नई दिल्ली
तकरीबन दस साल पहले, चेन्नई के हार्ट और फेफड़ों के ट्रांसप्लांट सर्जन के. आर बालकृष्णन और ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में बायोइंजीनियरिंग प्रोफेसर पीट आयरे चेन्नई के एक होटल में डिनर पर मिले। जब बातचीत आर्टिफिशियल हार्ट पंप पर पहुंची, तो उन्होंने वेटर से पेंसिल लेकर पेपर नैपकिन पर कुछ डिजाइन बना डाले। कमाल तो तब हुआ जब खाने की टेबल पर बने डिजाइन कुछ ही सालों में लैब पहुंच गए और अब तो बनकर भी तैयार हैं। 5 साल की मेहनत के बाद, वैज्ञानिकों ने दो तरह के आर्टिफिशियल हार्ट पंप बनाए हैं- एक बाएं तरफ के लिए और एक दाहिने तरफ के लिए (छोटा वाला)। अभी इनका परीक्षण ऑस्ट्रेलिया में भेड़ों पर किया जा रहा है। अगर सब ठीक रहा, तो दिसंबर 2024 तक भारत और ऑस्ट्रेलिया में इंसानों पर भी इसका परीक्षण शुरू कर देगी।
‘हमें कभी नहीं लगा हम इतनी तरक्की कर लेंगे’
एमजीएम हेल्थकेयर में हृदय और फेफड़े ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट के हेड बालकृष्णन का कहना है, ‘हमें कभी नहीं लगा था कि हम इतनी तरक्की कर लेंगे।’ उन्होंने बताया, ‘हमारी चर्चा तो बस ऐसे ही चल रही थी। जब मैं होटल से निकला, तो मैंने नहीं सोचा था कि इससे कुछ निकलेगा। मुझे तो तब हैरानी हुई जब पीट ने मुझे एक हफ्ते बाद फोन किया और चीजें आगे बढ़ने लगीं।’ दरअसल इन दोनों ने मिलकर कार्डियोबायोनिक नाम की एक कंपनी बनाई है। दोनों की प्लानिंग एकदम स्पष्ट थी। दोनों एक ऐसा आर्टिफिशियल हार्ट पंप बनाना चाहते हैं जो हृदय गति रुकने की समस्या का स्थायी और किफायती इलाज हो। दरअसल अभी बाजार में मिलने वाले कृत्रिम हृदय पंपों की कीमत 100,000 अमेरिकी डॉलर यानी 80 लाख रुपये से ज़्यादा है। यह टीम चार गुना कम दाम में मिलने वाला पंप बनाना चाहती थी। न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में बायोइंजीनियरिंग प्रोफेसर पीट आयरे का कहना है, ‘अब जो पंप मिलते हैं, वे बहुत बड़े और भारी होते हैं, लगभग एक क्रिकेट की गेंद के बराबर। हालांकि डॉक्टर छाती के बाहर भी पंप लगा सकते हैं, लेकिन यह छोटे बच्चों और कमज़ोर लोगों के लिए ठीक नहीं है।’
प्रोजेक्ट में अड़चन बन गया था पैसा
आजकल के आर्टिफिशियल हार्ट पंप सिर्फ दिल के एक हिस्से, बाएं वेंट्रिकल को ही सहारा देते हैं। कई बार मरीजों को ये पंप लगाए जाते हैं, मगर बाद में दिल का दाहिना हिस्सा कमजोर पड़ जाता है, जिससे उन्हें जिंदगी भर आईसीयू में रहना पड़ सकता है। लेकिन आर्टिफिशियल हार्ट पंप बनाना आसाना काम नहीं हैं। बालकृष्णन बताते हैं, ‘जब लैब में किए जा रहे अध्ययन और बनाए जा रहे डिजाइन सफलता की उम्मीद जगाने लगे तो टीम को पहली अड़चन सामने आई। टीम को पैसों की जरूरत थी।’ बालकृष्णन ने कहते हैं, ‘मैंने दुनिया भर के 50 से ज्यादा कारोबारियों से बात की। दो भारतीय निवेशकों ने पैसा लगाने के लिए हामी भर दी। तब जाकर इस प्रोजेक्ट को रफ्तार मिली।’
क्यों खास है यह हार्ट पंप?
– 5 साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने एक ऐसा खास पंप बना लिया है जो दिल के दोनों हिस्सों को सहारा देता है। इस पंप को चलाने के लिए सिर्फ एक छोटी सी मशीन और एक छोटा उपकरण चाहिए। सबसे अच्छी बात ये है कि इसकी कीमत अब बाजार में मिलने वाले उपकरणों से चार गुना कम है। ये पंप टाइटेनियम नाम की मजबूत धातु से बना है और इसके अंदर एक खास डिवाइस लगा होता है जिसे ‘नॉन-कॉन्टैक्ट इम्पेल्ला’ कहते हैं।
– यह डिवाइस खून को दिल के निचले हिस्से (वेंट्रिकल) से खींचकर शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने वाली मुख्य धमनी तक पहुंचाता है। पीट आयरे ने बताया, ‘यह खून में तैरता रहता है और लगातार घूमता रहता है। यानी ये सिर्फ थोड़े समय का इलाज नहीं है, बल्कि ये हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत को भी कम कर सकता है।’ देशभर में कई हार्ट फेलियर के मरीज इलाज की उम्मीद में मर जाते हैं क्योंकि उन्हें दिल मिलना मुश्किल होता है।
– आयरे आगे कहते हैं, ‘अंग प्रत्यारोपण एक जटिल प्रक्रिया है। जागरूकता बढ़ने से अब ब्रेन डेथ होने वाले मरीजों से अंग मिलने लगे हैं, लेकिन हर दिल का इस्तेमाल नहीं हो पाता क्योंकि उन्हें बहुत जल्दी, करीब चार घंटे के अंदर ही ट्रांसप्लांट करना होता है। दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में हार्ट ट्रांसप्लांट की सुविधा भी नहीं है। ये नया पंप ऐसी कई मौतों को रोक सकता है।’
दाहिने तरफ के दिल को सहारा देता है पंप
इस टीम ने एक और खास पंप बनाया है जो सिर्फ दाहिने तरफ के दिल को सहारा देता है। वयस्कों के लिए बनाए गए इस पंप को बच्चों में भी बाएं तरफ के वेंट्रिकल को सहारा देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बालकृष्णन ने बताया, ‘बच्चों के लिए अभी तक कोई खास पंप नहीं बना है।’ हालांकि, ये जानने के लिए और रिसर्च की जरूरत है कि आखिर कुछ दिल कृत्रिम पंप लगाने के बाद भी काम करना क्यों बंद कर देते हैं।
मरीजों पर इंटरनेट के जरिए नजर रखी जा सकेगी
इस बीच, टीम इस पंप को एक ऐसे उपकरण में बदलने की कोशिश कर रही है जिसे दूर से मॉनिटर किया जा सके। इसका मतलब है कि मरीजों पर कहीं से भी, इंटरनेट के जरिए नजर रखी जा सकेगी। इसके अलावा, पूरी प्रणाली को बिना तार वाली बनाने की भी कोशिश की जा रही है। बालकृष्णन ने बताया ‘अभी, एक तार पंप को शरीर के बाहर लगे कंसोल से जोड़ती है। इससे इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। डॉक्टर टीम को यह सलाह दे रहे हैं कि वो पंप को इंसान के दिल जितना ही कुशल बनाएं।
ऑस्ट्रेलिया में भेड़ों पर चल रही टेस्टिंग
ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में बायोइंजीनियरिंग प्रोफेसर पीट आयरे कहते हैं, ‘गर्भावस्था, व्यायाम या किसी आपात स्थिति के दौरान दिल अपनी क्षमता 50% तक बढ़ा सकता है। हम ऐसा प्रेशर सेंसर बनाना चाहते हैं जो पंप को ऐसा करने में मदद करे।’ हालांकि ऑस्ट्रेलिया में भेड़ों पर किए जा रहे परीक्षण सकारात्मक परिणाम दिखा रहे हैं, टीम इस प्रोडक्ट को भारत, अमेरिका और यूरोप में इस्तेमाल की अनुमति के लिए कोशिश कर रही है।