AI से बनाई बीवी की सहेलियों की अश्लील तस्वीरें, ब्लैकमेलर ने कहा- मुझसे बात करो वरना…

इंदौर,

मध्य प्रदेश के इंदौर के परदेशीपुरा में कॉलेज की छात्राओं को अश्लील तस्वीरों के जरिए ब्लैकमेल करने वाले एक शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. आरोपी नगर पालिका निगम में कम्प्यूटर आपरेटर है. उसने एआई की मदद से कई छात्राओं की डीपफेक फोटो बना ली थी. इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देकर उन्हें ब्लैकमेल कर रहा था. पीड़िता छात्राओं में ज्यादातर लड़कियां आरोपी की बीवी की सहेली हैं.

पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) अभिनय विश्वकर्मा ने आरोपी यश भावसार मध्य प्रदेश के शाजापुर नगर परिषद में कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में काम करता था. बताया कि उसने एआई-आधारित ऐप का उपयोग करके इन महिलाओं की डीपफेक या मॉर्फ्ड तस्वीरें बनाईं, जिनके पास इंस्टाग्राम अकाउंट हैं. फिर उसने इंस्टाग्राम पर एक फर्जी पहचान के साथ अपना एक अकाउंट बनाया. इन अश्लील तस्वीरों को छात्राओं को भेजने लगा.

इतना ही नहीं उसने उन लड़कियों को धमकी दी कि यदि उन्होंने उसे ब्लॉक किया या नजरअंदाज किया, तो वो उन अश्लील तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा. एक पीड़िता ने बताया कि आरोपी उससे जबरन गंदी-गंदी बातें करना चाहता था. बात नहीं करने पर उसे बदनाम करने की धमकी देता था. पीड़ित लड़कियों की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ केस दर्ज करते हुए गिरफ्तार कर लिया है.

डीसीपी ने कहा कि पीड़ित लड़कियों में ज्यादातर कॉलेज की छात्राएं हैं. उनमें से कई यश भावसार की पत्नी की दोस्त भी हैं. वो उन लड़कियों को पहले से जानता है. उन पर उसकी बुरी नजर पहले से थी. पुलिस ने आरोपी का मोबाइल फोन और लैपटॉप जब्त कर लिया है. इस मामले में आगे की जांच जारी है. पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही है कि आरोपी ने इससे पहले इस तरह के अपराध किए हैं या नहीं.

क्या है डीपफेक, कब हुआ इसका पहली बार इस्तेमाल?
डीपफेक अंग्रेजी के दो शब्दों से बना है. पहला, डीप और दूसरा फेक. डीप लर्निंग में सबसे पहले नई तकनीकों खास कर जीएएन की स्टडी जरूरी है. जीएएन में दो नेटवर्क होते हैं, जिसमें एक जेनरेट यानी नई चीजें प्रोड्यूस करता है, जबकि दूसरा दोनों के बीच के फर्क का पता करता है. इसके बाद इन दोनों की मदद से एक ऐसा सिंथेटिक यानी बनावटी डेटा जेनरेट किया जाता है, जो असल से काफी हद तक मिलता जुलता हो, तो वही डीप फेक होता है.

साल 2014 में पहली बार इयन गुडफ्लो और उनकी टीम ने इस तकनीक को विकसित किया था. धीरे-धीरे इस तकनीक में नई-नई तब्दीलियां की जाती रहीं. साल 1997 में क्रिस्टोफ ब्रेगलर, मिशेल कोवेल और मैल्कम स्लेनी ने इस तकनीक की मदद से एक वीडियो में विजुअल से छेड़छाड़ की और एंकर द्वारा बोले जा रहे शब्दों को बदल दिया था. उस वक्त इसे एक प्रयोग के तौर पर किया गया था. लेकिन समय के साथ ये तकनीक एक हथियार बन चुकी है.

हॉलीवुड में बड़े पैमाने पर होता है तकनीक का इस्तेमाल
हॉलीवुड फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता था. कई बार शूटिंग के बीच में ही कुछ कलाकारों की मौत हो जाती या किसी के पास डेस्ट की कमी होती तो इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था. उदाहरण के लिए फिल्म ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ को देख सकते हैं. उसमें लीड एक्टर पॉल वॉटर की जगह उनके भाई ने भूमिका निभाई थी, क्योंकि शूट के बीच में ही उनकी मौत हो गई थी. डीपफेक तकनीक के जरिए उनको हूबहू पॉल वॉटर बना दिया गया.

यहां तक कि उनकी आवाज भी पॉल जैसी हो गई. शुरू में डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल नकारात्मक तरीके से नहीं होता था. लेकिन जैसे-जैसे इस तकनीक ने तरक्की की, असली-नकली का फर्क करना भी मुश्किल होने लगा. इसका परिणाम ये हुआ कि लोग इसका धड़ल्ले से बेजा इस्तेमाल करने लगे. यहां तक कि हॉलीवुड और बॉलीवुड एक्ट्रेस के पोर्न वीडियो बनाए जाने लगे. कई सारी पोर्न वेबसाइट पर इस तरह के डीपफेक वीडियो भरे पड़े हैं.

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