भारत ने अब भेजा नोटिस, लेकिन पाकिस्तान को सिंधु का पानी देने को राजी हुआ ही क्यों था?

नई दिल्ली

भारत ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए 64 साल पुरानी सिंधु जल संधि की समीक्षा के लिए पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजा है। भारत की तरफ से इस नोटिस में परिस्थितियों में आए ‘मौलिक और अप्रत्याशित’ बदलावों और सीमा पार से लगातार जारी आतंकवाद के प्रभाव का हवाला दिया है। पड़ोसी मुल्क को सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) के अनुच्छेद 12(3) के तहत 30 अगस्त को नोटिस जारी किया गया।

भारत ने आखिर क्यों भेजा नोटिस?
भारत की अधिसूचना में परिस्थितियों में आए मौलिक और अप्रत्याशित बदलावों पर प्रकाश डाला गया है, जिसके लिए संधि के विभिन्न अनुच्छेदों के तहत दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है। भारत की तरफ से विभिन्न चिंताओं में से महत्वपूर्ण हैं जनसंख्या में परिवर्तन, पर्यावरणीय मुद्दे तथा भारत के उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के विकास में तेजी लाने की आवश्यकता। भारत ने समीक्षा की मांग के पीछे एक कारण सीमापार से लगातार जारी आतंकवाद का प्रभाव भी बताया है। डेढ़ साल में यह दूसरी बार है जब भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। पिछले वर्ष जनवरी में भारत ने पाकिस्तान को पहला नोटिस जारी कर संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की थी। इसकी वजह थी कि इस्लामाबाद कुछ विवादों को निपटाने में ‘अड़ियल रवैया’ अपना रहा था। भारत ने पिछला नोटिस इसलिए जारी किया था क्योंकि वह मध्यस्थता न्यायालय की नियुक्ति से विशेष रूप से निराश था।

क्या कह रहा पाकिस्तान?
पाकिस्तान का कहना है कि वह इस समझौते को ‘महत्वपूर्ण’ मानता है और उम्मीद करता है कि नयी दिल्ली भी 64 साल पहले हस्ताक्षरित इस द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों का पालन करेगा। पाकिस्तान का कहना है कि दोनों देशों के बीच सिंधु जल आयुक्तों का एक तंत्र है और संधि से जुड़े सभी मुद्दों पर इसमें चर्चा की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि संधि से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए कोई भी कदम समझौते के प्रावधानों के तहत ही उठाया जाना चाहिए। सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच प्रमुख समझौतों में से एक है जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है। दोनों पड़ोसियों के बीच युद्धों और तनावों के बावजूद इसका पालन किया गया है।

1960 में हुआ था सिंधु जल समझौता
19 सितम्बर, 1960 को कराची, पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण क्षण आया, जब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति मार्शल मोहम्मद अयूब खान ने सिंधु नदी पर साझेदारी स्थापित करने के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इससे पहले दोनों देशों के बीच 9 साल तक बातचीत चली थी। इसका एकमात्र उद्देश्य सीमा पार की छह नदियों का प्रबंधन करना था। इसमें विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता था। वह कई सीमा पार नदियों के जल के उपयोग पर दोनों पक्षों के बीच सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक तंत्र स्थापित करता है। समझौते के तहत पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों, चिनाब, झेलम और सिंधु से सम्पूर्ण जल प्राप्त होता है, जबकि भारत का सतलुज, व्यास और रावी नदियों पर पूर्ण अधिकार है। संधि के प्रावधानों के अनुसार, 207.2 अरब घन मीटर की कुल आपूर्ति में से, तीन आवंटित नदियों से भारत का हिस्सा 40.7 अरब घन मीटर या लगभग 20 प्रतिशत है, जबकि पाकिस्तान को 80 प्रतिशत मिलता है।

भारत ने यह समझौता क्यों किया था?
इंडस डिवाइडेड: इंडिया, पाकिस्तान एंड द रिवर बेसिन डिस्प्यूट में पर्यावरण इतिहासकार डैनियल हेन्स ने 1948 को पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रांत के निवासियों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण वर्ष बताया था। यहां के लोग सिंचाई के लिए कृत्रिम नहरों पर बहुत अधिक निर्भर थे। उस समय, भारतीय नेताओं ने अपने क्षेत्र के भीतर सभी नदी के पानी पर पूर्ण स्वामित्व का दावा किया था। हेन्स ने लिखा है, उस तर्क से, भारतीय इंजीनियर सतलुज नदी के साथ जो चाहें कर सकते थे, जो दोनों पंजाबों में नहरों को पानी देती थी, भले ही उसके कार्यों से पाकिस्तान के निचले हिस्से में उपलब्ध पानी कम हो जाए।

इसके विपरीत, पाकिस्तान ने सतलुज के पानी पर अपने स्थापित अधिकारों का दावा किया और मांग की कि भारतीय कार्यों से निचले हिस्से के स्तर में कमी न आए। यह पाकिस्तान की दो प्रमुख सिंचाई परियोजनाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था: रावी पर माधोपुर और सतलुज पर फिरोजपुर, दोनों भारत में स्थित हैं। विवाद में जल्द ही सिंधु बेसिन की सभी प्रमुख नदियां सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज शामिल हो गईं। आजादी के बाद ये नदियां भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष के लिए संभावित मुद्दा बन गईं। इस विवाद को हल करने के लिए ही भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच समान जल वितरण सुनिश्चित करना था।

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