महाराष्ट्र में BJP ने क्यों नहीं लागू रखा बिहार वाला फॉर्मूला, देवेंद्र फडणवीस को ही क्यों सौंपी कमान?

मुंबई

महाराष्ट्र में महायुति की जीत के बाद देवेंद्र फडणवीस बीजेपी की तरफ से इकलौते दावेदार थे, लेकिन नतीजों के बाद अगले 11 दिनों तक सीएम को लेकर सस्पेंस हुआ लेकिन आजाद मैदान में मुख्यमंत्री की शपथ लेकर देवेंद्र फडणवीस पांच साल बाद मजबूत वापसी की। इसकी खुशी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भी झलकी तो वहीं दूसरी तरफ मेगा शपथ ग्रहण समारोह मल्टीस्टारर रहा, हालांकि इस शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष यानी महाविकास आघाड़ी (MVA) से कोई नहीं पहुंचा। महाराष्ट्र में ऐसा पहले कभी नहीं कि सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह से विपक्ष ने दूरी बनाई हो। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की मुख्यमंत्री पद पर वापसी को बीजेपी के बड़े दांव के तौर देखा जा रहा है। राज्य में जब सीएम पर सस्पेंस बना तो शिवसेना के खेमे से बिहार मॉडल की भी दुहाई दी गई। यह भी कहा गया है कि कहा गया कि एक ब्राह्मण के नीचे दो मराठा नहीं चलेगा, लेकिन बीजेपी ने इसके बाद फैसला नहीं बदला।

निशाने पर आ गए थे फडणवीस
लोकसभा चुनावों में बीजेपी के अगुवाई वाले महायुति के खराब प्रदर्शन के बाद फडणवीस निशाने पर आ गए थे। इसके बाद महाराष्ट्र पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब यह कहा था कि अगली सरकार महायुति की होगी और फिर 2029 में बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाएगी तो शाह के बयान पर काफी लोगों ने आश्चर्य हुआ था। बीजेपी ने 11 फडणवीस को सीएम बनाकर महाराष्ट्र की राजनीति में अपने विस्तार का बिगुल फूंक दिया है। बीजेपी पिछले तीन चुनावों से सबसे बड़ी पार्टी है। 2014 में उसे फडणवीस की अगुवाई में 122 फिर 2019 में 105 सीटें मिली थीं, हालांकि बीजेपी जब 2024 के चुनावों में गई थी तब तक उसके विधायकों की संख्या बढ़कर 112 तक पहुंच गई थी। ऐसे में बीजेपी ने मौजूदा विधानसभा चुनावों न सिर्फ अप्रत्याशित सफलता अर्जित की है बल्कि खुद के बूते पर सरकार बनाने का दम भर दिया है।

क्याें है बीजेपी का महादांव?
मुख्यमंत्री के पद पर फडणवीस की वापसी बीजेपी का महादांव इसलिए है क्योंकि पहली यह तीसरा मौका है जब मराठा बहुल राज्य में किसी ब्राह्मण को सरकार की कमान मिली है। फडणवीस पहली बार 2014 में सीएम बने थे। इससे पहले सिर्फ एक बार मनोहर जोशी सीएम बने थे। वह शिवसेना के नेता थे। राज्य के कुल 20 मुख्यमंत्रियों में 12 सीएम मराठा रहे हैं। राज्य में मराठा की आबादी करीब 33 फीसदी है, जबकि महाराष्ट्र में ब्राह्मण की आबादी काफी कम है। महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में 26 पर मराठा का कब्जा है। विधानसभा की कुल 288 सीटों में इस बार भी 127 विधायक मराठा समुदाय से हैं। ऐसे में फडणवीस को दोबारा सीएम बनाने को बड़े फैसले के तौर पर देखा जा रहा है। फडणवीस ही वो नेता है जिन्होंने केंद्रीय आलाकमान और संघ के सहयोग से महाराष्ट्र में भगवा कर दिया है।

योगी से हो रही है तुलना
महाराष्ट्र में बीजेपी को बहुमत के करीब तक पहुंचने और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार को शिकस्त देने की वजह से फडणवीस की योगी से तुलना शुरू हो गई है। महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक दयानंद नेने कहते हैं। फडणवीस ही फर्स्ट एंड लास्ट च्वाइस थे। इसमें कोई शक नहीं था कि वे सीएम नहीं बनेंगे। आप देखिए तो फडणवीस पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरे हुए थे। नेने कहते हैं कि बीजेपी ने फडणवीस को बनाकर यह संकेत दिया है कि पार्टी को जिताएगा, उसे पार्टी नजरंदाज नहीं करेगी।

फडणवीस ही थे मुख्य किरदार
नेने कहते हैं कि फडणवीस पूरी तरह से अमित शाह की रणनीति का मुख्य किरदार थे। फडणवीस एक बार फिर से केंद्रीय नेतृत्व की अपेक्षा का खरे उतरे हैं। नेने कहते हैं बीजेपी अब उस स्थिति में है जहां उसके कोई ब्लैकमेल नहीं कर सकता है। इस बार के कार्यकाल में फडणवीस और ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करेंगे। ऐसी अपेक्षा की जा रही है, बीजेपी की कोशिश होगी वह खुद को महाराष्ट्र में और मजबूत बनाए। फडणवीस को सीएम बनाने की मुख्य वजह है बीजेपी का 2029 का ड्रीम जब पार्टी अपने बूते पर राज्य में सरकार बनाए। फडणवीस ने अपने पहले इंटरव्यू में कहा है कि जब पार्टी का मजबूत नेता सीएम बनता है तो पार्टी आगे बढ़ती है।

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