नई दिल्ली
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास का कार्यकाल 10 दिसंबर को समाप्त हो रहा है। लेकिन, उनके उत्तराधिकारी का कोई स्पष्ट नाम सामने नहीं आया है। इससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या दास को तीसरा कार्यकाल मिलेगा? ऐसा हुआ तो वह आरबीआई के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले गवर्नर बन जाएंगे। आइए, यहां जानते हैं कि दास का उत्तराधिकारी तलाश पाना क्यों आसान नहीं है। उनके कार्यकाल की उपलब्धियां क्या रही हैं। अभी क्या चुनौतियां हैं।
अभी तक सरकार या आरबीआई की तरफ से कोई संकेत नहीं मिला है कि 67 वर्षीय दास को कार्यकाल विस्तार मिलेगा या उनकी जगह कोई और आएगा। नियुक्ति समिति, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह शामिल हैं, इस पद पर अंतिम फैसला लेंगे।
आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति हर तीन साल में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति करती है। इसके लिए कोई निश्चित नियम या योग्यता सूची नहीं है। बस, समिति के सदस्य अर्थशास्त्र, बैंकिंग, वित्त या लोक प्रशासन के विशेषज्ञ होने चाहिए। 10 दिसंबर को दास का कार्यकाल समाप्त होने वाला है। फिर भी उत्तराधिकारी के बारे में कोई चर्चा नहीं है। इससे अटकलें तेज हो गई हैं कि दास को एक और कार्यकाल मिल सकता है।
बढ़ सकता है शक्तिकांत दास का कार्यकाल
अर्थशास्त्रियों और दिल्ली के कुछ नौकरशाहों में अटकलें हैं कि दास को उनके अनुबंध पर विस्तार मिलने की उम्मीद है। कारण है कि उन्होंने महामारी जैसे झटकों के दौरान अर्थव्यवस्था को संभाला है। मीडिया या विश्लेषकों के बीच गवर्नर पद के लिए किसी अन्य उल्लेखनीय उम्मीदवार के नाम की चर्चा नहीं हो रही है। मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल में निरंतरता को प्राथमिकता दी है, अपने मंत्रिमंडल और सलाहकारों में प्रमुख मंत्रियों को बनाए रखा है। कारण है कि वह 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करना चाहते हैं।
2018 में गवर्नर बनने वाले दास को तीन साल बाद फिर से नियुक्त किया गया था। वह अब RBI के दूसरे सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले गवर्नर हैं। उनसे पहले बेनेगल रामा राव 1949 में साढ़े सात साल तक इस पद पर रहे थे। एक और कार्यकाल मिलने पर दास RBI के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले गवर्नर बन सकते हैं। बशर्ते वह पूरा कार्यकाल पूरा करें।
क्यों दास का कार्यकाल विस्तार मुमकिन?
सवाल यह है कि दास में ऐसा क्या खास है कि सरकार ने अभी तक उत्तराधिकारी का चयन नहीं किया है? इसके कोई आधिकारिक कारण तो सामने नहीं आए हैं, लेकिन कुछ अनुमान जरूर लगाए जा सकते हैं।
पहला कारण यह हो सकता है कि सरकार आरबीआई में बड़े बदलाव नहीं चाहती। आरबीआई ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए कई नए नियम बनाए हैं। इन्हें पूरी तरह से लागू किया जाना है या फिर से समीक्षा की जानी है। दास के नेतृत्व में यह प्रक्रिया आसान हो सकती है।
उदाहरण के लिए, एक्सपेक्टेड क्रेडिट लॉस (ECL) फ्रेमवर्क। यह बैंकों के लिए एक बड़ा बदलाव है। अभी बैंक कर्ज के नुकसान होने के बाद ही प्रावधान करते हैं। लेकिन, ECL के तहत उन्हें पहले से ही संभावित नुकसान के लिए धनराशि अलग रखनी होगी। जैसे बरसात के लिए पैसे बचाना। बैंकों को पहले से ही क्रेडिट डिफॉल्ट जोखिम का अनुमान लगाना होगा। वे पिछले डिफॉल्ट के रुझानों का विश्लेषण करेंगे, भविष्य के जोखिमों की भविष्यवाणी करेंगे और उसी के अनुसार धनराशि अलग रखेंगे। इसलिए जितना अधिक जोखिम भरा कर्ज होगा, उतना ही अधिक प्रावधान करना होगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि डिफॉल्ट होने की स्थिति में बैंकों के पास मजबूत रिजर्व हो।
दास ने 2020 में एनबीएफसी के लिए ECL फ्रेमवर्क लागू किया था। वह इस प्रक्रिया से अच्छी तरह वाकिफ हैं। दास जानते हैं कि इसमें क्या चुनौतियां और समाधान हैं। इसलिए, बैंकों के लिए ECL को लागू करने में उनका अनुभव काम आ सकता है।
आरबीआई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए कर्ज पर नियमों को सख्त बनाने पर भी विचार कर रहा है। ये प्रोजेक्ट जोखिम भरे होते हैं। इन प्रोजेक्ट्स को पूरा होने और कमाई शुरू होने में सालों लग जाते हैं। इसलिए बैंकों को अनुमान लगाना होता है कि प्रोजेक्ट कब कमाई शुरू करेगा और कितनी कमाई होगी। तभी वे कर्ज की राशि और ब्याज दर तय कर सकते हैं। लेकिन, कोई प्रोजेक्ट रुक जाता है या रद्द हो जाता है तो बैंकों को नुकसान होता है। ऐसे में प्रोजेक्ट फाइनेंस लोन को इस तरह से बनाया जाता है कि प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद ही लोन की किश्तें शुरू हों।
जोखिम को देखते हुए RBI बैंकों को बफर के रूप में अधिक धनराशि रखने के लिए कह रहा है। प्रावधानों को 0.4% से बढ़ाकर 5% किया जा रहा है। यह बैंकों की बैलेंस शीट को मजबूत बनाने के लिए किया जा रहा है।
RBI के पास रुपये की स्थिरता, महंगाई पर नियंत्रण, ब्याज दरों में बदलाव और बैंकों के कर्ज और जमा के बीच संतुलन बनाए रखने जैसे कई काम हैं। बेशक, नया गवर्नर इन सभी कामों को संभाल सकता है। लेकिन, दास के पास अनुभव का लाभ है। इसलिए हो सकता है कि सरकार इस महत्वपूर्ण समय में जब नियामक बदलाव हो रहे हैं, किसी नए व्यक्ति को जिम्मेदारी सौंपने का जोखिम न उठाना चाहे।
सरकार का विश्वास किया है हासिल
दूसरा कारण यह हो सकता है कि दास ने पिछले कुछ वर्षों में सरकार का विश्वास हासिल किया है। एक नए RBI गवर्नर को सभी चीजों को समझने में समय लगेगा। अगर नए गवर्नर और सरकार के बीच मतभेद होते हैं तो यह किसी के लिए भी अच्छी स्थिति नहीं होगी। लेकिन, शक्तिकांत दास के साथ ऐसा होने की संभावना कम है क्योंकि उनके कार्यकाल में ऐसे मतभेद कम हुए हैं।
उदाहरण के लिए RBI सरकार को अपना लाभ कैसे देता है। हर साल RBI अपने लाभ का कुछ हिस्सा रिजर्व के रूप में रखता है और बाकी सरकार को ट्रांसफर करता है। यह पैसा कर्ज देने, कमीशन और विदेशी मुद्रा संपत्ति पर लाभ से आता है।
इस साल RBI ने बिना किसी विवाद के सरकार को रिकॉर्ड 2.1 लाख करोड़ रुपये ट्रांसफर किए। लेकिन छह साल पहले ऐसा नहीं था। 2016 के नोटबंदी के बाद नई मुद्रा छापने पर RBI ने बहुत खर्च किया था, जिससे रिजर्व ट्रांसफर को लेकर सरकार के साथ विवाद हुआ था। इस विवाद के कारण उर्जित पटेल ने गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था। सिर्फ पटेल ही नहीं, उनके पूर्ववर्ती रघुराम राजन का भी मानना था कि RBI को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने और सभी के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार को न कहने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। इससे सरकार के साथ टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी।
दास ने अलग रास्ता अपनाया है। वह RBI की स्वायत्तता बनाए रखते हुए सरकार के साथ सहयोगात्मक संबंध बनाए रखने में सफल रहे हैं। शायद यही कारण है कि उन्हें लगातार दो कार्यकाल मिले हैं और हो सकता है कि तीसरा कार्यकाल भी मिल जाए।
एक संभावित विवाद ब्याज दरों को लेकर हो सकता है। दास कर्ज को सस्ता बनाने के लिए दरों में कटौती के खिलाफ रहे हैं। उनका तर्क है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए पैसे के प्रवाह को नियंत्रित करना जरूरी है, खासकर जब तक यह RBI के 4% के लक्ष्य तक न पहुंच जाए। अभी कुल महंगाई 6% से थोड़ी अधिक है, जो बढ़ती खाद्य कीमतों के कारण है। शुक्रवार को लगातार ग्याहरवीं बार RBI ने रेपो रेट को जस का तस रखा। हालांकि, सीआरआर में कटौती कर बैंकों के हाथों में ज्यादा पैसा रखने का बंदोबस्त किया।
दास ने टाल दिया जवाब
शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को अगले कार्यकाल के बारे में पूछे गए सवाल को टाल दिया। उन्होंने केंद्रीय बैंक के मुख्यालय में मौद्रिक नीति की घोषणा के बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘मैं आपको कोई बड़ी खबर नहीं दे रहा हूं। मुझे लगता है कि बेहतर होगा हम मौद्रिक नीति पर ही टिके रहें।’ दास से यह पूछा गया था कि क्या उन्हें इस कार्यकाल के बाद भी पद पर बने रहने के बारे में सरकार से कुछ सूचना मिली है। सरकार ने 2021 में दास के कार्यकाल को बढ़ाने की घोषणा उस समय की थी, जब उनका पहला कार्यकाल एक महीने में खत्म होने वाला था।