आतंकियों और गैंगस्टर्स के पास मिले रहे US मेड NATO के आधुनिक हथियार… आखिर ये भारत पहुंच कैसे रहे हैं?

नई दिल्ली,

पंजाब के शेरोन में एक चेकपॉइंट पर तैनात पुलिस दल ने देखा कि एक कार को लापरवाही से चलाया जा रहा है. उन्होंने तुरंत मारुति सुजुकी स्विफ्ट को रुकने का इशारा किया. कार में बैठे लोगों ने कार रोकने की बजाय भागने की कोशिश की। हालांकि, वे भाग नहीं पाए और पुलिस बैरिकेड्स से टकरा गए.

पुलिस ने पाया कि कार में हरप्रीत सिंह उर्फ ​​हैप्पी और लवप्रीत सिंह बैठा हुआ था, जिनका आपराधिक इतिहास है. वाहन की तलाशी में चार ग्लॉक 19 पिस्टल, जिनमें से एक पर ‘मेड फॉर NATO आर्मी’ लिखा था, चार मैगजीन, सात जिंदा कारतूस और 4.8 लाख रुपये की हवाला की रकम मिली.

इस कामयाब ऑपरेशन के बाद पंजाब के डीजीपी ने कहा कि हरप्रीत सिंह का सीधा संबंध पाकिस्तान स्थित एक तस्कर से था, जो ड्रोन के जरिए भारत-पाकिस्तान सीमा पार से हथियार और ड्रग्स की सप्लाई करता था. तरण तारन के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) गौरव तोरा ने कहा, ‘जांच में खुलासा हुआ है कि आरोपी हरप्रीत ने कई बार अपराधियों को हथियारों की सप्लाई की है.’

NATO के लिए बनाए गए हथियारों की बरामदगी पंजाब के इस घटना तक ही सीमित नहीं है. यह घटना दिखाती है कि कैसे अमेरिका द्वारा बनाए गए और NATO के लिए भेजे गए हथियार भारत में आतंकवादियों और अपराधियों के हाथों में पहुंच रहे हैं, जो देश की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों से भी इसी तरह के NATO-ग्रेड हथियार और गोला-बारूद बरामद किए गए हैं. इस तरह की रिपोर्ट्स से पता चलता है कि ग्लोबल हथियारों की तस्करी और आतंकवाद के बीच एक खतरनाक गठजोड़ बना हुआ है.ऐसे में सवाल उठता है कि ये हथियार वैध सैन्य भंडार से काले बाजार में कैसे पहुंचते हैं, और फिर वे भारत में कैसे और क्यों आते हैं?

अफगानिस्तान में छोड़े गए अमेरिकी हथियार
2021 में अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी के दौरान एक बड़ी मात्रा में सैन्य उपकरण पीछे छूट गए. जिनमें से अधिकांश तालिबान के कब्जे में चले गए. तालिबान के इस नए हथियार भंडार ने आतंकवादी संगठनों और गैर-राज्यीय तत्वों के लिए उन्नत हथियारों की आपूर्ति को संभव बनाया.अमेरिकी रक्षा विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘अफगान सरकार के पास अमेरिकी वित्तपोषित उपकरणों की कीमत 7.12 बिलियन डॉलर थी, जिनमें से अधिकांश अब तालिबान के कब्जे में हैं.’

रिपोर्ट्स के अनुसार तालिबान ने इन हथियारों को बेच दिया. जो बाद में जैश-ए-मुहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे आतंकवादी संगठनों द्वारा भारत के खिलाफ ऑपरेशनों में इस्तेमाल किए गए. इसी तरह के अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल इज़राइल-हमास युद्ध के दौरान भी देखा गया है, जहां सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में हमास के आतंकवादियों को M4 असॉल्ट राइफल्स के साथ देखा गया.

कश्मीर में अमेरिकी हथियारों का खतरनाक उपयोग
पंजाब और जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादी हाल के समय में अमेरिकी हथियारों का उपयोग कर रहे हैं. इन आतंकवादियों ने अमेरिका द्वारा NATO सैनिकों के लिए छोड़े गए स्टील कोर बुलेट्स और नाइट-विजन ग्लासेज का उपयोग किया है.

जनवरी 2023 में NBC न्यूज ने भारतीय अधिकारियों के हवाले से बताया कि पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादियों के पास M4, M16 और अन्य अमेरिकी निर्मित हथियार और गोला-बारूद हैं. M4 कार्बाइन और M16 असॉल्ट राइफल्स जैसे अमेरिकी हथियार 2020 में कश्मीर में सामने आने लगे थे.

एक नई ‘स्टिकी बम’ भी कश्मीर में हाल ही में देखी गई. मई में कश्मीर में हिंदू तीर्थयात्रियों की एक बस पर हुए हमले में इसी तरह के बम का उपयोग किया गया था, जिसमें चार तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 24 घायल हुए. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) इस मामले की जांच कर रही है कि क्या आतंकवादियों ने ‘स्टिकी बम’ का इस्तेमाल किया था.एक जुलाई की रिपोर्ट में द ट्रिब्यून ने बताया कि कश्मीर में अमेरिकी, ऑस्ट्रियाई और तुर्की के बने हथियार और गोला-बारूद भी बरामद किए गए हैं.

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