मायावती के अकेले लड़ने पर पार्टी सांसदों को नहीं भरोसा? अलग-अलग दलों के मंच पर दिख रहे बसपा सांसद

लखनऊ:

अकेले दम पर चुनाव लड़कर गेमचेंजर होने का दावा कर रही बसपा के अपने सांसदों को ही इस पर यकीन नहीं है। वे अक्सर अलग-अलग दलों के मंच पर भी देखे जा रहे हैं। अमरोहा से सांसद दानिश अली बसपा से निलम्बित होने के बाद खुलकर कांग्रेस के साथ दिख रहे हैं। वह शनिवार को मुरादाबाद में कांग्रेस की भारत जोड़े न्याय यात्रा में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ नजर आए। वहीं, गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी को सपा अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी है, लेकिन अब तक बसपा ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। इनके अलावा कई और सांसद भी हैं, जो दूसरे दलों में अपना ठिकाना तलाश रहे हैं और उनके मंचों पर देखे जा सकते हैं।

सबको ठिकाने की तलाश
बसपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था। तब उसके 10 सांसद जीतकर आए थे। अब अगले लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादातर सांसद दूसरे दलों में ठिकाना तलाश रहे हैं। दानिश अली के बारे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस उनको अपना प्रत्याशी बनाना तय कर चुकी है। जौनपुर से विधायक श्याम सिंह यादव पहले भाजपा नेताओं अमित शाह और नितिन गड़करी की तारीफ कर चुके हैं। अब वह कांग्रेस और सपा दोनों के सम्पर्क में बताए जा रहे हैं। वह दिसम्बर 2022 में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो चुके हैं।

सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान सांसद हैं, लेकिन वहां पहले ही माजिद अली को लोकसभा प्रभारी घोषित किया जा चुका है। सूत्रों का कहना है कि वह अब दूसरा ठिकाना तलाश रहे हैं। मलूक नागर भी भाजपा के पिछले बजट की तारीफ करने के बाद चर्चा में हैं। गाजीपुर से अफजाल अंसारी को सपा अपना प्रत्याशी बना चुकी है। अम्बेडकर नगर से सांसद रितेश पांडेय की सपा से नजदीकी की चर्चाएं हैं। वह अपने क्षेत्र में अलग यात्रा भी निकाल चुके हैं। उसमें बसपा के न तो पदाधिकारी शामिल हुए थे और न पोस्टर-बैनरों का इस्तेमाल किया गया था।

लालगंज से सांसद संगीत आजाद भाजपा के सम्पर्क में बताई जा रही हैं। श्रवास्ती के सांसद राम शिरोमणि वर्मा के अपना दल और भाजपा से करीबी की चर्चा है। दानिश अली को छेाड़कर किसी भी सांसद पर बसपा ने अब तक किसी की सदस्यता खत्म नहीं की है और न कोई अन्य कार्रवाई की है।

क्या है सांसदों की बेचैनी की वजह?
बसपा 2019 में 10 सीटें जीती थीं। इन सभी सांसदों को मालूम है कि तब वे सपा और बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर लड़े थे। तब जीतकर आए थे। उनको 2014 का लोकसभा चुनाव भी याद है, जब बसपा अकेले लड़ी थी तो एक भी सांसद नहीं जिता सकी थी। पार्टी का ग्राफ 2012 से लगातार गिर रहा है। यही वजह है कि ये सभी सांसद अपने नए ठिकाने की तलाश में हैं। कई सांसदों की प्रतिक्रिया और गतिविधियों से यह बात जाहिर भी हो गई थी। अब जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है तो उन्होंने कसरत तेज कर दी है। पहले उनको कुछ उम्मीद थी कि बसपा शायद अंतिम समय में गठबंधन में शामिल हो जाए, लेकिन मायावती अब भी अकेले चुनाव लड़ने के फैसले पर अडिग हैं। उधर, सपा और कांग्रेस का गठबंधन आकार लेता दिख रहा है। ऐसे में यहां उनको मजबूत ठिकाना दिख रहा है।

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