नई दिल्ली,
ध्यानचंद…वो भारतीय खिलाड़ी, जिन्हें हॉकी जादूगर कहा जाता था, जिनकी धाक दुनिया भर में गूंजती थी. ‘दद्दा’ के नाम से मशहूर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक जब मैदान में चलती थी, तो बड़ी-बड़ी टीमें उनके खेल के आगे चित हो जाती थी… यहां तक कहा गया कि उनकी स्टिक में मैग्नेट (चुंबकीय शक्ति) है, जिससे गेंद उनके उनके कब्जे में ही रहती है. उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई, लेकिन जांच करने वालों के हाथ कुछ नहीं लगा. लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक दिलाने वाले ध्यानचंद के जीवट का हर कोई कायल रहा.
ध्यानचंद की आज 119वीं जयंती है. 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद की जयंती पर हर साल देश में 29 अगस्त को खेल दिवस मनाया जाता है. मेजर ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे दर्जे का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण तो दिया गया, लेकिन सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के लिए उनके नाम की बार-बार अनदेखी की गई
इस बात पर सबसे ज्यादा चर्चा तब हुई, जब 2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सचिन तेंदुलकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. तब 40 साल के तेंदुलकर यह सम्मान पाने वाले पहले खिलाड़ी बने.
उसी दौर में यह मांग उठी कि भारत रत्न अगर किसी खिलाड़ी को ही दिया जाना था, तो उस पर पहला हक ध्यानचंद का बनता था. क्योंकि जो खेलों में कमाल उन्होंने किया, वह सचिन से बहुत आगे था. उस समय ध्यानचंद के परिवार ने भी कहा था कि सचिन को भी भारत रत्न मिलना चाहिए था, लेकिन ध्यानचंद को भी मरणोपरांत यह सम्मान मिलना चाहिए था.
ध्यानचंद के बेटे देवेंद्र ध्यानचंद ने की भारत रत्न पर ये मांग…
ध्यानचंद को अब तक भारत रत्न ना मिलने के सवाल को लेकर aajtak.in ध्यानचंद के परिवार से बात की. 11 भाई-बहनों में 10वें नंबर पर ध्यानचंद के बेटे देवेंद्र ध्यानचंद वर्तमान में लखनऊ में रह रहे हैं.
खेल दिवस के कार्यक्रम में हिस्सा लेने सैफई पहुंचे देवेंद्र से जब पूछा गया कि भारत-रत्न के लिए दद्दा के नाम की सिफारिश कई बार की गई, लेकिन उन्हें यह सम्मान अब तक नहीं मिला. इस पर वह बोले, ‘आज पूरा देश उनको याद कर रहा है, उनके नाम पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जा रहा है. रही भारत रत्न देने की बात तो यह काम सरकार का है, उम्मीद है कि आने वाले दिनों में उनको इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा.’ देवेंद्र ध्यानचंद की उम्र अभी 65 साल है, वह एयर इंडिया से रिटायर्ड हो चुके है. देवेंद्र फिलहाल लखनऊ में रहते हैं. देवेंद्र भी स्थानीय स्तर पर हॉकी खिलाड़ियों को कोचिंंग दे चुके हैं.
देवेंद्र ध्यानचंद से जब पूछा गया कि क्या सरकार से हाल-फिलहाल भारत-रत्न मिलने को लेकर कोई आश्वासन मिला है. इस पर वह बोले, ‘हाल-फिलहाल तो कोई आश्वासन नहीं मिला है.’ हालांकि सरकार ने 2021 में खेल के क्षेत्र में दिए जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ का नाम बदल कर ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’ कर दिया था.
कब-कब हुई ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग
22 दिसंबर 2011 को इंडियन हॉकी फेडरेशन ने ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की सिफारिश की थी. फिर क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी के नेतृत्व में भी एक प्रतिनिधिमंडल 12 जुलाई 2013 को तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह से मिला था और उन्हें इस दिग्गज खिलाड़ी का बायोडाटा सौंपा. कहा गया कि इसकी घोषणा कुछ महीनों में ही कर दी जाएगी, लेकिन पासा पलट गया.
फिर अगस्त 2014 में भी महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की सिफारिश की गई थी. खेल मंत्रालय की इस सिफारिश पर गृह मंत्रालय ने मुहर लगा दी है. तब गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने इसकी जानकारी संसद को भी दी थी, हालांकि तब भी मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
अगले साल यानी साल 2015 में मोदी सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित मदन मोहन मालवीय (मरणोपरांत) को भारत रत्न सम्मान दिया, लेकिन इस दिग्गज खिलाड़ी की ओर शायद सरकार का ध्यान नहीं गया.
ये फोटो 8 जनवरी 2016 का है, जब ध्यानचंद के बेटे और पूर्व हॉकी खिलाड़ी अशोक कुमार पूर्व हॉकी खिलाड़ियों और फैन्स के साथ दिल्ली में जुटे थे. तब ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने की मांग की गई थी.
बर्लिन ओलंपिक में जब हिटलर के सामने किया कमाल…
बर्लिन आलंपिक में हॉकी का फाइनल भारत और जर्मनी के बीच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था. लेकिन उस दिन बारिश की वजह से मैच अगले दिन 15 अगस्त को खेला गया. बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में उस दिन 40 हजार दर्शकों के बीच जर्मन तानाशाह हिटलर भी मौजूद था.
हाफटाइम तक भारत एक गोल से आगे था. इसके बाद ध्यानचंद ने अपने स्पाइक वाले जूते निकाले और खाली पांव कमाल की हॉकी खेली. इसके बाद, तो भारत ने एक के बाद एक कई गोल दागे.भारत ने उस फाइनल में जर्मनी को 8-1 से मात दी. इसमें तीन गोल ध्यानचंद ने किए. दरअसल, 1936 के ओलंपिक खेल शुरू होने से पहले एक अभ्यास मैच में भारतीय टीम जर्मनी से 4-1 से हार गई थी. ध्यानचंद ने अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में लिखा, ‘मैं जब तक जीवित रहूंगा इस हार को कभी नहीं भूलूंगा. इस हार ने हमें इतना हिला कर रख दिया कि हम पूरी रात सो नहीं पाए.’
तब हिटलर से ध्यानचंद्र ने कहा- हिंदुस्तान में खुश हूं
इस शानदार प्रदर्शन से खुश होकर हिटलर ने ध्यानचंद खाने पर बुलाया और उनसे जर्मनी की ओर से खेलने को कहा. इसके बदले उन्हें मजबूत जर्मन सेना में कर्नल पद का प्रलोभन भी दिया. लेकिन ध्यानचंद ने कहा, ‘हिंदुस्तान मेरा वतन है और मैं वहां खुश हूं.’
ध्यानचंद के करियर से जुड़े रोचक तथ्य
– आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मेजर ध्यानचंद को बचपन में हॉकी नहीं, कुश्ती से ज्यादा लगाव था.
– चूंकि ध्यान सिंह रात में बहुत अभ्यास करते थे, इसलिए उन्हें अपने साथी खिलाड़ियों द्वारा उपनाम ‘चांद’ दिया गया. दरअसल, उनका यह अभ्यास चांद के निकल आने पर शुरू होता था.
– एक बार उन्होंने कहा था- अगर किसी ने मुझसे पूछा कि वह सबसे अच्छा मैच कौन-सा था, जो मैंने खेला, तो मैं कहूंगा कलकत्ता कस्टम्स और झांसी हीरोज के बीच 1933 का बेटन कप फाइनल.
– भारत ने 1932 के ओलंपिक के दौरान अमेरिका को 24-1 और जापान को 11-1 से हराया. ध्यानचंद ने उन 35 गोलों में से 12, जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल दागे. इससे उन्हें ‘हॉकी का जुड़वां’ कहा गया.
– एक बार जब ध्यानचंद एक मुकाबले के दौरान गोल नहीं कर पा रहे थे, तो उन्होंने गोल पोस्ट की माप पर आपत्ति जताई. आखिरकार वे सही पाए गए. गोल पोस्ट अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत निर्धारित अधिकारिक न्यूनतम चौड़ाई का नहीं था.
– 22 साल तक भारत के लिए खेले और 400 इंटरनेशनल गोल किए. कहा जाता है- जब वो खेलते थे, तो मानो गेंद स्टिक पर चिपक जाती थी. हॉलैंड में एक मैच के दौरान चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई. जापान में एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई.
– ध्यानचंद का 3 दिसंबर, 1979 को दिल्ली में निधन हो गया. झांसी में उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया, जहां वे हॉकी खेला करते थे.