चोरी छिपे किसी तरह जिंदा पहुंचे अमेरिका लेकिन डिपोर्ट कर दिए गए, जानिए उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी

नई दिल्ली

डोनाल्ड ट्रम्प दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। 20 जनवरी को वो जब ये जिम्मेदारी संभालेंगे तो उनके पास कामों की एक लंबी लिस्ट होगी। इसमें सबसे ऊपर है US में अवैध अप्रवासियों पर एक्शन, जिसमें हो सकता है सेना की भी मदद लेनी पड़े। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने बड़े पैमाने पर निर्वासन का वादा किया है। हजारों भारतीयों का भविष्य अधर में है। ऐसे में टीओआई ने ‘डंकी रूट’ से अमेरिका में अवैध रूप से एंट्री की चाह रखने वाले दो युवाओं से बात की। उनसे ये जानना चाहा कि आखिर उन्हें ‘डंकी रूट’ में क्या कुछ सहना पड़ा।

हरियाणा के दो युवाओं की कहानी
‘डंकी रूट’ से यूएस जाने का सपना लेकर घर से निकले दोनों युवा हरियाणा से थे। इनमें एक हरियाणा के करनाल से हैं तो दूसरा जींद से। पहला, जो लगभग 28 साल का है, उसने 2018 में अपनी अवैध यात्रा का प्रयास किया था। दूसरा, जो 25 साल का है, उसने हाल ही में ‘डंकी रूट’ अमेरिका जाने का प्लान किया। हालांकि, दोनों को US में अवैध रूप से एंट्री की कोशिश में बेहद कष्टदायक अनुभव हुए। वे ‘डंकी रूट’ के जरिए गए और वापस भेज दिए गए। बावजूद इसके दोनों इसे फिर से आजमाना चाहते हैं।

जींद के मनदीप ने बताई आपबीती
सबसे पहले बात जींद से आने वाले मनदीप सिंह की, जिन्होंने अपनी इस यात्रा के लिए करीब एक एकड़ खेती योग्य जमीन ही बेच दी। जब वह घर से निकले थे तो उनका वजन लगभग 70 किलो था। लेकिन महज 45 किलो वजन के साथ वापस आए। मनदीप सिंह ने बताया कि उनकी यात्रा अमृतसर से शुरू हुई। 28 लोगों के एक ग्रुप को दुबई, फिर ओमान भेजा गया। फिर वे मिस्र गए और वहां से लीबिया, एक कार्गो विमान में जिसमें सीटें नहीं थीं। उस फ्लाइट में लगभग 250 लोग थे, जिनमें से कई लोगों को पूरी यात्रा खड़े होकर करनी पड़ी।

अमृतसर से दुबई-ओमान-लीबिया का सफर
मनदीप सिंह ने बताया कि शुरुआत में हम 15 दिनों के लिए एक कमरे में थे। यूं कहें कि लगभग फंसे हुए थे। वह लीबिया में कहीं कोई जगह थी। लीबिया से, उन्होंने इटली के लिए एक खतरनाक नाव की सवारी की। नाव की क्षमता 50 लोगों की थी। हालांकि, इसमें 200 लोग सवार थे। फिर हमने लगभग 15 दिन एक कंटेनर में बिताए। हमने टैक्सी की सवारी के लिए पैसे दिए थे। लेकिन एजेंट ने हमें एक कंटेनर में जबरदस्ती डाल दिया। कंटेनर में 150 लोग रहे होंगे, सभी खड़े थे।

कोलंबिया-पनामा के बीच जंगल तक पहुंचे
मनदीप सिंह ने आगे कहा कि मेरा अनुमान है उस कंटेनर में खड़े होकर हमने ब्राजील से कोलंबिया तक लगभग 3,000 किमी, ऐसे ही यात्रा की। फिर जंगल में एक ट्रक में 15 दिन और, जहां हमें कच्चा मांस खाना पड़ा। हमें नहीं पता था कि हम कौन सा मांस खा रहे हैं। तब तक हम डेरियन गैप पर पहुंचे। ये कोलंबिया और पनामा के बीच स्थित खतरनाक जंगल को पार करने की कोशिश थी। इसे दुनिया के सबसे खतरनाक माइग्रेशन रूट के रूप में जाना जाता है। तब तक हमारे पास खाना और पैसा खत्म हो रहा था।

पनामा में पकड़े गए फिर हुई इंडिया वापसी
मनदीप सिंह ने कहा कि यहां से पैदल का रास्ता है। ये लगभग 18 से 20 किमी का है, लेकिन यह ज्यादातर जंगल से होकर गुजरता है। और यह बहुत कन्फ्यूजिंग है। आप इसमें आसानी से खो सकते हैं। मनदीप ने बताया कि हमारे ग्रुप में दिल्ली के कुछ लड़के और लड़कियां भी थीं, जो इतने कमजोर थे कि वे आगे नहीं बढ़ सके। उन्होंने दूसरों से कहा कि वे उनके बिना आगे बढ़ें। एक बार रुकने के बाद तय था कि वे एक या दो दिन में मर जाते। हालांकि, पनामा में उन्हें हिरासत में ले लिया गया और 130 अन्य भारतीयों के साथ वापस भेज दिया गया।

‘मैं फिर किस्मत आजमाना चाहता हूं’
मनदीप सिंह ने बताया कि डंकी रूट पर निकले ज्यादातर के पास वास्तव में कोई योजना नहीं होती है। बस यही उम्मीद होती है कि हम अपना रास्ता खोज लेंगे और ‘बस जाएंगे’। और यह सिर्फ मेरा सपना नहीं है, यही सभी युवा सोचते हैं। हम अपने घरों से बस यही सोचकर निकलते हैं: आगे जो होगा देखा जाएगा। मनदीप का कहना है कि वो फिर से अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि चूंकि एजेंट मेरा रिश्तेदार था, उसने कुछ पैसे लौटा दिए और मुझे फिर से भेजने का वादा किया है। मुझे विश्वास है कि मैं अगली बार US सीमा सुरक्षित रूप से पार कर लूंगा।

करनाल के युवा ने सुनाई आपबीती
करनाल से एक अन्य व्यक्ति ने अपनी कहानी साझा की। उसने बताया कि मेरे पिता 2018 में एक स्थानीय एजेंट के संपर्क में आए, जिसने कहा कि वह मुझे ‘डंकी रूट’ के माध्यम से अवैध रूप से US जाने में मदद करेगा। 25 अक्टूबर, 2018 को, मैं चार अन्य लड़कों के साथ दिल्ली से मास्को के लिए एक उड़ान में सवार हुआ। हमारे पास वीजा नहीं था, लेकिन एजेंट ने हमारी यात्रा की व्यवस्था की थी। मास्को में 10-12 घंटे रुकने के बाद, हम उसी दिन पेरिस के लिए एक फ्लाइट में सवार हुए।

पेरिस
इस शख्स ने बताया कि पेरिस में इमिग्रेशन अधिकारियों से हमारा सामना हुआ। हमारे पासपोर्ट पर कोई वीजा स्टैम्प नहीं था। हमारे एजेंटों ने हमसे हमारे द्वारा लिए गए रूट का विवरण मिटाने के लिए अपनी टिकटें फाड़ने को कहा। हम वीडियो कॉल के माध्यम से अपने एजेंटों से संपर्क कर रहे थे। उन्होंने हमें बताया कि हमें अगले डेस्टिनेशन के लिए नई टिकटें और बोर्डिंग पास मिलेंगे। हम पूरी रात पेरिस में रहे। सुबह लगभग 8 बजे, हमें दोपहर एक बजे की उड़ान के लिए कैनकन, मेक्सिको के लिए बोर्डिंग टिकट मिले। हमारे एजेंटों का हवाई अड्डे पर लोगों के साथ किसी तरह का गठजोड़ था। पेरिस हवाई अड्डे पर किसी ने हमारी टिकट या पासपोर्ट की जांच नहीं की। उन्होंने केवल औपचारिकता के रूप में हमारे बोर्डिंग पास को स्कैन किया।

कैनकन
करनाल के इस युवा ने बताया कि हम 10 घंटे बाद कैनकन में उतरे। कुछ इमीग्रेशन एजेंट पहले से ही हमारा स्वागत करने के लिए वहां इंतजार कर रहे थे। वे भारत में हमारे एजेंटों के साथ लगातार संपर्क में थे। ग्रुप में कुछ के पास यूरोपीय वीजा था और वह कैनकन में रहने के लिए मान्य था। भले ही ऐसे वीजा के बिना रहने वालों को मेक्सिको में रहने की अनुमति नहीं थी, हमें बिना किसी स्टांप के देश में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया गया, हमारे पासपोर्ट हमसे ले लिए गए।

मेक्सिको
मेक्सिको में रहने के लिए वैध वीजा के बिना रहने वालों के लिए एकमात्र कानूनी तरीका एक शिविर में जाना था। मैं विभिन्न देशों के 60 अन्य लोगों के साथ कैनकन से लगभग पांच घंटे की दूरी पर स्थित एक शिविर में रहा। वह जगह बहुत ही गंदी थी। मैंने तीन दिन बाद एक कंट्री-आउट लेटर प्राप्त किया। फिर मैं छह अन्य लोगों के साथ शिविर छोड़कर चला गया जब एक मैक्सिकन एजेंट, जो जन्म से भारतीय था, हमें लेने आया। उसने हमें एक बस स्टैंड तक पहुंचाया और मैंने अपने पिता को फोन करके उनसे पैसे भेजने को कहा।

18 महीने डिटेंशन कैंप में रहे
शख्स ने बताया कि इसके बाद वह ग्वाडलजरा और फिर तिजुआना गए। हमने तिजुआना में फ्लाइट से उतरते ही बाड़ देखी। हम एक घंटे के लिए एक होटल में थे जब एजेंट ने मुझसे पूछा कि क्या मैं इंतजार करना चाहता हूं या सीमा पार करना चाहता हूं। वो 8 नवंबर था, भारत में दिवाली का पर्व मनाया जा रहा था। मैंने उससे कहा कि मैं पार करना चाहता हूं और ग्रुप के तीन लोग उसी दिन ऐसा करने के लिए सहमत हुए, एक मैक्सिकन ‘डोनकर’ या हैंडलर के साथ।

तिजुआना
हम 7 फीट ऊंची दीवार को पार कर लगभग 20 मिनट तक चले। बस एक और दीवार तक पहुंचने के लिए, यह दीवार 20 फीट ऊंची थी जिसका ऊपरी हिस्सा टेढ़ा-मेढ़ा था। जल्द ही, एक वैन गेट से आई और हमें बॉर्डर पेट्रोल ऑफिस ले गई। मैं वहां पांच दिन रुका और फिर, एक और बॉर्डर पेट्रोल कार्यालय में चार दिन और रुका। लगभग 50 अन्य अवैध अप्रवासी वहां रह रहे थे।

अरिजोना, मिसिसीपी, मैसाचुसेट्स
युवक ने बताया कि फिर हमें एरिजोना के एक और कैंप में ले जाया गया जहां हम एक हफ्ते तक रहे। इस कैंप में 200 लोग थे। फिर हमें एक महीने के लिए टल्लाहाची काउंटी, मिसिसिपी में एक और कैंप में शिफ्ट कर दिया गया। जब इमिग्रेशन अधिकारियों ने मुझसे पूछताछ की तो मैंने उनसे कहा कि मैं भारत में सुरक्षित नहीं था और शरण मांग रहा था। बाद में, उन्होंने हमें एक और कैंप में शिफ्ट कर दिया, जहां से हमें प्लायमाउथ, मैसाचुसेट्स ले जाया गया। मैं वहां 18 महीने तक रहा। मुझे उम्मीद थी कि मुझे ऐसे कागजात मिल जाएंगे जिनसे मैं अपना मामला कैलिफोर्निया ले जा सकूं। हालांकि, मेरी मांग 31 जनवरी, 2019 को खारिज कर दी गई।

‘2020 में हमें अमेरिका से भारत डिपोर्ट कर दिया गया’
करनाल के शख्स ने बताया कि अब, मेरे पास दो विकल्प बचे थे। पहला अधिकारियों से पूछना कि मुझे जरूरी कागजात क्यों नहीं मिले। या दूसरा कि अपना पूरा केस खोलना। मैंने दूसरे विकल्प को चुना लेकिन मेरा केस नहीं खुला, इसलिए मुझे कैंप में रहना पड़ा। जैसे ही कोविड शुरू हुआ, मैं इस उम्मीद के साथ वहीं रहा कि एक दिन मैं भारत वापस जा सकूंगा। आखिरकार मुझे 2020 में अमेरिका से भारत वापस भेज दिया गया। अब सीमा पार करना और भी मुश्किल काम हो जाएगा और शरण मिलने की संभावनाएं कम हो जाएंगी। लेकिन वापस भेजे जाने के बाद, मैं केवल अवैध रूप से ही अमेरिका में फिर से प्रवेश कर सकता हूं। हालांकि, मैं एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाऊंगा।

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