नई दिल्ली,
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान बाकी है और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी इंडिया ब्लॉक के नेताओं की बैठक बुला ली है. खड़गे ने इंडिया ब्लॉक के नेताओं की बैठक 1 जून को बुलाई है. 1 जून को ही लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान होना है. इस बैठक में लोकसभा चुनाव पर चर्चा और समीक्षा की बात कही जा रही है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उसी दिन मतदान और साइक्लोन के बाद रिलीफ के काम का हवाला देते हुए कहा है कि भले ही यहां (बंगाल में) रहूंगी, लेकिन दिल से मीटिंग में मौजूद रहूंगी. इन सबके बीच अब ये सवाल उठ रहे हैं कि अंतिम चरण में देश की 57 लोकसभा सीटों पर जिस दिन वोटिंग होनी है, उसी दिन इंडिया ब्लॉक के नेताओं की बैठक क्यों बुलाई गई? बात केवल चर्चा और समीक्षा तक ही सीमित है?
केजरीवाल फैक्टर
मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया ब्लॉक की बैठक के लिए 1 जून की तारीख चुनी तो उसके पीछे केजरीवाल फैक्टर को भी अहम बताया जा रहा है. दरअसल, इन चुनावों में आम आदमी पार्टी और इंडिया ब्लॉक का रिश्ता कहीं पास, कहीं दूर जैसा है. केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली, चंडीगढ़, हरियाणा, गोवा और गुजरात में दोनों दल पास हैं तो पंजाब में दूर. पांच राज्यों में गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे इंडिया ब्लॉक के ये दोनों ही महत्वपूर्ण घटक पंजाब में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी हैं. आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद चुनाव प्रचार के लिए जमानत पर बाहर हैं और इसकी अवधि भी 1 जून को ही समाप्त हो रही है.
ऐसे में इंडिया ब्लॉक की बैठक 1 जून को ही बुलाए जाने के पीछे केजरीवाल फैक्टर भी वजह हो सकता है. इस फैक्टर की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि सीट शेयरिंग को लेकर अलग-अलग पार्टियों के नेताओं की बैठकें हटा दें तो इंडिया ब्लॉक की बैठकों में घटक दलों के शीर्ष नेता शामिल होते आए हैं. केजरीवाल ने अंतरिम जमानत की अवधि एक सप्ताह और बढ़ाने की अपील करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की है लेकिन अगर जमानत की अवधि नहीं बढ़ी तो फिर इंडिया ब्लॉक की तेज चाल पर रफ्तार धीमी हो सकती है.
बिखरे कुनबे को गोलबंद करना
इंडिया ब्लॉक की जब बैठक पर बैठक हो रही थी और नाम भी नहीं रखा गया था, तब कहा यह भी जा रहा था कि ये एक ऐसा गठबंधन है जिसमें शामिल पार्टियों के बीच विरोधाभास ही विरोधाभास हैं और इनका एक मंच पर आना बड़ी चुनौती. लोकसभा चुनाव करीब आए तो हुआ भी कुछ ऐसा ही.
केरल में लेफ्ट पार्टियों ने अलग ताल ठोक दी तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस ने एकला चलो का नारा बुलंद कर दिया. पंजाब में आम आदमी पार्टी और जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी भी अकेले चुनाव मैदान में उतर गई. लेफ्ट तमिलनाडु से बंगाल तक कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है तो वहीं आम आदमी पार्टी भी पांच राज्यों में ग्रैंड ओल्ड पार्टी के साथ गठबंधन में है. टीएमसी भी इंडिया ब्लॉक के बैनर तले यूपी की भदोही सीट पर चुनाव लड़ रही है. 1 जून को बैठक बुलाने के पीछे चुनाव प्रचार के दौरान की तल्खियां दूर कर नतीजों से पहले अलग-अलग राज्यों में बिखरे कुनबे को गोलबंद करने की रणनीति भी हो सकती है.
सुस्त चाल वाली इमेज तोड़ना
कांग्रेस की एक इमेज सी बन गई है- फैसले लेने के मामले में सुस्त पार्टी की. इंडिया ब्लॉक में जेडीयू के रहते समय नीतीश कुमार मध्य प्रदेश-राजस्थान समेत राज्यों के चुनाव के समय कोई बैठक नहीं बुलाए जाने को लेकर कांग्रेस को घेरते रहे, सीट शेयरिंग के मामले में सुस्त चाल पर सवाल उठाते रहे. लोकसभा चुनाव में नामांकन की अंतिम तारीख करीब आने तक महाराष्ट्र से बिहार तक सीट शेयरिंग को लेकर इंडिया ब्लॉक के घटक दलों में बैठकों का दौर ही चलता रहा. चुनाव संपन्न होते-होते कांग्रेस का बैठक बुला लेना सुस्त चाल वाली इमेज तोड़ने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है.
नए साथियों को चिह्नित करना
लोकसभा चुनाव के नतीज 4 जून को आने हैं. चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद अगर सरकार बनाने की संभावनाएं बनती हैं तो ऐसे में कांग्रेस पहले से ही उसके लिए तैयार रहना चाहती है. इंडिया ब्लॉक में शामिल पार्टियों के हिस्से आई सीटें अगर बहुमत तक ना पहुंच रही हों और बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए भी जादुई आंकड़े से पीछे रह जाए तो ऐसे में सरकार बनाने के लिए नए सहयोगियों की जरूरत होगी. ऐसे दलों और नेताओं को चिह्नित करने की रणनीति भी होगी जो सरकार बनाने के लिए इंडिया ब्लॉक का समर्थन कर सकते हों.
कांग्रेस ही ड्राइविंग सीट पर का संदेश
बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी पार्टियों के प्रमुख नेताओं की बैठक हुई थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तब उनकी सरकार में डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव ने विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने के लिए पटना से कोलकाता, लखनऊ, दिल्ली और चेन्नई से जम्मू कश्मीर तक एक कर दिया.
पहली बैठक में नीतीश कुमार ही गठबंधन की ड्राइविंग फोर्स नजर आए लेकिन कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में हुई दूसरी बैठक से तस्वीर पूरी तरह से बदल गई. दूसरी बैठक से कांग्रेस ड्राइविंग सीट पर आ गई. अब जब चुनाव संपन्न होने की ओर हैं, अंतिम चरण का प्रचार थमने से भी पहले बैठक के लिए घटक दलों के नेताओं को न्यौता भेज खड़गे ने यह संदेश दे दिया है कि गठबंधन की ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस ही रहेगी.