020 के दशक के अंत तक यह 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. मैल्कम कहते हैं कि लगातार दुनिया में जो अजीबो-गरीब मौसम देखने को मिल रहा है, वो हैरान करता है. जैसे यूरोप की गर्मी. ध्रुवीय इलाकों में बर्फ हो ही नहीं रही है. पिघल रही है. अब मैल्कम चाहते हैं कि वो अन्य समंदर में स्पॉन्ज की स्टडी करना चाहते हैं ताकि पूरी दुनिया के सटीक डेटा निकल सके.

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