आजमगढ़,
मृतक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल बिहारी ‘मृतक’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे. आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर थाना अंतर्गत आने वाले गांव अमीलो के निवासी लाल बिहारी दागी मृतक संघ के बैनर तले वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं मार्टिनगंज तहसील के सुरहन गांव के रहने वाले रामबचन राजभर आजमगढ़ से बीजेपी उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ और सपा के धर्मेंद्र यादव के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे.
मृतक संघ के अध्यक्ष लाल बिहारी का कहना है कि पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर वह सिस्टम के विरुद्ध अपनी लड़ाई को स्थापित करेंगे. दरअसल, पेशे से किसान लाल बिहारी को सरकारी बाबुओं ने 1972 में कागजों में मृत घोषित कर दिया था. उनके परिवार के सदस्यों ने ही जायदाद की लालच में तहसील के सरकारी मुलाजिमों की मदद से लाल बिहारी को कागजों में मृत घोषित करवाकर उनकी जमीन हड़प ली थी.
लाल बिहारी ने खुद को जिंदा साबित करने के लिए सिस्टम के खिलाफ अपना संघर्ष शुरू किया. लाल बिहारी ने 1988 में वीपी सिंह और 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, ताकि वह खुद को जिंदा साबित कर पाएं. उन्हें 19 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद 1994 में इंसाफ मिला. कोर्ट के आदेश पर स्थानीय तहसील ने कागजों में सुधार किया और लाल बिहारी को जीवित माना. लाल बिहारी के मुताबिक अदालती सुनवाई के दौरान उन्हें ‘लाल बिहारी मृतक हाजिर हो’ कहकर बुलाया जाता था. फिर उन्होंने खुद अपने नाम के आगे मृतक शब्द जोड़ लिया.
लाल बिहारी के जीवन की इस असल कहानी पर ‘कागज’ नाम की एक बॉलीवुड फिल्म भी बनी है, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने मुख्य भूमिका निभाई है. लाल बिहारी कहते हैं, ‘मुझे जिंदा रहते ही कागजों में मृत घोषित कर दिया गया. तहसील व जिला प्रशासन की कौन कहे, मैंने केंद्र व प्रदेश की सरकारों के अलावा जन प्रतिनिधियों तक का दरवाजा खटखटाया. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. फिर मरता क्या न करता कहावत को चरितार्थ करते हुए मैंने मृतक संघ की स्थापना की.’
लाल बिहारी ने बताया कि वह अपनी तरह जीवित रहते ही कागजों में मृत घोषित कर दिए गए लोगों के मौलिक अधिकारों की लड़ाई के लिए ‘मृतक संघ’ की स्थापना की. वह तीन बार लोकसभा और तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. लाल बिहारी कहते हैं, ‘मुझे पता है कि मैं जिन व्यक्तियों के खिलाफ चुनाव लड़ता हूं, उनके सामने जीतूंगा नहीं. लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान लोग यह तो जान ही जाएंगे कि विभागीय मिलीभगत से जिंदा रहते हुए लोगों को मृतक घोषित कर दिया जा रहा है और न्याय कहीं से नहीं मिल रहा.’