‘अब बच्चे कोर्ट में दलील देंगे’, तंज से भी नहीं डिगा हौसला, 12वीं के छात्र ने हाईकोर्ट में खुद लड़ी EWS कोटे की लड़ाई, मिली जीत

जबलपुर

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जज एक सुनवाई के दौरान 19 साल के लड़के की दलीलें सुनकर हैरान रह गए है। EWS कोटे के तहत निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं मिलने पर युवक ने याचिका लगाई थी। 12वीं पास अथर्व चतुर्वेदी ने बिना वकील के अपना केस खुद लड़ा है। साथ ही इसमें जीत हासिल की है। जज उनकी दलीलों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कहा कि तुम्हें डॉक्टर नहीं, वकील बनना चाहिए।

प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में नहीं मिला आरक्षण
अथर्व को NEET में 530 अंक मिले थे लेकिन प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में EWS कोटा न होने के कारण उन्हें दाखिला नहीं मिला। उन्होंने 10 नवंबर को याचिका दायर की और 17 दिसंबर को हाईकोर्ट ने फैसला उनके पक्ष में सुनाया। अथर्व अब सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अभी तक कॉलेज में दाखिला नहीं मिला है। उन्होंने केस की तैयारी खुद की और कई चुनौतियों का सामना किया।

अथर्व को ऐतिहासिक जीत मिली
अथर्व चतुर्वेदी, एक 19 वर्षीय छात्र, ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक ऐतिहासिक केस जीता है। इस केस के कारण अब प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के छात्रों को आरक्षण का लाभ मिलेगा। अथर्व ने NEET परीक्षा में 530 अंक प्राप्त किए थे। लेकिन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS कोटा नहीं होने के कारण उन्हें दाखिला नहीं मिला। इस अन्याय के खिलाफ उन्होंने खुद हाईकोर्ट में याचिका दायर की और अपनी पैरवी भी खुद की।

दलीलों से प्रभावित हुए जज
जज उनकी दलीलों से इतने प्रभावित हुए, साथ ही कहा कि गलत फील्ड में जा रहे हो, तुम्हें वकील बनना चाहिए। हाईकोर्ट ने अथर्व के पक्ष में फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अगले शैक्षणिक सत्र से प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS कोटा के लिए सीटें बढ़ाई जाएं। हालांकि, इस फैसले के बावजूद अथर्व को अभी तक मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं मिला है, इसलिए वे अब सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।

कॉलेज में दाखिला नहीं मिला
अथर्व ने बताया कि उन्होंने NEET के साथ-साथ JEE Mains भी पास की थी। उन्हें भोपाल के MANIT में कंप्यूटर साइंस में आसानी से दाखिला मिल सकता था। लेकिन उनका मन मेडिकल फील्ड में जाने का था। उन्हें उम्मीद थी कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में उन्हें दाखिला मिल जाएगा। लेकिन जब काउंसलिंग के आखिरी राउंड तक उन्हें कोई कॉलेज नहीं मिला तो वे निराश हो गए।

कम अंक वाले को मिल गया दाखिला
इसके साथ ही अथर्व ने कहा कि उनसे कम अंक वाले आरक्षित वर्ग के छात्रों को दाखिला मिल गया था। जबकि वे खुद भी EWS वर्ग से आते हैं। जांच करने पर पता चला कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में EWS के लिए कोई आरक्षित सीट ही नहीं है। यही उनके याचिका दायर करने का मुख्य कारण बना।

कोर्ट में लगाई याचिका
अथर्व ने बताया कि जाति प्रमाण पत्र होने का लाभ सभी परीक्षाओं में मिलता है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में SC/ST और विकलांग कोटे के लिए सीटें आरक्षित होती हैं। मध्य प्रदेश में विकलांग कोटे में 91 छात्र रजिस्टर्ड थे और उनके लिए 205 सीटें आरक्षित थीं। अथर्व की EWS कोटे में रैंक 134 थी और नियमों के अनुसार 187 सीटें आरक्षित होनी चाहिए थीं। जब उन्हें दाखिला नहीं मिला तो उन्होंने अपने पिता से बात की और कोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला लिया।

अथर्व ने खुद की पैरवी
अथर्व के पिता, मनोज चतुर्वेदी, एक वकील हैं। उन्होंने बताया कि पहली सुनवाई में उन्होंने खुद अथर्व की तरफ से पैरवी की थी। लेकिन इस दौरान कुछ गलतियां हो गईं। उन्होंने NEET परीक्षा को ही चुनौती दे दी, जिस पर सरकारी वकील ने आपत्ति जताई। इसके बाद अथर्व ने खुद केस लड़ने का फैसला किया। मनोज चतुर्वेदी ने बताया कि अथर्व पढ़ाई में तो हमेशा से तेज रहा है, लेकिन उसने कभी स्कूल स्तर पर डिबेट या ग्रुप डिस्कशन में हिस्सा नहीं लिया था। अथर्व ने कहा कि मैं इस केस से ज्यादा करीब से जुड़ा था। मेरे साथ गलत हुआ था इसलिए मेरे पास सरकारी वकील के हर तर्क का जवाब था। केस के दौरान पापा ने मुझे गाइड किया।

अब बच्चे भी कोर्ट में दलील देंगे
दूसरी सुनवाई के दौरान अथर्व पिछली बेंच पर बैठा था। जब उसके पिता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता खुद पैरवी करना चाहता है, तो पिछली बेंच पर बैठे एक जूनियर वकील ने तंज कसा कि अब बच्चे भी कोर्ट में दलील देंगे। लेकिन जब अथर्व ने बहस शुरू की तो जज उसकी दलीलों से प्रभावित हो गए। उन्होंने अथर्व से उसकी उम्र और काम के बारे में पूछा। जब अथर्व ने बताया कि वह NEET की तैयारी कर रहा है, तो जज ने कहा कि इतनी अच्छी बहस कर लेते हो, तुम गलत फील्ड में जा रहे हो। मुझे लगता है कि तुम्हारे लिए ही ये कोर्ट रूम बना है।

कानून से कोई लेना देना नहीं
अथर्व ने बताया कि उसने 12वीं साइंस (मैथ्स और बायोलॉजी) से की है। इसके बाद एक साल से NEET और JEE की तैयारी कर रहा था। संविधान और कानून से उसका कोई लेना-देना नहीं था। 7 नवंबर को NEET की आखिरी काउंसलिंग हुई थी। 10 नवंबर को उसने केस फाइल किया और 17 दिसंबर को फैसला आया। इस तरह 37 दिनों तक यह केस चला। इस दौरान उसने काफी रिसर्च की।

चीफ जस्टिस ने की तारीफ
3 दिसंबर को अंतिम सुनवाई होनी थी। लेकिन उसके पिता किसी दूसरे केस में व्यस्त हो गए और 10 मिनट देर से पहुंचे। तब तक अथर्व ने अकेले ही केस को संभाल लिया था। उसके पिता ने बताया कि कोर्ट ने यह फैसला अथर्व की उम्र देखकर नहीं दिया। डबल बेंच ने अथर्व से कई सवाल पूछे। हर तर्क पर उन्होंने जिरह की। जब वे सभी जवाबों से संतुष्ट हो गए, तभी उन्होंने फैसला सुनाया। आखिर में मध्य प्रदेश के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन ने अथर्व की तारीफ भी की।

कोर्ट में ऐसे हुई बहस
अथर्व: मीलॉर्ड, 93% अंक लाने के बाद भी मैं प्राइवेट कॉलेज में एक सीट हासिल नहीं कर सका, तो इसमें मेरी गलती नहीं है। यह सीट वितरण प्रणाली की गलती है। मैं जिस वर्ग (EWS) का हूं, उसका मुझे लाभ नहीं मिला।सरकारी वकील: सर, EWS वर्ग के लिए सीटें सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित हैं, प्राइवेट में नहीं। EWS आरक्षण 2019 में आया था। अथर्व: मीलॉर्ड, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्राइवेट संस्थान भी EWS आरक्षण देने के लिए बाध्य हैं। मध्य प्रदेश में पिछले 5 साल से ऐसा हुआ ही नहीं है।

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