पछुआ हवा में बह गए वोटरों के उत्साह, 42 डिग्री तापमान और मुस्लिम मतों पर शुक्रवार पड़ा भारी

पटना

बिहार में हुए प्रथम चरण के चुनाव में मतदान के गिरे प्रतिशत ने उम्मीदवारों के होश उड़ा दिए है। स्थिति यह है कि सबसे ज्यादा मतदान प्रतिशत पाने वाला गया लोकसभा में भी वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले लगभग चार प्रतिशत वोट कम पड़े। वर्ष 2019 में गया लोकसभा में जहां 56.18 प्रतिशत मतदान हुए वहीं वर्ष, 2024 के लोकसभा चुनाव में मात्र 52 प्रतिशत ही मतदान पड़े। औरंगाबाद लोकसभा में भी इस बार वर्ष 2019 के मुकाबले तीन से ज्यादा प्रतिशत मतदान कम हुए। नवादा लोकसभा में इस बार गत लोकसभा से लगभग 8 प्रतिशत कम वोट पड़े। वर्ष 2019 में 49.73 प्रतिशत वोट पड़े तो इस बार 41.5 प्रतिशत। जमुई में भी गत लोकसभा में 55.25 प्रतिशत वोट पड़े तो इस बार मात्र 50 प्रतिशत वोट पड़े।

मतदान कम होने के कारण
प्रचंड गर्मी ने प्रथम चरण के चुनाव को काफी प्रभावित किया। 42 डिग्री तापमान के कारण भी कमजोर मतदाता, वृद्ध और महिलाएं काफी कम निकली। उस पर पछुआ हवा का प्रकोप भी वोटरों को परेशान कर गया। मुस्लिम मतों का इस बार काफी आक्रामक वोटिंग देखने को नहीं मिला। सूत्रों की बात करें तो इसके दो कारण हैं। पहला मतदान का शुक्रवार को होना। शुक्रवार की नमाज की प्रमुखता से समझा जा सकता है। मुस्लिम मतों का हतोत्साहित हो जाना भी गिरते मत प्रतिशत का कारण बना। राम मंदिर निर्माण और राम लहर ने उनके भीतर के उत्साह को कम कर दिया। पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी सक्रियता की कमी देखी गई। पर्ची बांटने के काम में काफी निष्क्रियता देखी गई। पर्ची पाने को अभ्यस्त मतदाता उनकी पर्ची का ही इंतजार करते रह गए। प्रचार तंत्र पर एनडीए के हावी होने से भी विपक्ष के कार्यकर्ताओं की सक्रियता में भी कमी देखी गई।

गया लोकसभा का हाल
गया लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो जदयू और भाजपा कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता देखी गई। लोगों तक पर्ची पहुंचने का काम काफी धीमा रहा। विपक्ष की निष्क्रियता भी इस वजह से थी कि तेजस्वी यादव का अलावा कोई स्टार प्रचारक गया नहीं आए। राहुल गांधी का न आना भी मुस्लिम मतों की निष्क्रियता का कारण बना। गया के सूत्रों के अनुसार मुस्लिम इलाकों में 33 प्रतिशत वोट उनकी निष्क्रियता का उदाहरण है। औरंगाबाद लोकसभा में भी भाजपा और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता सामने आई। भाजपा के भीतर सुशील कुमार सिंह के रिप्लेसमेंट की बात चल रही थी। पर ऐसा न होने के कारण स्थानीय कई नेता निष्क्रिय रहे। कांग्रेस के भी कार्यकर्ता निखिल कुमार को टिकट नहीं मिलने का कारण निराश थे। इसका भी वोट प्रतिशत पर प्रभाव पड़ा।

नवादा और जमुई लोकसभा
नवादा लोकसभा में भी स्थानीय मुद्दा के सवाल पर निष्क्रियता रही। स्थानीय नेता जो उम्मीदवारी की वाट जोह रहे थे। उनकी निष्क्रियता का भी असर वोट पर पड़ा। जमुई लोकसभा में पीएम के प्रोग्राम का काफी असर पड़ा। एनडीए के समर्थक में उत्साह खास कर दलित मतों में देखा गया। सबसे कम मतदान औसतन सवर्ण बूथों पर देखा गया। विपक्ष की तरफ से तेजस्वी यादव के अलावा किसी दमदार नेता के न आने से भी वोट प्रतिशत पर प्रभाव पड़ा।

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