‘नीतीश का दर्द न जाने कोय’, मुख्यमंत्री पर आंखें तरेर रहे एनडीए के साथी और जेडीयू नेता, जानिए

पटना

भाजपा के साथ जाकर नीतीश कुमार फंस गए लगते हैं। अधिकारी उनकी बात नहीं सुन रहे। जेडीयू के इतिहास में पहली बार विधायक नीतीश के फैसलों पर सवाल उठा रहे। कुछ भी बोल जाने से परहेज़ नहीं कर रहे। सहयोगी भाजपा के नेता अपनी पार्टी के सीएम का संकल्प दोहरा रहे। सहयोगी हम (से) के संरक्षक पूर्व सीएम जीतन राम मांझी शराबबंदी कानून खत्म करने की बात कह रहे। यह सब तब हो रहा है, जब जोड़-जुगाड़ से नीतीश ने किसी तरह हाल ही अपनी सरकार बचाई है। विपक्षी अपनी ताकत का उन्हें एहसास करा चुके हैं।

मंत्रिमंडल विस्तार टलता रहा है
नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ने और एनडीए की सरकार बनने के महीना बीतने को आया। सीएम समेत पांच लोग ही अभी तक सरकार चला रहे हैं। सीएम के अलावा भाजपा कोटे से दो डेप्युटी सीएम बनाए गए तो जेडीयू कोटे से दो लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली। मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा ही नहीं हो रही। कयास लगा रहे कि अब होगा, तब होगा। कभी बात चली कि भाजपा ने अपने मंत्रियों की सूची नहीं सौंपी है, इसलिए विलंब हो रहा है। कभी यह भी बात आई कि नीतीश जेडीयू कोटे के पुराने चेहरों को ही रिपीट करना चाहते हैं, जो उनके कई विधायकों को पसंद नहीं। मार्च के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री का बिहार दौरा प्रस्तावित है। मार्च का पहला पखवाड़ा बीतते ही लोकसभा चुनाव की घोषणा होने की संभावना है। मंत्रिमंडल विस्तार में विलंब से भाजपा और जेडीयू के विधायकों में नाराजगी स्वाभाविक है। पहले से ही जेडीयू के कई विधायक नीतीश से नाराज चल रहे हैं।

टिकट की चर्चा भी नहीं हो रही
एनडीए यानी जेडीयू और बीजेपी के कई विधायक लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं। टिकट बंटवारे पर तो कोई चर्चा ही नहीं हो रही। जेडीयू के सिटिंग सांसद भी संशय में हैं। कई विधायक तो अभी से ही लोकसभा चुनाव के लिए हुड़दंग मचाए हुए हैं। अपने-अपने अंदाज में वे नीतीश को हड़का भी रहे हैं। जेडीयू के नाराज विधायकों में बीमा भारती, डॉ. संजीव कुमार, गोपाल मंडल जैसे नाम पहले से ही चर्चा में हैं। वे अपने गुस्से का इजहार करते रहे हैं। इनके साथ मंत्री बनने की कतार में खड़े विधायकों की नाराजगी का भी खतरा है। इतना तो तय है कि नीतीश के सामने भारी द्वंद्व की स्थिति है। किसे खुश करें और किसे नाराज, उनकी समझ में नहीं आ रहा।

NDA को सता रहा टूट का भय
मंत्रिमंडल विस्तार में विलंब की मूल वजह बीजेपी और जेडीयू को अपने विधायकों की नाराजगी से बचना है। दोनों ही दलों में उन्होंने मंत्री बनने की उम्मीद पाल रखी है, उनमें किसी का सपना टूटने का खामियाजा एनडीए को न भोगना पड़ जाए, यह सबसे बड़ा डर है। लोकसभा चुनाव में एनडीए कोई बखेड़ा नहीं चाहता है। मिशन 40 पर भाजपा काम कर रही है। नीतीश को साथ लाने का भाजपा का मकसद भी यही था। पिछली बार नीतीश के साथ रहने से भाजपा ने 39 सीटों पर कामयाबी हासिल कर ली थी। जेडीयू की एकजुटता इसमें सबसे अधिक मददगार रही। इस बार जेडीयू आंतरिक झमेलों से उबर नहीं पा रहा। हालांकि आरजेडी के साथ नीतीश जब गए थे, तब भी इसी तरह की स्थिति थी। हां, यह जरूर था कि विधायकों ने तब कोई नाराजगी नहीं दिखाई थी। अब तो जेडीयू विधायक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं। अफसरों की मनमानी के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। शिक्षा विभाग के इपर मुख्य सचिव केके पाठक जब नीतीश का आदेश नहीं मान रहे तो बाकी की स्थिति समझी जा सकती है। नीतीश कुमार पर चौकड़ी के बीच फंसे होने की बात कह रहे हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। अब तो लग रहा कि नीतीश का इकबाल ही खत्म हो गया है।

BJP को अपना ही सीएम पसंद
नीतीश की मुसीबत यह भी है कि भाजपा भी बड़े मीठे से उन्हें झटके देने में परहेज नहीं करती। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और नीतीश मंत्रिमंडल में डेप्युटी सीएम सम्राट चौधरी तो साथ रहने पर भी साफ कहते हैं कि भाजपा का संकल्प बिहार में हर हाल में अपना सीएम बनाना है। इसी से समझा जा सकता है कि नीतीश को भाजपा इस्तेमाल कर रही है या भाजपा का इस्तेमाल नीतीश कर रहे हैं। यह भी हो सकता है कि नीतीश ने भाजपा के साथ इसी तरह की शर्तें भी तय की हों। यह भी ध्यान रहे कि सम्राट चौधरी ने सिर पर जिस संकल्प के साथ पगड़ी बांध रखी है, वह अब भी नहीं उतरी है।

मांझी भी देख रहे CM का सपना
जीतन राम मांझी ने सीएम बनने का सपना देखना अब भी नहीं छोड़ा है। शुक्रवार को मांझी ने इसका इशारा भी कर दिया। उन्होंने लोगों से अपील की कि आप मुझे 20 विधायक दीजिए, मैं शराबबंदी खत्म कर दूंगा। उनके कहने का आशय स्पष्ट है। कानून में बदलाव सरकार के मुखिया के हाथ में होता है। मांझी मुखिया बनेंगे, तभी यह संभव है। यानी उन्होंने सीएम बनने का सपना अब तक नहीं छोड़ा है। हालांकि शराबबंदी कानून के खिलाफ जीतन राम मांझी का यह पहली बार आया बयान नहीं है। वे पहले भी ऐसा बोलते रहे हैं। वे कहते हैं कि गरीब थकान मिटाने के लिए दवा के रूप में थोड़ा शराब पीते हैं तो उन्हें जेल भेज दिया जाता है। बड़े लोग और अफसर रात में 10 बजे के बाद रोज शराब पीते हैं तो उन्हें कोई नहीं टोकता। बहरहाल, मांझी कितने खुले मन से नीतीश के साथ हैं, यह उनकी एक बात से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर वे नीतीश को वोट नहीं देते तो आज वे मुख्यमंत्री नहीं रहते। बहुमत परीक्षण में उनकी सरकार गिर जाती। उन्होंने मुझे मुख्यमंत्री बनाया था और अब मैंने उसका बदला साथ देकर चुका दिया है। उनका सारा हिसाब चुकता हो गया है।

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