जिनेवा
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने बुधवार को ला नीना पर बुरी खबर दी है। डब्लूएमओ ने कहा कि अगले तीन महीनों में ला नीना विकसित होने की मात्र 55% संभावना है। अगर ऐसा होता भी है तो यह अपेक्षकृत कमजोर और अल्पकालिक होगा। ला नीना पैटर्न में समुद्र की सतह के तापमान का ठंडा होना शामिल है। इससे ठंड ज्यादा पड़ती है और अत्याधिक गर्मी की संभावनाओं को कम करने में मदद मिलती है। हालांकि, अब ला नीना के कमजोर पड़ने से अंदेशा जताया जा रहा है कि इस साल ठंड कम पड़ेगी और गर्मी सभी रिकॉर्ड तोड़ सकती है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने क्या कहा
WMO ने पत्रकारों को भेजे एक बयान में कहा कि पूर्वानुमान बताते हैं कि दिसंबर 2024 और फरवरी 2025 के बीच ला नीना में संक्रमण की 55% संभावना है। यह सितंबर में WMO द्वारा पूर्वानुमानित 60% संभावना से कम था। WMO महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, “भले ही ला नीना घटना सामने आए, लेकिन इसका अल्पकालिक शीतलन प्रभाव वायुमंडल में रिकॉर्ड गर्मी-फंसाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के वार्मिंग प्रभाव को संतुलित करने के लिए अपर्याप्त होगा।”
ला लीना क्या है
ला नीना, प्रशांत महासागर में होने वाला एक मौसम पैटर्न है। इस पैटर्न में, भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान औसत से ज्यादा ठंडा हो जाता है। जिस साल ला नीना कमजोर पड़ता है, उस साल भयंकर गर्मी पड़ती है। ला नीना एक स्पेनी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है ‘छोटी लड़की।’ ला नीना, अल नीनो का विपरीत होता है। ला नीना के दौरान, पूर्वी हवाएं मज़बूत हो जाती हैं। ला नीना के दौरान उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में शुष्क मौसम रहता है और भूमध्यरेखीय इलाकों में सामान्य से ज्यादा आद्रता रहती है।
भारत पर क्या असर होगा
ला नीना के कमजोर पड़ने से दुनिया के सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में भारत भी शामिल होगा। भारत भूमध्य रेखा के करीब स्थित है। ऐसे में ला नीना के कमजोर पड़ने से ठंड कम पड़ेगी और मानसून भी कमजोर होगा। इसके साथ ही गर्मियों में चरम तापमान को भी देखा जा सकता है। भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होने वाली अधिक वर्षा आमतौर पर ला नीना से जुड़ी होती है।