नई दिल्ली
हाथरस में हुई भगदड़ और इसमें 121 लोगों की मौत को लेकर पूरा देश सदमे में है। 2 जुलाई को यह दर्दनाक घटना हुई थी और घटना के एक हफ्ते के बाद भी सत्संग कथा के आयोजक सूरजपाल उर्फ भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।यहां तक कि एफआईआर और एसआईटी की रिपोर्ट में भी बाबा का नाम नहीं है, बाबा से पूछताछ और उसकी गिरफ्तारी की बात तो बहुत दूर है।
दूसरी ओर, बाबा वीडियो जारी कर अपनी बात दुनिया के सामने रख रहा है। इस मामले में राजनेता भी सियासी नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर बयान जारी कर रहे हैं। इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या कानून व्यवस्था के मामले में बेहद सख्त मानी जाने वाली योगी आदित्यनाथ सरकार बाबा पर कार्रवाई करने में हिचक रही है? यह सवाल उठने के कुछ कारण भी हैं। उसे आगे समझेंगे। पर यह समझते हैं कि क्या सूरज पाल जाटव उर्फ भोले बाबा पर चुप्पी की वजह राजनीतिक भी है?
ताकतवर जाटव जाति से है बाबा का संबंध
10 जुलाई को उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हैं। भोले बाबा का संबंध उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति में ताकतवर जाटव जाति से है। उत्तर प्रदेश में 21% दलित मतदाता हैं। इसमें से 11% जाटव मतदाता हैं। बाबा के कुल समर्थकों में से 80% मतदाता भी जाटव बिरादरी के ही बताए जाते हैं। संभव है, इस लिहाज से बाबा सरकार व नेताओं के ‘प्रकोप’ से बच रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती जाटव बिरादरी से आती हैं और नगीना से लोकसभा चुनाव जीते आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद भी इसी जाति से आते हैं। हालांकि, इन दोनों ने सरकार से ‘दोषियों को नहीं बख्शे जाने’ और सीबीआई जांच की मांग जैसे औपचारिक बयान जरूर दिए हैं।
बाबा पर चुप है एसआईटी रिपोर्ट
हाथरस के मामले में आई एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भगदड़ के लिए कार्यक्रम के आयोजक, स्थानीय पुलिस और प्रशासन जिम्मेदार है। एसआईटी की रिपोर्ट के तुरंत बाद योगी सरकार ने कार्रवाई करते हुए छह अफसरों को निलंबित कर दिया है। इनमें एसडीएम रवींद्र कुमार, सीओ आनंद कुमार, थाना प्रभारी आशीष कुमार, तहसीलदार सुशील कुमार, कचौरा चौकी प्रभारी मनवीर सिंह और पोरा चौकी प्रभारी ब्रिजेश पांडे शामिल हैं। लेकिन, बाबा के खिलाफ एसआईटी रिपोर्ट में कुछ नहीं कहा गया है।
एफआईआर में भी नहीं नाम
सूरज पाल उर्फ भोले बाबा उर्फ साकार हरि का नाम एफआईआर में भी नहीं रखा गया है। ऐसे में कानूनी रूप से बाबा को शिकंजे से दूर रखा गया है। घटना के अगले दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हाथरस पहुंचे थे और उन्होंने भोले बाबा को लेकर सख्त रुख दिखाया था। लेकिन बाबा के खिलाफ कोई सख्ती हुई नहीं।
बाबा से पूछताछ तक नहीं
बाबा से पूछताछ तक की जरूरत नहीं समझी गई है। बाबा की ओर से वीडियो जारी किया गया है, लेकिन राज्य सरकार बाबा तक नहीं पहुंच पा रही है।
अनुमति से ज्यादा लोग कैसे पहुंचे?
सवाल यह भी है कि भोले बाबा के कार्यक्रम में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को आने की अनुमति कैसे दे दी गई? ऐसा कहा गया था कि सत्संग में 80 हजार लोग आएंगे लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि यह आंकड़ा 2 लाख से ज्यादा का था। प्रशासन को इस पर नजर रखनी चाहिए थी कि अगर इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी जगह पर इकट्ठा होते हैं तो वहां पर इंतजाम और व्यवस्था किस तरह की होनी चाहिए। अनुमति से ज्यादा लोग बुलाए जाने और भगदड़ में मौतों के बाद भी बाबा को लेकर सरकार और प्रशासन पूरी तरह चुप है।
प्रशासन का कहना है कि सत्संग के कार्यक्रमों में सारा इंतजाम भोले बाबा के अपने लोग या स्वयंसेवक ही करते हैं। पुलिस और प्रशासन भी बाबा के कार्यक्रमों में दखल नहीं दे पाता। लेकिन, तय सीमा से ज्यादा लोगों के आने के बावजूद सरकार की ओर से कोई दखल नहीं दिया जाना सवाल खड़े करता है।
एक आरोपी को ‘बाबा’ बनने की दी गई छूट
सूरज पाल पर मुर्दा लड़की को जिंंदा करने की जिद करते हुए उसकी लाश कब्जे में ले लेने के मामले में केस दर्ज हुआ था। इसके बावजूद सूरज पाल खुद को ‘बाबा’ के रूप में प्रसिद्ध करने में कामयाब रहे। कई लोगों के बयान हैं कि बाबा अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली बातें किया करते थे। पुलिस का भी कहना है कि भगदड़ तब हुई जब सूरज पाल के भक्त चरणों की धूल लेने के लिए टूट पड़े।
इस तरह की अंधविश्वास बढ़ाने वाली गतिविधियों से प्रशासन अनजान तो नहीं रहा होगा। अनजान था तो भी सवाल उठता है और अनजान नहीं था तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं की?पुलिस बाबा के सेवादारों को पड़ककर उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज कर रही है लेकिन आखिर भोले बाबा पर कारवाई कब होगी, इस सवाल का जवाब सरकार और पुलिस, दोनों के पास नहीं है।