तबकी तरह अब भी जीत को लेकर बीजेपी आश्वस्त, 2004 वाला करिश्मा दोहरा पाएगी कांग्रेस?

नई दिल्ली:

लोकसभा का चुनावी रण सज चुका है। सत्ताधारी बीजेपी हो या फिर कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियां, सभी जोरदार तैयारी में जुटे हुए हैं। ऐसे में हर किसी के मन में सवाल यही है कि आखिर इस बार मुकाबला किसके पक्ष में जाएगा। केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी इस मुकाबले में जीत को लेकर आश्वस्त दिख रही। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद यही है कि पार्टी 2004 वाला कारनामा कर सकती है? जिस तरह 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन ने जोरदार वापसी की और बीजेपी के ‘इंडिया शाइनिंग’ नारे को फेल करते हुए केंद्र की सत्ता में काबिज हुई, उसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी। उस समय भी बीजेपी नेतृत्व जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रहा था। उस समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था। अब कांग्रेस 2024 में 2004 वाले कारनामे की उम्मीद कर रही, पर क्या इस बार ऐसा कुछ हो सकता है? ये तो 4 जून को स्पष्ट हो सकेगा जब चुनाव नतीजे सामने आएंगे।

कांग्रेस को क्यों दिख रही उम्मीद
2024 में 2004 वाले कारनामे की चर्चा तब शुरू हुई जब कांग्रेस का घोषणापत्र जिसे पार्टी ने ‘न्याय पत्र’ नाम दिया है, वो जारी किया गया। इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि 2004 को मत भूलना जब ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा बुलंद किया जा रहा था। हर किसी को संदेह था कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी को हराया जा सकता है। जैसे ही राहुल ने इस बात का जिक्र किया तो 2004 में कांग्रेस की जीत की वास्तुकार सोनिया गांधी ने सबसे ज्यादा तालियां बजाईं। लेकिन क्या 2024 में पार्टी के लिए 2004 जैसा कारनामा करना उतना ही आसान होगा?

‘मोदी का गारंटी’ से मुकाबला कैसे
ये सवाल इसलिए क्योंकि इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मोर्चा संभाल रखा है। चाहे बीजेपी के लिए 370 सीट का टारगेट सेट करना हो या फिर एनडीए के लिए 400 पार का लक्ष्य रखना। पीएम मोदी खुद आगे बढ़कर फ्रंटफुट पर बैटिंग करते दिख रहे हैं। वो लगातार चुनावी रैलियों और रोड-शो में अपनी सरकार के दौरान हुए विकास कार्यों का जिक्र करते नजर आ रहे हैं। यही नहीं उन्होंने ‘मोदी की गारंटी’ का जिक्र करके लोगों में अपनी मजबूत उपस्थिति का बड़ा दांव भी चला है। पीएम मोदी जिस तरह से इस चुनाव में ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ की तर्ज पर 400 पार के टारगेट में जुटे हैं वो बेहद निर्णायक रहने के आसार हैं। इसके उलट एक फैक्टर कांग्रेस को लेकर भी है, जिस तरह से उनकी पार्टी के नेता साथ छोड़ रहे उससे यही धारणा बन रही कि कांग्रेस कमजोर हो रही है। इसके साथ ही लोगों में ये भी बात फैल रही कि देश की सबसे पुरानी पार्टी को कुछ लोग चला रहे हैं।

2004 से बेहद जुदा हैं 2024 के हालात
2004 के मुकाबले 2024 में कांग्रेस के भीतर सबकुछ बदल चुका है। कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल का अंदाजा पार्टी के घोषणा पत्र जारी होने के दौरान मंच पर बैठे नेताओं की बातचीत से लगाया जा सकता है। मंच पर स्पष्ट रूप से जो दिग्गज मौजूद थे उनमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और केसी वेणुगोपाल ही थे। ये वही लोग हैं जो पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। इस दौरान ‘राहुल भैया जिंदाबाद’ और ‘राहुल गांधी आप संघर्ष करो हम आपके साथ हैं’ के नारे भी लगे।

कांग्रेस के ‘न्याय पत्र’ से होगा कमाल!
राहुल गांधी का ‘संघर्ष’ पार्टी के घोषणापत्र में नजर भी आया, जिसमें जातीय जनगणना और काम के अधिकार की बात की गई है। इसके साथ ही घोषणा-पत्र में एक वादा ये भी है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार दल-बदल के मामले में तत्काल अयोग्यता के लिए एक नया कानून लाएगी। चुनावी बांड की समीक्षा करेगी और ईडी और सीबीआई के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका सुनिश्चित करेगी। राहुल गांधी की हालिया ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ काफी चर्चित रही लेकिन क्या इसका चुनावों में असर दिखेगा, ये भी बेहद दिलचस्प होगा। 2004 के चुनाव में बीजेपी के ‘इंडिया शाइनिंग’ के मुकाबले कांग्रेस का एक नारा काफी चर्चित हुई था। उस समय ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ’ एक विजयी नारा बना था। हालांकि, तब कांग्रेस काफी मजबूत थी। एक महिला नेता ने उस समय बेहद शक्तिशाली नजर आ रहे अटल बिहारी वाजपेयी को चुनौती दी और देश की सत्ता पर पार्टी को काबिज कराने मे सफल रहीं। हालांकि, अब यह सब बदल गया है।

कांग्रेस का साथ क्यों छोड़ रहे नेता
कांग्रेस शायद खुद भी इस तथ्य को समझ रही है। पार्टी के नेता जिस तरह से साथ छोड़ रहे ये उनके इस डर को सामने रखने के लिए काफी है। यही वजह है कि पार्टी ने दलबदलुओं की तत्काल अयोग्यता के लिए दसवीं अनुसूची में बदलाव का फैसला लिया है। पार्टी के घोषणा पत्र में इस बात का जिक्र ये दर्शाता है कि वह चाहे कुछ भी कहे, वह नेताओं के पलायन से हिल गई है। कांग्रेस छोड़ रहे नेता खुद भी इस पार्टी को डूबता जहाज बताने से नहीं कतरा रहे। इन्ही फैक्टर्स से ऐसा लग रहा कि कांग्रेस के लिए ये चुनाव बेहद कड़े मुकाबले की तरह है।

क्या चलेगा कांग्रेस का जातीय जनगणना वाला दांव
कांग्रेस के घोषणा पत्र में एक और अहम फैक्टर है जाति जनगणना पर जोर। कांग्रेस आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा हटाना चाहती है। दलितों और ओबीसी के लिए इसे बढ़ाना चाहती है। जब राहुल गांधी राजनीति में आए, तो वह एक नई हवा लाना चाहते थे और समावेशी राजनीति को बढ़ावा देना चाहते थे जहां सभी को मौका दिया जाएगा और उनके पिता की तरह, वंश या जाति से ज्यादा योग्यता मायने रखेगी। कांग्रेस छोड़ने वाले या उसमें शामिल होने वाले कई लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि बीजेपी से जूझ रही पार्टी समावेशी विकास पर जोर क्यों दे रही है और राहुल गांधी जैसे आधुनिक, उदारवादी नेता, जो निर्णय ले रहे हैं वो बीते समय में वापस जा रहे हैं।

बीजेपी के मुकाबले कहां पिछड़ रही कांग्रेस
बीजेपी और कांग्रेस नेतृत्व की बात करें उनकी सोच में दिख रहा बड़ा बदलाव ही दोनों दलों की मौजूदा स्थिति को बयान करने के लिए काफी हैं। अगर बीजेपी की बात करें तो पार्टी अपने कार्यकर्ताओं की ताकत को समझती है। पार्टी नेतृत्व कार्यकर्ताओं से जुड़ने की कवायद करती है। इसके उलट कांग्रेस में कई लोगों ने नेताओं तक पहुंच न होने की शिकायत की है। खुद पार्टी के कई दिग्गजों ने कांग्रेस आलाकमान को लेकर ऐसी ही शिकायतें दर्ज कराई। फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस में कौन बाजी मारेगा इसका जवाब 4 जून को सामने आ जाएगा, जब 7 फेज की वोटिंग के बाद मतों की गिनती शुरू होगी। लेकिन मौजूदा स्थिति में यह कोई रहस्य नहीं है कि 2004 में कांग्रेस के पास जो बढ़त थी वह अब स्पष्ट रूप से गायब है।

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