क्या सरकार आपकी संपत्ति जब्त कर मुस्लिमों में बांट सकती है? महज चुनावी फसाना है…

नई दिल्ली

क्या आपकी संपत्ति सरकार ले सकती है? क्या उसे दूसरे लोगों में बांटा जा सकता है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इन दिनों चुनावी रैलियों में गूंज रहे हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा में जनसभा में कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि वे माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे। फिर उस संपत्ति को बांट देंगे। इसे उनको बांटेंगे जिनके बारे में मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। मोदी ने कहा कि पहले जब उनकी सरकार थी, तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब ये है कि वे संपत्ति जुटाकर जिनके ज्यादा बच्चे हैं, उनको बांटेंगे। घुसपैठियों (बांग्लादेशी) को बांटेंगे। आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? मोदी ने कहा कि क्या आपको ये मंजूर है ? आपकी संपत्ति सरकार को ऐंठने का अधिकार है क्या? क्या आपकी संपत्ति को, आपकी मेहनत से कमाई संपत्ति को सरकार को ऐंठने का अधिकार है?

मोदी के इस बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी पलटवार करते हुए कहा कि पहले चरण के मतदान में निराशा हाथ लगने के बाद नरेंद्र मोदी के झूठ का स्तर इतना गिर गया है कि घबरा कर वह अब जनता को मुद्दों से भटकाना चाहते हैं। कांग्रेस के ‘क्रांतिकारी मेनिफेस्टो’ को मिल रहे अपार समर्थन के रुझान आने शुरू हो गए हैं। देश अब अपने मुद्दों पर वोट करेगा, अपने रोजगार, अपने परिवार और अपने भविष्य के लिए वोट करेगा। भारत भटकेगा नहीं!

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हैदराबाद में 6 अप्रैल को चुनावी रैली में ‘जितनी आबादी उतना हक’ का नारा देते हुए देश में आर्थिक-सामाजिक सर्वे कराने की बात कही थी। उन्होंने कहा, अगर पार्टी जीतकर सत्ता में आई तो देश में जातिगत जनगणना के साथ आर्थिक सर्वे भी कराया जाएगा ताकि पता लगाया जा सके कि किसके पास कितना पैसा पहुंच रहा है। यानी की देश की अधिकतर संपत्ति पर किसका कंट्रोल है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भी सामाजिक-आर्थिक सर्वे कराने का वादा किया है। पार्टी का कहना है कि इन्हीं आंकड़ों के आधार पर जनता को योजनाओं का लाभ दिया जाएगा।

नेताओं के बयान जो भी हों, मगर अब ये सवाल तो सबके जेहन में है कि क्या सरकार नागरिकों की संपत्ति ले सकती है? इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानेंगे कि क्या कहता है कानून, क्या हैं नियम…

जानिए संविधान में संशोधन के बाद संपत्ति का अधिकार क्या है?
आजादी के बाद भारत में संपत्ति के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31 के तहत एक मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी। इन प्रावधानों ने नागरिकों को संपत्ति अर्जित करने, धारण करने और इसका निपटारा करने के अधिकार की गारंटी दी। कानून के अधिकार के बिना संपत्ति से वंचित करने पर रोक लगा दी। बाद में इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के जरिए लाया गया, जिसने संपत्ति के मूल अधिकार को पूरी तरह समाप्त कर दिया। अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31 को 20 जून, 1979 से हटा दिया गया। इस संशोधन से संविधान में एक नया प्रावधान अनुच्छेद 300-A जोड़ा गया, जिसने संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार के बजाय विधिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया।

क्या कहता है संपत्ति का अधिकार का नया नियम
फिलहाल, संपत्ति का अधिकार मुख्य रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-A द्वारा शासित होता है। इसमें कहा गया है कि कानून के अधिकार के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। पहले के प्रावधानों के विपरीत मौजूदा स्थिति यह है कि संपत्ति का अधिकार पूर्ण नहीं है और इसे कानून द्वारा विनियमित किया जा सकता है। इस संशोधन के अनुसार, निजी संपत्ति का होना एक मौलिक मानव अधिकार है। इसे कानूनी प्रक्रियाओं और आवश्यकताओं का पालन किए बिना राज्य द्वारा नहीं लिया जा सकता है।

जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने दी थी ये थ्योरी
अब जरा 19वीं सदी की ओर चलते हैं, जब जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने संपत्ति के बारे में दो किताबों में लिखकर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया।’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ और ‘दास कैपिटल’ जैसी किताबों ने एक समय पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णायक असर डाला था। माना जाता है कि रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इस बात का उदाहरण था। यहां तक कि 20वीं सदी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है। पहले ये समझ लेते हैं कि कार्ल मार्क्स के वे कौन से सिद्धांत हैं, जिन्होंने नए वर्ग और संपत्ति के बंटवारे को लेकर नया ताना-बाना समझाया था।

राजनीतिक कार्यक्रम यानी एक दिन होगा सर्वहारा का कब्जा
मार्क्स ने’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ समेत कई लेखों में पूंजीवादी समाज में ‘वर्ग संघर्ष’ की कल्पना की। उन्होंने बताया था कि आखिरकार इस संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लेगा। इस बात को उन्होंने विस्तार से अपनी रचना दास कैपिटल में भी जिक्र किया। 20वीं सदी में मजदूरों ने रूस, चीन और क्यूबा जैसे देशों में शासन करने वालों को उखाड़ फेंका और निजी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि मार्क्स को ग्लोबलाइजेशन का पहला आलोचक माना जा सकता है, जिन्होंने दुनिया में बढ़ती अमीरी-गरीबी के बीच की खाई के बारे में बात की थी। आज कुछ लोगों के हाथों में दुनिया की 50 फीसदी से ज्यादा दौलत है।

अकूत मुनाफा और अतिरिक्त मूल्य पर एकाधिकार
मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है- ‘अतिरिक्त मूल्य।’ ये वो मूल्य है जो एक मजदूर अपनी मजदूरी के अलावा पैदा करता है। मार्क्स का कहना है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की कीमत पर अपने मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाने में जुट जाते हैं। ऐसे में पूंजी चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है। इससे बेरोजगारी बढ़ती है और मजदूरी में भी गिरावट आती है।

आजादी बाद संत विनोबा ने भूदान आंदोलन चलाया
संपत्ति के असमान वितरण को देखते हुए आजादी बाद संत विनोबा भावे ने 1951 में भूदान आंदोलन की शुरुआत की। यह स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था। विनोबा की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी कानूनों के जरिए नहीं हो, बल्कि एक आंदोलन के माध्यम से इसे कामयाब बनाया जाए। 1956 तक इस आंदोलन के तहत दान में 40 लाख एकड़ से ज्यादा की जमीन मिली, मगर बाद में यह आंदोलन कमजोर पड़ गया।

गांधीजी ने दिया था ट्रस्टीशिप का सिद्धांत
दरअसल विनोबा ने गांधीवादी विचारों पर चलते हुए रचनात्मक कार्यों और ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को का इस्तेमाल करते हुए सर्वोदय समाज की स्थापना की। यह रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संघ था। इसका मकसद अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था। गांधीजी ने भी ट्रस्टीशिप का जो सिद्धांत दिया, उसके मुताबिक भूस्वामी और अमीर लोगों को अपनी संपत्ति के न्यासी के रूप में काम करना चाहिए। उन्हें अपने संपत्ति के अधिकार को आम लोगों में समर्पित कर देना चाहिए। संपत्ति के बावजूद उन्हें अपने को मजदूर वर्ग के स्तर पर ले जाना चाहिए और मेहनत करके जीवन-यापन करना चाहिए। हालांकि, गांधीजी का ये सिद्धांत लोगों ने नहीं अपनाया।

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