नई दिल्ली
भारत ने चीन के एक निवेश समझौते का विरोध किया है। यह एग्रीमेंट निवेश की पूर्व-जांच का प्रस्ताव करता है। भारत समेत चार देश इसके खिलाफ हैं। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में इस पर चर्चा हो रही है। भारत ने तीन अन्य देशों के साथ मिलकर चीन के नेतृत्व वाले IFD समझौते का विरोध किया है। यह एग्रीमेंट निवेश की जांच के लिए स्वतंत्र निकाय के जरिये प्री-इन्वेस्टमेंट रिव्यू सिस्टम स्थापित करना चाहता है। डब्ल्यूटीओ की प्रमुख नगोजी ओकोंजो-आइवियेला जल्द ही आईएफडी पर काम करना चाहती हैं। एक अधिकारी ने कहा, ‘चीन की ओर से भारी दबाव है। 166 में से 128 डब्ल्यूटीओ सदस्य इसमें शामिल हो गए हैं… नए मुद्दों से पहले अनिवार्य मुद्दों पर विचार करना होगा।’
दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और तुर्की इस समझौते का विरोध कर रहे हैं। वहीं, अमेरिका न तो इसमें शामिल हो रहा है और न ही विरोध कर रहा है। भारत इसका विरोध इसलिए कर रहा है क्योंकि यह व्यापार का मुद्दा नहीं है और इसे तब तक नहीं अपनाया जा सकता जब तक पूरी सहमति न हो।
यूरोपीय संघ के समझौते पर भी सतर्क रुख
भारत यूरोपीय संघ के सीबीएएम पर WTO में अपने रुख का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन कर रहा है। कारण है कि ईयू के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर उसकी बातचीत जारी है। एक अधिकारी ने कहा, ‘हम अपनी स्थिति को स्पष्ट कर रहे हैं, खासकर जब FTA पर हमारी बातचीत चल रही है।’
सीबीएएम 1 जनवरी, 2026 से लागू होगा। स्टील, सीमेंट, फर्टिलाइजर, एल्यूमीनियम और हाइड्रोकार्बन उत्पादों सहित सात कार्बन-इंटेंसिव सेक्टरों की घरेलू कंपनियों को सीबीएएम मानदंडों का पालन करने के लिए ईयू अधिकारियों से प्रमाण पत्र लेने होंगे।
नीति आयोग ने किया था आगाह
सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने पिछले हफ्ते कहा था कि भारतीय कंपनियों को 20-35% तक टैरिफ का भुगतान करना पड़ सकता है। इससे लागत बढ़ेगी, प्रतिस्पर्धा कम होगी और ईयू मार्केट में मांग कम होगी। अधिकारी ने कहा, ‘ईयू ने अभी तक डब्ल्यूटीओ को सीबीएएम के बारे में सूचित नहीं किया है। हर कोई अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहा है।’
अलग-अलग ईयू देशों के विकास और जलवायु न्याय पर अलग-अलग लेवल होने के कारण सीबीएएम को स्थगित करने की भी बात चल रही है। सूत्रों ने बताया कि पोलैंड सीबीएएम का विरोध करता है। वहीं, डेनमार्क टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का समर्थक है।
क्या है आईएफडी और सीबीएएम का मकसद?
आईएफडी समझौते में निवेश की सुविधा के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव है। यह विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है। हालांकि, भारत जैसे कुछ देशों को चिंता है कि यह उनकी संप्रभुता को प्रभावित कर सकता है।
सीबीएएम का उद्देश्य ईयू में आयातित सामानों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करना है। हालांकि, भारत जैसे देशों को डर है कि इससे उनके निर्यात प्रभावित होंगे। भारत और ईयू दोनों इन मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।