यूपी में यूं ही नहीं खोजे जा रहे प्राचीन मंदिर, 2027 के चुनाव से जुड़ा है ये खास ‘अभियान’, समझिए रणनीति

लखनऊः

उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है, लेकिन यहां की राजनीति की गहराई से समझ रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में मंदिर-मस्जिद को लेकर बढ़ते हुए विवादों ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को जो धार दी है उससे चुनावी जमीन भी अभी से तैयार होने लगी है। राजनीतिक विश्लेषकों ने हाल ही में हुए उपचुनावों में हिंदू एकता की जमीन तैयार करने में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों के अहम भूमिका अदा करने की बात कही।

विवादों के चुनावी निहितार्थ
राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसलिए इन गहराते हुए मंदिर-मस्जिद विवादों के भी अपने चुनावी निहितार्थ हैं। राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह ने कहा कि उपचुनावों में प्रचार के दौरान समाजवादी पार्टी के नारे ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के जरिए की गई जातीय गोलबंदी के जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे को देखा गया और नतीजा भी उनके(भाजपा) पक्ष में आया।

यूपी विधानसभा उपचुनाव में 9 सीटों में 7 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को जीत मिली और सिर्फ 2 सीटें सपा के हिस्से में गईं। रंजन ने कहा कि हाल की घटनाओं से यह संकेत मिलने लगे हैं कि 2027 को लेकर ध्रुवीकरण की प्रक्रिया और तेज हो सकती है। हिंदू संगठनों की ओर से पहले वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग होने का दावा करने और उसके बाद अब संभल, बदायूं, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर जिलों में मस्जिदों में मंदिर के दावे या अरसे से बंद पड़े मंदिरों को खुलवाने की शुरुआत होने से विशेषज्ञों के ऐसे कयासों को बल मिला है।

संभल में हिंसा
ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग होने के दावे के बाद इसी माह बदायूं की जामा मस्जिद में नीलकंठ महादेव मंदिर होने का दावा करते हुए अदालत में याचिका दायर की गयी है और वहां की स्थानीय अदालत में वाद की विचारणीयता को लेकर जनवरी में सुनवाई होनी है। इस बीच, नवंबर माह में संभल की शाही जामा मस्जिद के हरिहरनाथ मंदिर के दावे को लेकर दायर याचिका पर अदालत के आदेश के बाद सर्वे के दौरान भड़की हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई।

राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह के और भी मामले सामने आ सकते हैं और इसका सीधा असर चुनाव पर होने से इनकार नहीं किया जा सकता। लखनऊ विश्‍वविद्यालय की पूर्व कुलपति और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा ने प्रदेश सरकार पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाते हुए कहा, ‘ऐसी घटनाएं तो पूरे देश में हो रही हैं, लेकिन 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर इस पेशबंदी से इंकार नहीं किया जा सकता।

खोई जमीन पाने को अभियान
प्रफेसर वर्मा ने इसकी वजह गिनाते हुए कहा कि हाल के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों (इंडिया गठबंधन) ने उत्तर प्रदेश में सबसे अच्‍छा प्रदर्शन किया और उस दौरान संवैधानिक मूल्यों को लेकर सत्ता पक्ष की जो किरकिरी हुई उसके बाद से ही ऐसी हरकतें कई गुना बढ़ गयीं। उन्होंने कहा कि ये लोग अपनी खोई जमीन पाने के लिए लगातार ऐसे अभियान चला रहे हैं। यूपी में 2024 के लोकसभा चुनावों में कुल 80 सीटों में भारतीय जनता पार्टी को 33 और उसकी सहयोगी राष्‍ट्रीय लोकदल (रालोद) को दो तथा अपना दल (एस) को एक सीट मिली जबकि इंडिया गठबंधन की प्रमुख घटक समाजवादी पार्टी को 37 और कांग्रेस को छह सीटों पर जीत मिली। एक सीट आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के हिस्से में भी गयी।

ये लोग सरकार को भी खोद देंगेः अखिलेश
हाल में संभल की मस्जिद में सर्वेक्षण और खुदाई जैसे कार्यों पर तंज कसते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने गत दिनों कहा था “ये लोग (सत्ता पक्ष) ऐसे ही ढूंढते रहेंगे, खोदते-खोदते एक दिन अपनी सरकार को भी खोद देंगे। यह लोग लोकतंत्र में नहीं, एक तंत्र में भरोसा करते हैं।” भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ने यादव पर पलटवार करते हुए पीटीआई-भाषा से कहा “सपा प्रमुख सत्य उजागर होने से डरते हैं क्योंकि विपक्ष के कुछ राजनीतिक दल और उनके नेता जनता जनार्दन के व्यापक हितों और न्याय परक व्यवस्था की अनदेखी करके केवल तुष्टिकरण की राजनीति से सत्ता की सीढ़ी पर चढ़ने चाहते हैं।”

पिछली सांप्रदायिक घटनाओं का जिक्र करते हुए श्रीवास्तव ने सवाल उठाया कि संभल में हुए 1978 तथा 1982 के दंगों में सैकड़ों हिंदू मारे गए, इसका जिम्मेदार कौन है? उन सैकड़ों हिंदू परिवारों को जिनकी नृशंस हत्या की गई, घरों में बंद करके जला दिया गया, उनको न्याय क्यों नहीं मिला? और उन लोगों को सजा क्यों नहीं मिली जो उस जघन्य कृत्य के दोषी थे ? यह किसकी जिम्मेदारी है?

उनकी नीयत ठीक नहींः सपा
वहीं मस्जिदों में मंदिरों के मामलों पर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुख्‍य प्रवक्‍ता और यूपी सरकार के पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने कहा कि ”उनकी (सत्तापक्ष) नीयत ठीक नहीं है, जनविरोधी है और यह कोशिश उल्‍टे उनके गले की फांस बनेगी।” चौधरी ने कहा “मोहन भागवत (आरएसएस प्रमुख) भी कह चुके हैं और जनता नाराज है कि उसकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है।जबकि बेवजह ऐसे मामलों पर सरकार लगी हुई है, इसलिए जनता में इसका उल्टा असर पड़ेगा।”

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा था, ”राम मंदिर के साथ हिंदुओं की श्रद्धा है लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं- ये स्वीकार्य नहीं है।”

राजनीतिक परिणाम
इस मामले पर बाबा साहब भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर सुशील कुमार पांडेय ने कहा, ”इस्लामी शासन के दौरान कई हिंदू पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया गया। अनुकूल राजनीतिक परिस्थितियों और राम मंदिर के निर्माण के साथ, ऐतिहासिक शिकायतों पर फिर से विचार करने से निस्संदेह सांप्रदायिक तनाव बढ़ेगा और इसके राजनीतिक परिणाम होंगे।”

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