सुस्त पड़ी देश की इकॉनमी, कैसे पूरा होगा $5 ट्रिलियन तक पहुंचने का सपना?

नई दिल्ली

देश की इकॉनमी दूसरी तिमाही में सुस्त पड़ गई है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि घटकर 5.4% पर आ गई जो इसका करीब दो साल का निचला स्तर है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के खराब प्रदर्शन के कारण देश की इकॉनमी की रफ्तार सुस्त पड़ी है। एक साल पहले की समान तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 8.1% और पिछली तिमाही में 6.7% थी। इससे पहले फाइनेंशियल ईयर 2022-23 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 4.3% था। हालांकि भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है। जुलाई-सितंबर तिमाही में चीन को जीडीपी ग्रोथ रेट 4.6% था। लेकिन इससे भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने का इंतजार बढ़ सकता है।

भारत के अगले तीन साल में 5 ट्रिलियन डॉलर और 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने का अनुमान है। लेकिन दूसरी तिमाही के आंकड़े निराशाजनक हैं। जानकार पहले ही यह मानकर चल रहे थे कि दूसरी तिमाही में खपत घटने से देश की जीडीपी ग्रोथ कम रहेगी। लेकिन, यह उनके अनुमान से भी कम रही। ईटी के एक सर्वे में 17 अर्थशास्त्रियों ने इसके 6.5% रहने का अनुमान जताया था जबकि Reuters के एक पोल में भी यह बात सामने आई थी। आरबीआई ने 7% का अनुमान जताया था।

क्यों आई सुस्ती?
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक विनिर्माण और खनन क्षेत्रों के खराब प्रदर्शन की वजह से दूसरी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट आई। जीडीपी एक निश्चित अवधि में देश की सीमा में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को बताता है। हालांकि अच्छी बात यह रही कि कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पिछली तिमाही में 3.5% हो गई जो एक साल पहले की समान अवधि में 1.7% थी। लेकिन विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 2.2% पर आ गई जो पिछले साल की समान अवधि में 14.3% की दर से बढ़ा था। पिछली तिमाही में ‘खनन और उत्खनन’ क्षेत्र का जीवीए भी बड़ी गिरावट के साथ 0.01 प्रतिशत पर आ गया जबकि एक साल पहले की समान तिमाही में यह 11.1% बढ़ा था।

आर्थिक जानकारों के मुताबिक दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ सुस्त पड़ने के कई कारण हैं। इसमें बढ़ती मंहगाई और ऊंचा इंटरेस्ट रेट अहम है। इसके साथ वेतन में भी उल्लेखनीय इजाफा नहीं हुआ जिससे खपत को बढ़ावा नहीं मिला। कई केंद्रीय मंत्रियों ने आरबीआई से ब्याज दरों में कटौती करने की अपील की है। इससे कर्ज लेना सस्ता होगा और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। जुलाई-सितंबर तिमाही में कंपनियों के नतीजे भी बेहद निराशाजनक रहे। इससे शेयर बाजार में भी बड़ी गिरावट आई। इससे विदेशी निवेशक भी भारत से तेजी से पैसा निकाल रहे हैं।

आगे कैसी रह सकती है चाल?
दूसरी तिमाही में कंपनियों के कमजोर नतीजों ने नए निवेश और विस्तार योजनाओं को लेकर चिंता बढ़ा दी है। इसे इकॉनमी के लिए भी खतरे के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि जानकारों का कहना है कि दूसरी छमाही में जीडीपी ग्रोथ बेहतर रह सकती है। RBI ने इस फाइनेंशियल ईयर में जीडीपी ग्रोथ 7.2% रहने के अनुमान जताया है। इसके लिए इकॉनमी को दूसरी छमाही में काफी बेहतर प्रदर्शन करना होगा। अगर आरबीआई अगली एमपीसी मीटिंग में ब्याज दरों में कटौती करता है, तो खपत को बढ़ावा मिल सकता है। इसका असर जीडीपी ग्रोथ पर भी दिख सकता है।

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