देश में दूध कम, घी का प्रोडक्शन ज्यादा… आपकी पांचों उंगलियां घी में या चर्बी में?

नई दिल्ली,

आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डू प्रसादम का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. CM चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया है कि जिस घी से लड्डू का प्रसाद तैयार किया जाता था, उसमें मछली के तेल और जानवरों की चर्बी की मिलावट पाई गई है. इस घटना के बाद देशभर के लोग घी के घोटाले पर बात कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि क्या तिरुपति मंदिर के प्रसाद में बहुत बड़ा पाप हुआ है? एक ज़माने में जब लोग लंबी उम्र तक जीते थे, तब समाज कहता था कि इन लोगों ने ज़रूर अपनी जवानी में अच्छा दूध-दही और घी खाया होगा. इसी तरह जब कोई व्यक्ति कुछ शुभ बोलता है तो लोग कहते हैं कि आपके मुंह में घी-शक्कर. सफल व्यक्ति के लिए कहते हैं कि उसकी पांचों उंगलियां घी में हैं और अपने भारत के लिए कहते हैं कि यहां दूध और घी की नदियां बहती हैं.

लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमारे देश में नकली दूध और नकली घी की नदियां बह रही हैं और ये नकली घी इस नदी में तैरते हुए अब तिरुपति मन्दिर के प्रसाद में भी पहुंच गया है. विडम्बना ये है कि भारत में औसतन हर 20 दिनों में कहीं ना कहीं नकली और मिलावटी घी के खिलाफ कार्रवाई होती है और ये घी आपके घरों की रसोई में भी अपनी जड़ें जमाकर बैठ चुका है, लेकिन जैसे ही ये घी मन्दिर के प्रसाद में पहुंचा तो ये भारत की सबसे बड़ी खबर बन गया है और अब घर-घर में इस घी वाले घोटाले की चर्चा हो रही है. ऐसे में सवाल ये भी है कि क्या अगर किसी मिठाई की दुकान पर रखे लड्डुओं की लैब में जांच होगी तो क्या उन लड्डुओं के घी में भी यही जानवरों की चर्बी और फैट हो सकता है?

अब खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण करेगा जांच
इस मुद्दे पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से फोन पर बात की है और ये भी कहा है कि मोदी सरकार इस पूरे मामले की जांच भारत के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण से कराएगी.

रिपोर्ट में सामने आईं तीन बातें
अब FSSAI की टीम उस रिपोर्ट की जांच करेगी, जिसमें ये दावा है कि तिरुपति मन्दिर में प्रसाद के लिए बनने वाले लड्डुओं के घी में सूअर की चर्बी, बीफ का FAT और मछली का तेल इस्तेमाल होता था और इस रिपोर्ट को लेकर भी तीन बड़ी बातें पता चली हैं.

पहली बात- ये रिपोर्ट उन लड्डुओं और घी के सैंपल्स पर आधारित है, जो इसी साल जुलाई के पहले हफ्ते में जांच के लिए भेजे गए थे. दूसरी बात- इन सैंपल्स की जांच गुजरात की एक सरकारी लैब में हुई है, जिसका नाम है सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टोक्स एंड फूड. ये लैब गुजरात के आणंद ज़िले में है और इसका संचालन भारत सरकार के एक बोर्ड द्वारा किया जाता है, जिसका नाम नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड है.
तीसरी बात- जिन सैंपल्स को जांच के लिए भेजा गया, वो सैंपल मंदिर समिति ने खुद इस सरकारी लैब को भेजे थे और ये रिपोर्ट 17 जुलाई को ही सार्वजनिक हो गई थी.

रिपोर्ट जुलाई में आई तो अब क्यों उठाया मुद्दा?
अब बहुत सारे लोग पूछ रहे हैं कि जब ये रिपोर्ट 17 जुलाई को आ गई थी तो मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने ये मुद्दा दो महीने बाद सितम्बर में क्यों उठाया? तो सच्चाई ये है कि आन्ध्र प्रदेश की सरकार ने ये मुद्दा जुलाई के महीने में ही उठाया था और इसकी जांच के बाद खराब क्वॉलिटी का घी भेजने वाली एक डेयरी कम्पनी को ब्लैकलिस्ट भी कर दिया था, लेकिन ये मामला अभी इसलिए उछला क्योंकि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इस पर हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बयान दिया था.

देश में इतना है घी और दूध का उत्पाद
भारत में हर साल लगभग 23 हज़ार करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है, जिनमें से घी बनाने के लिए सिर्फ 10 पर्सेंट दूध ही उपलब्ध होता है और ये 10 पर्सेंट होता है 2300 करोड़ लीटर दूध और एक किलो घी बनाने के लिए 30 लीटर दूध की आवश्कता होती है, जिसका मतलब ये हुआ कि इतने दूध से पूरे साल में 76 करोड़ किलो घी ही बन सकता है, जबकि हमारे देश की आबादी 145 करोड़ है और अगर हम ये मान लें कि इन 145 करोड़ लोगों में आधे लोग भी घी खाते हैं तो उन्हें सालभर के लिए एक किलो ही घी मिलेगा, जबकि हर व्यक्ति सालभर में अधिकतम 4 से 5 किलो घी खाने में इस्तेमाल करता है और इससे आप ये समझ सकते हैं कि हमारे देश में जितना घी चाहिए, उतना दूध है ही नहीं और इसी के कारण जानवरों की चर्बी से मिलावटी घी बनाया जाता है. और ये घी आपके घर से लेकर, मिठाई की दुकानों और अब शायद तिरुपति मन्दिर के प्रसाद में भी पहुंच गया है और हो सकता है कि बाकी मन्दिरों में भी ऐसे मिलावटी घी का इस्तेमाल हो रहा हो.

नकली घी बनाने के लिए होता है इन चीजों का इस्तेमाल
यहां आपके मन में ये सवाल भी होगा कि तिरुपति मन्दिर के लड्डुओं में BEEF TALLOW, LARD और मछली के तेल ही क्यों मिला? तो इसकी वजह ये हो सकती है कि नकली घी बनता ही इन चीजों से हैं, इसमें लार्ड उस सफेद पदार्थ को कहते हैं, जो सूअर की चर्बी को पिघलाने पर निकलता है. जब मिलावटी घी बनाया जाता है तो उसे दानेदार बनाने के लिए और उसमें घी जैसी सफेद परत और चिकनाहट पैदा करने के लिए जानवरों की चर्बी पिघलाकर डाली जाती है और इससे असली और मिलावटी घी के बीच का जो अंतर होता है, वो खत्म हो जाता है. एक किलोग्राम घी को तैयार करने के लिए उसमें जानवरों की 500 ग्राम चर्बी, 300 ग्राम रिफाइंड, PALM OIL और फिश ऑइल, 200 ग्राम असली देसी घी और 100 ग्राम केमिकल मिलाया जाता है. ये वही केमिकल होते है, जिससे जानवरों की चर्बी वाले घी से देसी घी की सुगंध आने लगती है और जब आप बाज़ार में घी खरीदने के लिए जाते हैं तो आप यही देखते हैं कि उसकी सुगंध कैसी है, उसका रंग कैसा है, उसमें कितनी चिकनाहट है और वो घी कितना दानेदार है. FSSAI और केन्द्रीय उपभोक्ता मंत्रालय ने अपनी अलग अलग रिपोर्ट्स में माना है कि शुद्ध देसी घी में जानवरों की चर्बी और उनका फैट नहीं होता, जबकि मिलावटी घी इसी चर्बी और फैट से बनता है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल जितना मिलावटी और नकली घी बनता है, उसमें से 5 पर्सेंट को भी पुलिस और सरकारें पकड़ नहीं पातीं और ये सारा नकली घी आसानी से लोगों तक पहुंच जाता है और अब तो ये शायद मन्दिर के प्रसाद में भी पहुंच गया है.

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