RTO सिपाही सौरभ शर्मा की रोचक है कहानी, कॉन्स्टेबल से बिल्डर बन खड़ा किया करोड़ों का साम्राज्य, मंत्री-अफसरों ने भी जमकर दिया साथ

भोपालः

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में लोकायुक्त की आरटीओ के पूर्व कॉन्स्टेबल सौरभ शर्मा के यहां रेड पड़ी। उसके घर में पड़ी रेड में देश में सोने की सबसे बड़ी जब्ती और कई क्विंटल चांदी के अलावा करोड़ों की अथाह संपत्ति मिली। ये कहानी बहुत लंबी नहीं है। लेकिन, इसके तार कहां-कहां से जुड़े हैं यह सुनकर आप आश्चर्य में पड़ सकते हैं।

मध्य प्रदेश के परिवहन विभाग में अनुकंपा नियुक्ति हासिल करके करीब 7 साल तक कॉन्स्टेबल रहे सौरभ शर्मा के तार पूर्व मंत्री, वर्तमान विधायक तक ही सीमित नहीं है। उनका कनेक्शन शराब के कारोबारी, पूर्व सरकार में बड़े पदों पर रहे कुछ आईएएस अधिकारियों से जुड़ते नजर आ रहे हैं।

कैसे बना कॉन्स्टेबल से करोड़ों का बिल्डर
नौकरी से वीआरएस लेने के बाद सौरभ ने अविरल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई। ड्राइवर की भूमिका में दिखने वाला चेतन सिंह गौर, शरद जायसवाल और रोहित तिवारी इस कंपनी में डायरेक्टर हैं। दिलचस्प बात यह है कि 22 नवंबर 2021 को शुरू की गई यह कंपनी कॉर्पोरेट अफेयर्स मंत्रालय ग्वालियर से रजिस्टर्ड है। अरेरा कालोनी ई-7 के पते पर रजिस्टर्ड कंपनी के द्वारा ही लोकायुक्त पुलिस और आयकर विभाग को भनक लगी।

सूत्र बताते हैं कि अविरल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की शुरुआती लागत 10 लाख रुपये थी। वर्तमान में कंपनी का टर्न ओवर नहीं खोला गया है। 31 मार्च 2023 को कंपनी की आखिरी वार्षिक बैठक हुई थी। एक पूर्व मंत्री ने सौरभ से शरद जायसवाल की मुलाकात फिट की थी।

आरटीओ में कैसे मिली अनुकंपा नियुक्ति
परिवहन विभाग को खेल भी जबरदस्त रहा है। आरटीओ में ही कार्यरत स्टेनो सौरभ का रिश्तेदार निकला। उसी ने सौरभ की अनुकंपा नियुक्ति कराने के लिए लॉबिंग की। इसके बाद तो सौरभ ने ऐसे दांव-पेंच खेले कि वह एक पूर्व मंत्री का खास बन गया। सौरभ ने अपने स्टेनो रिश्तेदार के जरिए चिरूला बैरियर को ठेके पर लेकर चलवाया। कमाई का ऐसा चस्का लगा कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सभी बैरियर के ठेके लेने लगा।

ऐसे बढ़ाया अपना साम्राज्य
सौरभ की मनमानी इतनी बढ़ी कि वह टीएसआई, आरटीआई को बैरियर का ठेका देने लगा। इसके कारण आरटीओ के अन्य अफसरों ने इसका विरोध कर दिया। लेकिन, तब मंत्री के दखल के चलते उसे प्रभाव नहीं पड़ा। हालांकि अफसरों ने उसका रिकॉर्ड रखना शुरू कर दिया। उसकी जासूसी होने लगी।

ऐसे ढहा करोड़ों का गढ़
इस बीच प्रदेश में बीजेपी की सरकार आई और मुख्यमंत्री का चेहरा बदल गया। पूर्व मंत्री को इस बार मंत्री पद नहीं मिला। इसी बात से खौफ में आकर सौरभ ने नौकरी से वीआरएस ले लिया। लेकिन, उसने परिवहन विभाग में और अपने ही दोस्तों से दुश्मनी मोल ले ली थी। सौरभ के दो खास व्यक्तियों ने वर्तमान सरकार के करीबियों को इसकी मुखबिरी कर दी।

 

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