मुंबई
महाराष्ट्र में ‘इंडिया गठबंधन’ यानी महाविकास आघाड़ी (MVA) की करारी हार के बाद लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी अपने ही सहयोगियों के निशाने पर हैं। शनिवार को राहुल गांधी ने लोकसभा में संविधान पर बहस के दौरान बोलते हुए विनायक दामोदर सावरकर यानी वीर सावरकर के लेख का हवाला देकर मोदी सरकार को घेरा। राहुल गांधी ने सावरकर का जिक्र किया और कहा कि सावरकार ने लिखा है कि भारत के संविधान के बारे में सबसे खराब चीज ये है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। वेदों के बाद मनुस्मृति वो ग्रंथ है जो हमारे हिंदू राष्ट्र के लिए सबसे पूजनीय है और ये प्राचीन समय से हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज, विचार और व्यवहार का आधार बना हुआ है। आज मनुस्मृति क़ानून है। राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने जो कहा वो सावरकर के शब्द है।
उद्धव ठाकरे बुरे फंसे
सावरकर के अपमान के लिए मानहानि के मुकादमें का सामना कर रहे राहुल गांधी ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए उद्धव ठाकरे की मुश्किल बढ़ा दी। महाराष्ट्र में बीजेपी के बाद शिवसेना के दोनों खेमे वीर सावरकर को नायक मानते हैं। अब सवाल यह है कि राहुल गांधी के बयान के बाद उद्धव ठाकरे कैसे बीजेपी और एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के धड़े से होने वाले हमलों का सामना करेंगे। ऐसे में आने वाले दिनों में अगर उद्धव ठाकरे अलग रास्ता पकड़ें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पिछले दिनों जब कर्नाटक की विधानसभा से वीर सावरकर की फोटो हटाने की तैयारी से जुड़े बातें सामने आई थीं तो बीजेपी ने उद्धव ठाकरे को ही निशाने पर लिया था।
सावरकर क्या बोले राहुल
राहुल गांधी ने लोकसभा में यह भी कहा कि सावरकर ने अपने लेखन में साफ कर दिया है कि हमारे संविधान में भारतीयता का कोई अंश नहीं है। उन्होंने कहा है कि भारत को इस किताब (संविधान) से नहीं बल्कि इस किताब (मनुस्मृति) से चलाया जाना चाहिए। राहुल ने कहा कि आज इसी की लड़ाई है। मैं सत्ता पक्ष के लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या आप सावरकर के शब्दों का समर्थन करते हैं, क्योंकि जब आप संविधान के पक्ष में संसद में बोलते हैं तो आप सावरकर का मजाक उड़ा रहे होते हैं, उनको बदनाम कर रहे होते हैं।
रंजीत सावरकर ने बुलाई पीसी
लोकसभा में राहुल गांधी के बयान के बाद महाराष्ट्र में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। वीर सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने राहुल गांधी के बयान को लेकर 15 दिसंबर को मुंबई में बड़ी प्रेस कांफ्रेंस बुलाई है। जाहिर है कि यह मामला अभी रुकने वाला नहीं है। इस सब के बीच उद्धव ठाकरे की पार्टी क्या स्टैंड लेती है यह देखना दिलचस्प होगा? क्योंकि विधानसभा चुनावों में कारारी हार झेलने के बाद उद्धव ठाकरे जिस तरह से हिंदुत्व पर लौटे हैं। उसके बाद उनका अधिक समय से ऐसी स्थिति में कांग्रेस के साथ रहना मुश्किल होगा, क्योंकि राज्य में उनकी प्रतिस्पर्धा अब बीजेपी से नहीं बल्कि अपनी ही पार्टी के दूसरे खेमे से है।
MVA में दिख रही हैं दरारें
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में एमवीए की करारी शिकस्त के बाद शरद पवार के अगुवाई वाले खेमे में मायूसी है। चुनावों के वक्त पर नेता विपक्ष की कुर्सी पर रही कांग्रेस की हालत इतनी पतली है कि एमवीए दूसरी बड़ी पार्टी है। उद्धव ठाकरे के पास 20, कांग्रेस के पास 16 और शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी के पास 10 विधायक हैं। अडानी के मुद्दे पर शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी कांग्रेस के साथ नहीं है। अगर सावरकर के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना की नाराजगी सामने आती है तो फिर महाराष्ट्र में एमवीए का बिखरना तय है।