नई दिल्ली,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को समाप्त हुए अपने दो दिवसीय रूस दौरे में रूस के साथ मिलकर व्यापार, ऊर्जा, जलवायु और अनुसंधान समेत कई क्षेत्रों में 9 समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इस दौरान दोनों देशों के बीच एक बड़े प्रोजेक्ट को लेकर सहमति बनी जिसमें यह तय हुआ कि रूस भारत में 6 नए न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बनाने में मदद करेगा. मोदी-पुतिन के बीच द्विपक्षीय वार्ता में यह भी तय हुआ कि रूस नेक्स्ट जेनेरेशन के छोटे न्यूक्लियर प्लांट्स बनाने में भी भारत की मदद करेगा. इस खबर के सामने आने के बाद अमेरिकी मीडिया में कई तरह की बातें हो रही है. कई अमेरिकी विश्लेषक भी इस डील को लेकर टिप्पणी कर रहे हैं.
थिंक टैंक विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन ने भारत-रूस परमाणु प्लांट्स डील को लेकर चिंता जाहिर की है.उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘अमेरिका के लिए यह सबसे चिंता की बात हो सकती है कि दोनों पक्ष रूसी मूल के हथियारों और रक्षा उपकरणों के रखरखाव के लिए स्पेयर पार्ट्स, उनके कॉम्पोनेंट्स और अन्य उत्पादों को भारत में संयुक्त रूप से बनाने पर सहमत हुए हैं.’
‘भारत को लाचार क्यों देखना चाहता है अमेरिका?’
उनके इस ट्वीट के जवाब में भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने लिखा, ‘अमेरिका ऐसा क्यों चाहता है कि भारत की रक्षा मशीनरी ढह जाए? अमेरिका ऐसा क्यों चाहता है कि भारत चीन के सामने लाचार दिखे जो फिलहाल भारत के साथ सीमा पर आक्रामक रुख अपनाए है, पाकिस्तान के पुराने F16 विमानों को अमेरिका ने फिर से नया रूप दिया है और उसे चीन से भी उन्नत हथियार मिल रहे हैं. अमेरिका के विश्लेषक आत्मकेंद्रित हो गए हैं और उसे इस बात का पता नहीं है कि दूसरे लोग किस तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं.’
स्तंभकार सूर्या कानेगांवकर ने भी माइकल कुगलमैन को उनकी टिप्पणी पर जवाब दिया है. उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘भारत रूस के हथियार इस्तेमाल करता है जिनके लिए स्पेयर पार्ट्स की जरूरत होती है. दोनों देश संयुक्त रूप से क्रूज मिसाइल का भी निर्माण करते हैं. स्पेयर पार्ट्स का उत्पादन बढ़ाना भारत की अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी है. इसके अलावा, अगर कुछ हद तक पश्चिम की ओर झुकाव वाला भारत रूसी मिलिट्री सप्लाई चेन में हिस्सेदारी से फायदा उठाता है तो अमेरिका को इसे सकारात्मक तरीके से देखना चाहिए.’
क्या बोला अमेरिकी मीडिया?
अमेरिकी न्यूज नेटवर्क सीएनएन ने इस पर एक लेख प्रकाशित किया है जिसे शीर्षक दिया है- रूसी तेल पर प्रतिबंध ने पुतिन और मोदी को करीब ला दिया. अब वे परमाणु ‘आलिंगन’ में हैं.’इस लेख के साथ सीएनएन ने मोदी-पुतिन की वो तस्वीर प्रकाशित की है जिसमें दोनों नेता एक-दूसरे के गले मिल रहे हैं. अखबार ने लिखा कि रूसी तेल और गैस पर अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बावजूद मोदी-पुतिन का रिश्ता फला-फूला और अब इस रिश्ते का रंग ‘हरा’ (हरित ऊर्जा) हो रहा है. दोनों परमाणु पर भी अपना सहयोग बढ़ा रहे हैं.
‘परमाणु ऊर्जा की दौड़ में रूस जीत रहा है’
अमेरिका न्यूज नेटवर्क ने लिखा, ‘दुनिया के कई देशों में दूसरे देशों को परमाणु संयंत्र और ईंधन की आपूर्ति करने की दौड़ चल रही है और रूस कई मामलों में जीत रहा है.’द अटलांटिक काउंसिल के ट्रान्साटलांटिक सिक्योरिटी इनिशिएटिव की सीनियर फेलो एलिजाबेथ ब्रॉ ने सीएनएन से बात करते हुए कहा, ‘व्यावसायिक रूप से कहें तो, रूस कई चीजें बनाने में अच्छा नहीं है, लेकिन उसके पास प्राकृतिक संसाधन हैं. सोवियत काल से ही उसके पास प्रचुर मात्रा में परमाणु संसाधन हैं और अब यह एक ऐसी चीज है जिसका वो लाभ उठा सकता है. कुछ देश अपनी परमाणु ऊर्जा को बढ़ाने के इच्छुक हैं और तेल की तरह ही भारत इस क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाना चाहता है.’
अमेरिकी मीडिया ने लिखा कि भले ही युद्ध के कारण अमेरिका और यूरोप ने रूस से दूरी बना ली है, परमाणु ऊर्जा में प्रभुत्व पुतिन को वैश्विक मंच पर अपना स्थान बनाए रखने में मदद कर रहा है. इधर, मोदी भी भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति की परंपरा पर कायम हैं जो उन्हें पश्चिम का दोस्त बने रहते हुए रूस के साथ व्यापार करने की अनुमति देती है.
सीएनएन ने आगे लिखा, ‘ऐसा लगता है कि भारत-रूस की दोस्ती बनी रहेगी. छह और प्लांट्स के साथ परमाणु सहयोग को गहरा करना दोनों देशों को आने वाले दशकों तक बांधे रखेगा. परमाणु प्लांट्स को बनने में सालों लग सकते हैं, लेकिन उन्हें नियमित तौर पर मेंटेनेंस, उन्हें नई टेक्नोलॉजी से लैस करना और उन्हें यूरेनियम की सप्लाई करते रहना जरूरी होता है जो रूस के पास प्रचुर मात्रा में है.’
‘भारत व्यावहारिक और अवसरवादी…’
अमेरिकी न्यूज नेटवर्क लिखता है कि रूस ने दशकों तक परमाणु ऊर्जा बाजार में अपनी स्थिति बनाई है और इससे अलग होना दूसरे देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है. परमाणु ऊर्जा के माध्यम से रूस के प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका को कमर्शियल रूप से प्रतिस्पर्धी प्रोडक्ट्स बनाने होंगे.ब्रॉ कहती हैं, ‘भारत बहुत व्यावहारिक और, स्पष्ट रूप से, थोड़ा अवसरवादी है. अगर आप रूस के साथ ऐसे क्षेत्र में संबंध बढ़ा सकते हैं जहां आपको कोई नुकसान नहीं है तो ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है.
साथ ही ब्रॉ कहती हैं कि भारत रूसी कच्चे तेल को रिफाइन कर यूरोप को बेच रहा है जिससे उसे फायदा हो रहा है. वो कहती हैं, ‘यह भारत के लिए एक अच्छी अतिरिक्त कमाई है जो पहले उनके पास नहीं थी. तो अगर भारत के नजरिए से देखें तो क्या बुराई है इसमें?’
ब्लूमबर्ग
अमेरिकी टीवी चैनल ब्लूमबर्ग टीवी ने भारत-रूस के इस डील पर बात करते हुए कहा कि डील की टाइमिंग बेहद अहम है.स्तंभकार सुधीर रंजन सेन ने ब्लूमबर्ग टीवी के एक कार्यक्रम में कहा, ‘एक तरह से देखें तो यह बहुत ही रूटीन काम है कि रूस भारत को परमाणु प्लांट्स के लिए यूरेनियम सप्लाई करेगा लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत और रूस जब यह डील कर रहे हैं, इसकी टाइमिंग बेहद अहम है.’
फरवरी 2022 में यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध शुरू होने का बाद पीएम मोदी का यह पहला रूस दौरा है जिसमें परमाणु क्षेत्र में सहयोग को लेकर सहमति बनी है. दोनों नेताओं के बीच जब ये समझौते हो रहे थे तब वॉशिंगटन में नेटो देशों की बैठक हो रही थी जिसमें यूक्रेन युद्ध मुख्य मुद्दा था.