‘भारत के आर्थिक मुक्तिदाता…’, मनमोहन सिंह के निधन पर क्या कह रहा वर्ल्ड मीडिया?

नई दिल्ली,

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने गुरुवार को 92 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके निधन पर भारत की तरह ही पूरी दुनिया के लोग शोक मना रहे हैं और उनकी उपलब्धियों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. दुनिया भर की मीडिया में मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि देते हुए खबरें प्रकाशित की गई हैं. चाहे वो पाकिस्तान की मीडिया हो, अमेरिकी, ब्रिटिश मीडिया हो या फिर मध्य-पूर्वी देशों की मीडिया, सभी जगह मनमोहन सिंह के निधन पर खबरें प्रकाशित हो रही हैं.

क्या कह रही पाकिस्तान की मीडिया?
पाकिस्तान के लगभग सभी बड़े अखबारों ने मनमोहन सिंह के निधन पर खबर प्रकाशित की है. ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने एक रिपोर्ट में लिखा कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और देश के आर्थिक उदारीकरण के वास्तुकार मनमोहन सिंह का 92 साल की आयु में निधन हो गया है. अखबार ने लिखा कि लंबी बीमारी के कारण गुरुवार देर शाम को उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में लाया गया और 9:51 मिनट पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

अखबार ने लिखा, ‘पेशे से अर्थशास्त्री, मनमोहन सिंह ने 1990 के दशक की शुरुआत में वित्त मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था को बदलने में अहम भूमिका निभाई थी. आर्थिक उदारीकरण की उनकी नीतियों ने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया जिससे देश के तेज गति से विकास के लिए मंच तैयार हुआ.’

मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) के पंजाब प्रांत के एक गांव गाह में हुआ था. 1947 में विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया था.विभाजन की उथल-पुथल के बावजूद, वो पढ़ाई लिखाई में काफी आगे रहे और चंडीगढ़ के पंजाब यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में फर्स्ट क्लास की डिग्री हासिल की. सिंह ने 1957 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया और बाद में 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की उपाधि हासिल की.

पाकिस्तान में अंग्रेजी के सबसे बड़े अखबार ‘डॉन’ ने मनमोहन सिंह के निधन पर समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से एक खबर छापी है. अखबार ने लिखा, ‘प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ‘अनिच्छुक शासक (Reluctant King)’ के रूप में जाने गए, शांत स्वभाव वाले मनमोहन सिंह यकीनन भारत के सबसे सफल नेताओं में से एक थे. उन्हें भारत को अभूतपूर्व आर्थिक विकास की ओर ले जाने और करोड़ों लोगों को घोर गरीबी से बाहर निकालने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री दो कार्यकाल पूरे किए थे.’

अखबार ने लिखा कि 2004 में मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना बेहद ही अप्रत्याशित था. डॉन लिखता है, ‘सोनिया गांधी ने उन्हें यह पद संभालने के लिए कहा था. इटली की होने की वजह से उन्हें डर था कि अगर वो देश का नेतृत्व करेंगी तो उनके विरोधी इसका इस्तेमाल सरकार पर हमला करने के लिए करेंगे.’

पाकिस्तान के एक अन्य न्यूज नेटवर्क जियो टीवी ने समाचार एजेंसी एएफपी के हवाले से प्रकाशित अपनी खबर में लिखा है, ‘पूर्व प्रधानमंत्री एक साधारण टेक्नोक्रेट थे, जिनके पहले कार्यकाल को भारत के आर्थिक विकास के लिए खूब सराहा गया था. लेकिन उनका दूसरा कार्यकाल बड़े भ्रष्टाचार घोटालों, धीमी विकास दर और महंगाई के साथ खत्म हुआ. दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह की अलोकप्रियता और राहुल गांधी के फीके नेतृत्व के कारण साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहली बार भारी जीत मिली.’

अमेरिकी मीडिया
अमेरिकी अखबार सीएनएन ने एक रिपोर्ट छापी है जिसमें लिखा है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिन्होंने देश को बड़े सुधारों के जरिए आगे बढ़ाया और वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत के उभरने का रास्ता तैयार किया, 92 साल की आयु में उनका निधन हो गया है.नीली पगड़ी पहनने के लिए मशहूर मनमोहन सिंह भारत के पहले सिख अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री थे. उन्होंने 2004 से 2014 तक दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेतृत्व किया.

अमेरिकी अखबार ने लिखा, ‘उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच मधुर संबंधों के एक नए युग की भी शुरुआत की जिसके कारण 2008 में दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक परमाणु ऊर्जा समझौते पर हस्ताक्षर हो पाया. उनके निधन पर विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने एक बयान में उन्हें “अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी के सबसे महान समर्थकों में से एक” बताया है.’

अखबार ने लिखा कि 2014 में प्रधानमंत्री पद जाने और नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद मनमोहन सिंह ने राजनीति में अपनी सक्रियता कम कर ली. निधन के कुछ महीने पहले, मनमोहन सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ काम किया. उन्होंने कहा था, ‘मैं ईमानदारी से मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति आज की मीडिया और संसद में विपक्षी दलों की तुलना में अधिक दयालु होगा.’

ब्रिटेन की मीडिया
मनमोहन सिंह के निधन पर ब्रिटेन के अखबार ‘द गार्जियन’ ने एक लेख में लिखा है कि मनमोहन सिंह को उनके शर्मीले स्वभाव और पर्दे के पीछे रहने की वजह से भारत का ‘अनिच्छुक प्रधानमंत्री’ कहा जाता था.10 भाई-बहनों में से एक मनमोहन सिंह अपनी शिक्षा को लेकर इतने समर्पित थे कि अपने संयुक्त परिवार के घर में शोर से बचने के लिए रात में स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ाई करते थे.

उनके भाई सुरजीत सिंह ने याद किया कि उनके पिता कहते थे कि मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री होंगे क्योंकि वो हमेशा किताबों में डूबे रहते थे.ब्रिटिश अखबार ने लिखा कि मनमोहन सिंह को 1991 में राजनीति में उतारा गया, जब भारत सबसे खराब आर्थिक संकटों में से एक का सामना कर रहा था और कर्ज न चुकाने की वजह से डिफॉल्ट के कगार पर आ गया था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया.

अखबार ने बतौर वित्त मंत्री सिंह की उपलब्धियों का बखान करते हुए लिखा, ‘मनमोहन सिंह ने लाइसेंस राज को खत्म कर दिया, जो तय करता था कि फैक्ट्रियां क्या प्रोडक्ट बना सकती हैं और किस तरह की ब्रेड बेची जा सकती है. उन्होंने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रुपये का अवमूल्यन किया, प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों को निजी और विदेशी निवेश के लिए खोला और टैक्स में कटौती की. उनके इन साहसी प्रयासों ने भारत के विकास की शुरुआत की जिससे मनमोहन सिंह को भारत का इकोनॉमिक लिबरेटर यानी आर्थिक मुक्तिदाता का नाम मिला.’

कतर की मीडिया
कतर के न्यूज नेटवर्क अलजजीरा ने भी मनमोहन सिंह के निधन पर कई खबरें प्रकाशित की हैं. अलजजीरा ने लिखा कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत का अभूतपूर्व आर्थिक विकास हुआ और उन्होंने गरीबों के लिए रोजगार प्रोग्राम जैसी कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं.मनमोहन सिंह भारत की अर्थव्यवस्था को और अधिक खोलना चाहते थे लेकिन उनकी ही पार्टी के भीतर राजनीतिक विवादों और गठबंधन सहयोगियों की मांग के कारण इस दिशा में वो बहुत आगे नहीं जा पाए थे.

मनमोहन सिंह एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री थे जो भारत के केन्द्रीय बैंक के गवर्नर और सरकार के सलाहकार बने, लेकिन जब 1991 में उन्हें अचानक वित्त मंत्री बना दिया गया, तब उनके पास राजनीतिक जीवन की कोई स्पष्ट योजना नहीं थी.1996 तक के अपने कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह ने वो सुधार किए जिन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को भुगतान संतुलन के गंभीर संकट से बचाया और ऐसे उपाय किए जिससे अलग-थलग पड़े देश के द्वार दुनिया के लिए खुल गए.

तुर्की की मीडिया
तुर्की के सरकारी ब्रॉडकास्टर टीआरटी वर्ल्ड ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक खबर में समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से एक खबर प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, भारत के आर्थिक सुधारों के वास्तुकार मनमोहन सिंह का 92 साल की आयु में निधन.विश्व के सभी नेताओं के बीच डॉ. मनमोहन सिंह को बहुत सम्मान दिया जाता था लेकिन भारत में उन्हें हमेशा इस धारणा का सामना करना पड़ता था कि सरकार में असली ताकत सोनिया गांधी के पास है.

सादगी भरी जीवनशैली और ईमानदारी के लिए मशहूर सिंह को व्यक्तिगत रूप से भ्रष्ट नहीं माना जाता था. लेकिन उसके दूसरे कार्यकाल में कई घोटाले सामने आए और वो अपनी सरकार के संबंधित लोगों पर कार्रवाई करने में असफल रहे जिसे देखते हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए.उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल में अंतिम सालों में भारत की विकास यात्रा डगमगा गई क्योंकि वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल और सरकार की धीमी निर्णय-प्रक्रिया ने निवेश को प्रभावित किया.

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