बेंगलुरु:
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार नए नौकरी कानून को लेकर बैकफुट पर आ गई है।राज्य की कांग्रेस सरकार ने अब प्राइवेट नौकरियों में ‘कन्नड़ अस्मिता’ का दांव खेलते हुए पहले वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को साइनबोर्ड का 60 प्रतिशत कन्नड़ में करने का कानून पारित किया था। कर्नाटक सरकार ने कंपनियों और उद्योगों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने वाले राज्य रोजगार विधेयक, 2024 के मसौदे को मंजूरी दे दी है। विधानसभा में इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठान में स्थानीय लोगों को आरक्षण देना अनिवार्य हो जाएगा। कर्नाटक सरकार ने नए नौकरी कानून के सामने के बाद हुई चौतरफा आलोचना के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से उसे डिलीट कर दिया है।
अकाउंट से हटी पोस्ट
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बुधवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपना पोस्ट डिलीट कर दिया, जिसमें राज्य मंत्रिमंडल द्वारा एक कानून को मंजूरी दिए जाने की बात कही गई थी, जिसके तहत सभी निजी उद्योगों के लिए ग्रुप ‘सी’ और ‘डी’ की नौकरियों में केवल कन्नड़ लोगों को ही नियुक्त करना अनिवार्य कर दिया गया था।सिद्धारमैया ने अपने पोस्ट में लिखा था कि कल हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य के सभी निजी उद्योगों में सी और डी ग्रेड के पदों पर 100 प्रतिशत कन्नड़ लोगों को नियुक्त करना अनिवार्य करने वाले विधेयक को मंजूरी दी गई। उन्होंने लिखा था कि हमारी सरकार की इच्छा है कि कन्नड़ लोगों को कन्नड़ की भूमि में नौकरियों से वंचित न होना पड़े और उन्हें मातृभूमि में आरामदायक जीवन जीने का अवसर दिया जाए। हम कन्नड़ समर्थक सरकार हैं। हमारी प्राथमिकता कन्नड़ लोगों के कल्याण का ध्यान रखना है। अब यह पोस्ट उनके अकाउंट से हट गई है।
कानून में क्या है?
कर्नाटक सरकार के इस विधेयक में मैनेजर या प्रबंधन वाले जॉब में 50 फीसदी और गैर मैनेजमेंट वाली नौकरियों में 75 फीसदी पद कन्नड़ के लिए रिजर्व हो जाएगा। ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियों में 100 फीसदी लोकल लोगों को नौकरी मिलेगी। बिल के मसौदे में यह भी प्रावधान किया गया है कि राज्य के प्रतिष्ठानों में नौकरी करने वालों को कन्नड़ प्रोफिएंसी टेस्ट पास करना अनिवार्य होगा। अगर किसी संस्थान का मैनेजमेंट कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया तो उन्हें 10 हजार से 25 हजार रुपये तक जुर्माना देना पड़ सकता है।