हिमाचल: किसी ने जंगल में रात बिताई, किसी ने खोया परिवार… बादल फटने के बाद आई बाढ़ की भयावह कहानी

शिमला,

हिमाचल में 31 जुलाई को बादल फटने से नदियों में अचानक सैलाब आ गया. शिमला, मंडी और कुल्लू तीनों जगहों पर बादल फटने से कई लोगों की मौत हो गई है और कई लोग लापता हो गए हैं. बादल फटने के बाद लैंडस्लाइड की वजह से कई सड़कें बंद है, जिसकी वजह से रेस्क्यू टीम को मौके पर पहुंचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे लोगों से ग्राउंड पर हालातों को समझने की कोशिश की है. बाढ़ ने जीवित बचे दर्जनों लोगों को सदमे में डाल दिया है. वे रोंगटे खड़े कर देने वाले भयावह किस्से बता रहे हैं. जब अचानक आई बाढ़ का पानी उनके घरों में घुस गया और उनके परिजनों को बहा ले गई.

‘जारी लापता लोगों की तलाश’
शिमला के डिप्टी कमिश्नर अनुपम कश्यप ने बताया कि बचाव दल 85 किलोमीटर लंबे इलाके में लापता लोगों की तलाश कर रहे हैं. प्रशासन बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और बचे लोगों के पुनर्वास के लिए काम कर रहा है, लेकिन प्रभावित परिवार के सदस्यों को पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) जैसे मनोवैज्ञानिक विकारों से बचाने के लिए उपायों में मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा (पीएफए) सुविधाओं का अभाव है.

मनोवैज्ञानिकों ने 6 वर्षीय मोनू के मामले का हवाला देते हुए कहा कि पीएफए की अनुपलब्धता पीटीएसडी का कारण बन सकती है, क्योंकि मोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को खो दिया है.PGIMER चंडीगढ़ के एसोसिएट प्रोफेसर क्लिनिकल साइकोलॉजी डॉ. कृष्ण के. सोनी ने बताया, “छह साल की पीड़िता को समाज के साथ जुड़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि आघात बहुत गहरा हो सकता है. मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा (पीएफए) प्राथमिक गैर-फार्मासोलॉजिकल हस्तक्षेप है जो दर्दनाक लोगों के जीवन को पटरी पर लाने में मदद कर सकता है.

‘लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को हुआ नुकसान’
रामपुर, शिमला के समेज और निरमंड, कुल्लू के बागीपुल जैसे प्रभावित गांवों से आपदा से जूझ रहे लोगों पर केस स्टडी में पता चला है कि बचे हुए लोगों के शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य को भारी नुकसान हुआ है.समेज में हमारी मुलाकात महिलाओं के एक ग्रुप से भी हुई, जिनमें से अधिकांश उन व्यक्तियों की रिश्तेदार थीं. प्रशासन ने जिनके लापता होने की सूचना दी गई है. बिमला, जिसकी शादी पास के शहर नारकंडा में हुई है. उन्होंने अपनी भाभी और भतीजी को खो दिया है. सौभाग्य से उसका भाई बच गया, क्योंकि वह घर पर नहीं था. एक अन्य महिला ने आंखों में आंसू लेकर हमें बताया कि उसने अपने भाई और भाभी को खो दिया है.

‘लोगों ने जंगल में रात बिताई’

हमारी मुलाकात 45 वर्षीय योमा ठाकुर से हुई. उन्होंने बताया कि कुल्लू जिले के निरमंड उपमंडल बागीपुल में अचानक आई बाढ़ में उनकी दुकान चली गई.उन्होंने कहा, “जब यह हुआ तब हम सो रहे थे. हमारा घर हिल रहा था.. मुझे लगा कि यह भूकंप है. मेरे पति ने मुझे बताया कि यह अचानक आई बाढ़ थी… पानी हमारे घर के करीब से बह रहा था. हम पांच से छह परिवार थे. हमने घबराहट में अपना घर छोड़ दिया और जंगल में रात बिताई, जहां भारी बारिश हो रही थी. कई लोग बिना जूतों और बिना उचित कपड़ों के थे. एक परिवार में दो महीने का बच्चा था. दूसरे परिवार में एक बच्चा था. उनके साथ छह महीने की बच्ची है.”

योमा ने हमें यह भी बताया कि उसने एक पड़ोसी को अपनी छत पर टॉर्च के साथ देखा था. घर ढहने के कारण वह व्यक्ति बाढ़ के पानी में गिर गया.53 वर्षीय प्रकाश चंद के चेहरे पर अब भी डर साफ झलक रहा है, जो अपने परिवार के सदस्यों के साथ बाढ़ में बच गए. उन्होंने बताया, “जब बादल फटा तब हम गहरी नींद में थे. हम उठे तो बिजली नहीं थी. मैंने अपनी 89 वर्षीय मां और बेटे को जगाया, अपना मोबाइल फोन उठाया और नंगे पैर निकल पड़े.. हमने रात एक कमरे में बिताई जंगल और सुबह लौट आए.”

अब तक 77 लोगों की मौत
हिमाचल में बादल फटने के बाद अचानक आई बाढ़ में अब तक 77 लोगों की मौत हो चुकी है और 50 लोगों के लापता होने की खबर है. राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि राज्य में 27 जून से 3 अगस्त के बीच 77 मौतें हुई हैं. मानसून के दौरान करीब 50 लोगों के लापता होने की खबर है. शिमला से 33, कुल्लू से नौ और मंडी से छह लोगों के लापता होने की जानकारी मिली है. वहीं, पिछले साल मानसून के दौरान 509 मौतें और 9000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ था. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्र सरकार से यह पता लगाने के लिए अध्ययन कराने की अपील की है कि राज्य में इतनी संख्या में बादल क्यों फट रहे हैं.

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