बीजेपी को अतिआत्मविश्वास ले डूबा… आरएसएस की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में लेख से भगवा दल को सीख

नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव के नतीजों को बाद नई सरकार का गठन हो चुका है। पीएम मोदी लगातार तीसरी बार पीएम पद की शपथ ले चुके हैं। मंत्रिमंडल का बंटवारा भी हो चुका है। इसके बाद भी एक चीज पर चर्चा अभी तक थमने का नाम नहीं ले रही है। वो है इस चुनाव में बीजेपी का पिछली बार की तुलना में खराब प्रदर्शन। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक दिन पहले ही चुनाव में सहमति बनाने की प्रक्रिया, तकनीक का दुरुपयोग और असत्य को प्रचारित करने का जिक्र किया। संघ प्रमुख के बयान को बीजेपी के लिए नसीहत के रूप में बताया जा रहा है। अब संघ के ही मुखपत्र ऑर्गनाइजर में लोकसभा चुनाव में बीजेपी के चुनावी प्रदर्शन को लेकर लेख प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि बीजेपी के खराब प्रदर्शन का कारण अतिआत्मविश्वास रहा।

सेल्फी शेयर करने नहीं मिलती जीत
आरएसएस सदस्य रतन शारदा के आलेख में बीजेपी के अबकी बार 400 पार नारे का जिक्र है। शारदा कहते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम इस बात का संकेत है कि भाजपा को अपनी राह में सुधार करने की जरूरत है। वे कहते हैं कि कई कारणों से नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं गए। शारदा के अनुसार 2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए एक रिएलिटी चेक के रूप में आए हैं। उन्हें एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का 400+ का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था। उन्होंने कहा कि लक्ष्य ग्राउंड पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। उन्होंने कहा कि बीजेपी कार्यकर्ता अपने बुलबुले में खुश थे, मोदीजी के आभामंडल से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे। उन्हें लग रहा था कि जीत तो हमारी ही होगी।

उम्मीदवारों को चुनने में चूक?
लेख में आगे कहा गया है कि यह धारणा कि मोदीजी सभी 543 सीटों पर लड़ रहे हैं, सीमित महत्व का साबित हुआ। यह विचार तब आत्मघाती साबित हुआ जब उम्मीदवारों को बदल दिया गया। उन्हें स्थानीय नेताओं की कीमत पर थोपा गया और दलबदलुओं को अधिक महत्व दिया गया। उन्होंने आगे कहा कि देर से आने वालों को समायोजित करने के लिए अच्छे प्रदर्शन करने वाले सांसदों की भी बलि देना नुकसानदेह साबित हुआ। अनुमान है कि लगभग 25 प्रतिशत उम्मीदवार मौसमी प्रवासी थे। लेख में कहा गया कि स्थानीय मुद्दे, उम्मीदवार का ट्रैक रिकॉर्ड मायने रखता है, यह देखा जा सकता है। स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं की उदासीनता भी इसी कारक के कारण थी।

एनसीपी को मिलाने पर उठाए सवाल
लेख में महाराष्ट्र में राजनीति घटनाक्रम को लेकर अहम टिप्पणी की गई है। इसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति और टाले जा सकने वाले हेरफेर का एक प्रमुख उदाहरण है। अजीत पवार के नेतृत्व में एनसीपी गुट भाजपा में शामिल हो गया, जबकि भाजपा और विभाजित एसएस के पास आरामदायक बहुमत था। शरद पवार दो-तीन साल में गायब हो जाते क्योंकि एनसीपी चचेरे भाइयों के बीच की लड़ाई में अपनी ताकत खो चुकी होती। यह गलत कदम क्यों उठाया गया? भाजपा समर्थक इसलिए आहत हुए क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उन्हें सताया गया था। एक ही झटके में भाजपा ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी। महाराष्ट्र में नंबर एक बनने के लिए वर्षों के संघर्ष के बाद, यह बिना किसी अंतर के एक और राजनीतिक पार्टी बन गई।

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