नई दिल्ली,
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) में 78वें स्वतंत्रता दिवस के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “यह वह दिन है, जो हमें संविधान के सभी मूल्यों को साकार करने में एक-दूसरे और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की याद दिलाता है.” आजादी के महत्व पर जोर देते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत ने 1950 में स्वतंत्रता की विकल्प को चुना था.”
चीफ जस्टिस ने कहा, “आज बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह साफ तौर से इस बात की याद दिलाता है कि ये दोनों चीजें कितनी कीमती हैं, वो हमे याद दिलाता है कि आजादी की कीमत क्या है!”
उन्होंने आगे कहा कि आज सुबह मैं कर्नाटक के गायक का एक लेख पढ़ रहा था, जिसका नाम था ‘साउंड्स ऑफ फ्रीडम’, आज बहुत से यंग लॉयर आजादी के बाद की पीढ़ी के हैं, लेकिन आप में से बहुत से लोग इमरजेंसी के बाद की पीढ़ी के हैं. स्वतंत्रता को हल्के में लेना आसान है, यह समझने के लिए कि यह कितना महत्वपूर्ण है, अतीत की कहानियों पर गौर करना जरूरी है.
‘बार मेंबर्स जजों के बीच की अहम कड़ी’
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “बार के वकील हमारे देश में अच्छाई की शक्ति रहे हैं. न्यायालय, अधिकारों और स्वतंत्रता को जिंदा रखने के लिए काम करते हैं, बार के सदस्य लोगों और न्यायाधीशों के बीच अहम कड़ी हैं. वे हमें लोगों के दर्द को देखने का मौका देते हैं.”
मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि गांवों से लेकर महानगरों तक के मुकदमा करने वाले लोग इंसाफ की मांग कर रहे हैं. कानूनी समुदाय, कोर्ट को न्याय देने की अनुमति देता है. पिछले साल मैंने बुनियादी ढांचे में सुधार के बारे में बात की थी. हमने पिछले 6 महीनों में कई बुनियादी उपाय किए हैं. फाइबर ऑप्टिक्स इंटरनेट का विस्तार किया गया है, चैंबर के लिए वेटिंग लिस्ट में शामिल वकीलों के लिए क्यूबिकल्स का निर्माण किया गया है, बार की महिला सदस्यों के लिए नया लाउंज बनाया गया है. अभी ये सिर्फ शुरुआत है.
‘मेरे 25 सालों के अनुभव में…’
चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि 25 सालों के जजशिप में मेरा अनुभव है कि अदालतें सारी मेहनत आम आदमी की जिंदगी को आसान बनाने के लिए करती हैं. महिलाओं की गरिमा की सुरक्षा हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं. हमारे विद्वान कवियों ने इसका जिक्र किया है.