नई दिल्ली,
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार डॉ. तौहीद हुसैन ने कहा कि बांग्लादेश सरकार ने आधिकारिक तौर पर भारत सरकार से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने की मांग की है. हुसैन ने आज मंत्रालय में मीडिया से बात करते हुए कहा कि बांग्लादेश ने भारत सरकार को एक “नोट वर्बल” भेजा है, जिसमें देश में न्यायिक प्रक्रिया का सामना करने के लिए हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की गई है.
बांग्लादेश में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद 77 वर्षीय हसीना 5 अगस्त को भारत आ गई थी और तब से वह भारत में ही निर्वासन के तहत रह रही हैं. ढाका स्थित अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने हसीना और कई पूर्व कैबिनेट मंत्रियों, सलाहकारों और सैन्य और अधिकारियों के खिलाफ “मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार” के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं.
भारत सरकार को भेजा संदेश
विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने अपने कार्यालय में संवाददाताओं से कहा, “हमने भारत सरकार को एक “नोट वर्बल” (राजनयिक संदेश) भेजा है, जिसमें कहा गया है कि बांग्लादेश न्यायिक प्रक्रिया के लिए उन्हें वापस चाहता है.”इससे पहले सुबह गृह सलाहकार जहांगीर आलम ने कहा कि उनके कार्यालय ने अपदस्थ प्रधानमंत्री के भारत से प्रत्यर्पण की सुविधा के लिए विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा है.
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हमने उनके प्रत्यर्पण के संबंध में विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा है. प्रक्रिया अभी जारी है.” आलम ने कहा कि ढाका और नई दिल्ली के बीच पहले से ही प्रत्यर्पण संधि है और इस संधि के तहत हसीना को बांग्लादेश वापस लाया जा सकता है.
यूनुस पर किया था तीखा हमला
अगस्त में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भारत में शरण लेने वाली हसीना ने कुछ समय पहले बंगाली में दिए गए एक बयान में कहा कि “राष्ट्र विरोधी समूहों” ने असंवैधानिक रूप से सत्ता पर कब्जा कर लिया है. उन्होंने कहा, “फासीवादी यूनुस के नेतृत्व वाले इस अलोकतांत्रिक समूह की लोगों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है. वे सत्ता पर कब्जा कर रहे हैं और सभी जन कल्याण कार्यों में बाधा डाल रहे हैं.”
हसीना ने यूनुस सरकार की आलोचना की और कहा कि बांग्लादेश के लोग कीमतों में वृद्धि से परेशान हैं. हसीना ने कहा, “चूंकि यह सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी नहीं गई है, इसलिए लोगों के प्रति उनकी कोई जवाबदेही नहीं है. उनका मुख्य उद्देश्य मुक्ति संग्राम और मुक्ति समर्थक ताकतों की भावना को दबाना और उनकी आवाज को दबाना है. इसके विपरीत, वे गुप्त रूप से स्वतंत्रता विरोधी कट्टरपंथी सांप्रदायिक ताकतों का समर्थन कर रहे हैं. फासीवादी यूनुस सहित इस सरकार के नेताओं की मुक्ति संग्राम और उसके इतिहास के प्रति संवेदनशीलता की कमी उनके उनके इरादों को दर्शाती है.”