नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले को नई पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया है। इसी के साथ सर्वोच्च अदालत ने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई थी। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर विचार के लिए मानदंड निर्धारित किए।
4-3 के बहुमत से फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 के बहुमत में कहा कि मामले के न्यायिक रिकॉर्ड को सीजेआई के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि 2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की वैधता पर फैसला करने के लिए एक नई पीठ गठित की जा सके। जनवरी 2006 में हाईकोर्ट ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था जिसके तहत एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। अदालत की कार्यवाही शुरू होने पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार अलग-अलग मत हैं जिनमें तीन असहमति वाले फैसले भी शामिल हैं।
सीजेआई ने क्या कहा
भारत के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने अपने और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अलग-अलग असहमति वाले फैसले लिखे हैं। जस्टिस सूर्यकांत अपना असहमति वाला फैसला सुना रहे हैं।
1967 का फैसला क्या था
पांच जजों की संविधान पीठ ने 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में फैसला दिया था कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। हालांकि, 1981 में संसद द्वारा एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किए जाने पर इस प्रतिष्ठित संस्थान को अपना अल्पसंख्यक दर्जा फिर मिल गया था।