नई दिल्ली,
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव दस्तावेजों तक पहुंच बाधित करने के लिए चुनाव नियमों में किए गए संशोधन पर केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की. उन्होंने इसे चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को कमजोर करने की एक सोची-समझी साजिश करार दिया.खड़गे ने केंद्र पर चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को खत्म करने का आरोप लगाया और इसे संविधान और लोकतंत्र पर हमला बताया.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने X पर पोस्ट किया कि चुनाव नियमों के संचालन में मोदी सरकार का दुस्साहसिक संशोधन भारत के चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता को नष्ट करने का व्यवस्थित षड्यंत्र एक और हमला है.
बता दें कि शुक्रवार को चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय विधि मंत्रालय ने सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव नियम, 1961 में संशोधन किया. केंद्र ने तर्क दिया कि इस कदम का उद्देश्य उनके दुरुपयोग को रोकना है.
इस कदम की आलोचना करते हुए खड़गे ने कहा कि इससे पहले उन्होंने (केंद्र) भारत के मुख्य न्यायाधीश को चयन पैनल से हटा दिया था, जो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है, और अब वे हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी चुनावी जानकारी रोकने का सहारा ले रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा कि जब भी पार्टी ने मतदाताओं के नाम हटाने, ईवीएम में पारदर्शिता की कमी सहित चुनाव अनियमितताओं को लेकर चुनाव निकाय से संपर्क किया, तो आयोग ने इसे खारिज कर दिया और कुछ गंभीर शिकायतों को स्वीकार करने में विफल रहा.
खड़गे ने कहा कि इससे यह साबित होता है कि चुनाव आयोग, भले ही यह एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, लेकिन वह स्वतंत्र रूप से व्यवहार नहीं कर रहा है. मोदी सरकार द्वारा चुनाव आयोग की ईमानदारी को कमज़ोर करना संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला है और हम उनकी सुरक्षा के लिए हर कदम उठाएंगे. नियम-93 के अनुसार चुनाव से संबंधित सभी “कागज़ात” सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होने चाहिए. नामांकन फॉर्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और खाता विवरण जैसे दस्तावेज़ चुनाव आचार संहिता के नियमों के अंतर्गत शामिल हैं, लेकिन आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग और उम्मीदवार के वीडियो जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड इससे बाहर रखे गए हैं.