कभी कांग्रेसी थे टीवी के ‘राम’, राजीव ने दिलाई थी सदस्यता, वीपी सिंह के खिलाफ किया था प्रचार

नई दिल्ली,

रामानंद सागर द्वारा निर्देशित मशहूर टीवी सीरियल ‘रामायण’ में राम की भूमिका निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल भाजपा के टिकट पर मेरठ से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने आज अपना नामांकन दाखिल कर दिया. लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय अरुण गोविल कांग्रेस में शामिल हुए थे और ‘रामायण’ में रावण की भूमिका निभाने वाले दिवंगत अभिनेता अरविंद त्रिवेदी ने भाजपा का दामन थामा था. हम आपको इस लेख में अरुण गोविल के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक किस्से बता रहे हैं…

‘रामायण’ में राम का किरदार निभाकर अरुण गोविल घर-घर में अपनी पहचान बना चुके थे. उनकी लोकप्रियता इतनी चरम पर पहुंच गई थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल होने की पेशकश की. बता दें कि राजीव गांधी ने ही अपने कार्यकाल के दौरान हिंदू भावनाओं का सम्मान करते हुए सबसे पहले बाबरी मस्जिद के ताले खुलवाए थे. साल 1988 में अरुण गोविल को राजीव गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता दिलवाई और उन्हें चुनाव लड़ने का ऑफर भी दिया था. लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था.

बोफोर्स दलाली कांड से शुरू होती है यह कहानी
कहानी शुरू होती है बोफोर्स दलाली कांड से. भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 24 मार्च, 1986 को 1437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था. इस सौदे के तहत एबी बोफोर्स को भारतीय थल सेना के लिए 155 एमएम की 400 होवित्जर तोपों की सप्लाई करनी थी. 16 अप्रैल, 1987 स्वीडिश रेडियो ने सनसनीखेज दावा किया कि एबी बोफोर्स कंपनी ने इस सौदे की बोली जीतने के लिए भारतीय राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारियों को पैसे खिलाए थे. स्वीडिश रेडियो के मुताबिक बोफोर्स ने सौदा हथियाने के लिए भारतीय नेताओं को 60 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी.

इस खुलासे के बाद भारत के राजनीतिक हलके में भूचाल आ गया था. बोफोर्स दलाली कांड ने राजीव गांधी की सरकार को देश में अलोक​प्रिय कर दिया था. खुद कांग्रेस के नेता बगावती हो गए थे. इनमें एक बड़ा नाम वीपी सिंह का भी था. उन्होंने राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा दे दिया था. तब अमिताभ बच्चन प्रयागराज (तब इलाहाबाद) के सांसद हुआ करते थे. बोफोर्स कांड में अपना नाम आने के बाद अमिताभ बच्चन ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इस कारण प्रयागराज सीट खाली हो गई थी.

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रयागराज संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में ताल ठोक दी. अब राजीव गांधी और कांग्रेस के लिए यह सीट नाक का सवाल बन गई थी. कांग्रेस ने वीपी सिंह के मुकाबले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री को मैदान में उतारा था. बोफोर्स कांड के बाद कांग्रेस छोड़ने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह की छवि भ्रष्टाचार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाले नेता के रूप में बनी थी. उनकी लोक​​प्रियता आसमान छू रही थी. प्रयागराज में उनके समर्थन में नारे लग रहे थे, ‘राजा नहीं फकीर है, भारत का तकदीर है…’ यहां हम आपको बताते चलें कि विश्वनाथ प्रताप सिंह मांडा राजपरिवार से आते थे.

जब राजीव गांधी को ‘राम’ की शरण में जाना पड़ा
कांग्रेस को वीपी सिंह से मुकाबला करने के लिए ‘राम’ की शरण में जाना पड़ा. राजीव गांधी ने सुनील शास्त्री के समर्थन में प्रचार करने के लिए अरुण गोविल को प्रयागराज के चुनावी रण में उतारा. उन्होंने वनवास काट रहे राम की वेशभूषा (भगवा वस्त्र) धारण कर सुनील शास्त्री के लिए प्रचार किया. वह रामायण सीरियल में जिस तरह की वेशभूषा में दिखते थे, उसी तरह कांग्रेस की चुनावी सभाओं में भी पहुंचते. अरुण गोविल को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ जुटती. नारा लगाते, ‘भगवान का नाम लो… कांग्रेस को वोट दो.’ लेकिन टीवी के राम की लोकप्रियता भी प्रयागराज में कांग्रेस को हार से नहीं बचा सकी.

इस सीट पर हुए उपचुनाव में वीपी सिंह ने सुनील शास्त्री को 1.10 लाख से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. बोफोर्स दलाली कांड के सामने आने के बाद राजीव गांधी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार की छवि इतनी धुमिल हो गई थी कि 1989 के आम चुनावों से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. उसे मात्र 197 सीटें प्राप्त हुईं. विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चा को 146 सीटें मिलीं. भाजपा के पास 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद. इन दोनों ने राष्ट्रीय मोर्चा का समर्थ किया. कुल 248 संसद सदस्यों के समर्थन से नई सरकार बनी और 2 दिसंबर, 1989 को वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.

अपनी दूसरी राजनीतिक पारी खेल रहे हैं TV के ‘राम’
बाद में कांग्रेस ने अरुण गोविल को राज्यसभा की पेशकश की, लेकिन उन्होंने राजनीति में आने से इनकार कर दिया और अभिनय के क्षेत्र में बने रहे. अब उन्होंने भाजपा में शामिल होकर अपने राजनीतिक जीवन की दूसरी पारी का आगाज किया है और मेरठ से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. अरुण गोविल मूल रूप से मेरठ के रहने वाले हैं. आजतक से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह अपनी जन्मभूमि पर किसी सियासी या चुनावी रण के लिए नहीं आए हैं, बल्कि अपनी बात, अपना प्यार अपने लोगों को देने आए हैं. उन्होंने कहा कि यह अपनी जड़ों से जुड़ने का एक अवसर है, जिसके लिए वह मेरठ आए हैं.

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