नई दिल्ली,
आप कह सकते हैं कि राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि किसी महान शख्सियत की मौत पर भी राजनीति हो रही है. पर शायद आप भूल रहे हैं कि राजनीति इसी का नाम है. पॉलिटिशियन का हर कदम शतरंज की एक चाल होती है. फिलहाल पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मृत्यु के बाद उनकी अंत्येष्टि स्थल और उनके स्मारक बनाने के नाम पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच तू डाल-डाल , मैं पात-पात वाली राजनीति जमकर हुई. पर फाइनली केंद्र की एनडीए सरकार सब कुछ करके भी बैकफुट पर नजर आई. निगमबोध घाट पर डॉक्टर सिंह की अंत्येष्टि के समय राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह आदि ने पहुंचकर यह पैगाम देने की कोशिश की कि मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व राजनीति से परे था. जिनका सम्मान भारत के सभी लोग करते हैं. पर इतना सब कुछ करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की बजाए कांग्रेस ने स्मारक बनाने की मांग पर हो हल्ला करके अपने लिए जनता की सिंपैथी हथियाने में आगे निकल गई. हालांकि भारतीय जनता पार्टी अपने पत्ते इतनी जल्दी नहीं खोलती है. इसलिए इस मुद्दे पर उसके लिए बैकफुट पर जाने जैसी बात कहना अभी बेवकूफी ही कहा जाएगा.
नरसिम्हा राव और प्रणव मुखर्जी की तरह मनमोहन पर भी कब्जा न कर ले बीजेपी
दरअसल मनमोहन सिंह को लेकर जिस तरह कांग्रेस अफेंसिव थी उसके पीछे पार्टी को एक तरह का डर जरूर रहा होगा. कांग्रेस थोड़ी भी लापरवाही दिखाती तो जिस तरह बीजेपी ने नरसिम्हा राव और प्रणव मुखर्जी को अपना बना लिया वैसे ही आज मनमोहन सिंह के भी बीजेपी का हो जाने का खतरा था. जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल के खास साथियों सहित मनमोहन की शवयात्रा में पीछे-पीछे चल रहे थे, वह आम तौर पर जरूरी नहीं था. पीएम का डॉ. सिंह की पार्थिव देह पर पुष्पांजलि अर्पित करना ही काफी था.
पर बीजेपी ने जिस तरह की भावनाएं दिखाईं वो बिल्कुल ऐसी ही थी कि एक और कांग्रेस नेता को मरने के बाद अपने पाले में लाना है. सरदार वल्लभभाई पटेल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, पीवी नरसिम्हा राव, प्रणव मुखर्जी जैसे कांग्रेस नेताओं की पार्टी ने जिस तरह उपेक्षा की उसी का नतीजा रहा है कि बीजेपी उन्हें अपना बना सकी. बीजेपी तो यही दिखाना चाहती थी कि कांग्रेस में केवल गांधी परिवार के नेताओं की पूछ ही होती है.
प्रणव मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने जिस तरह के बयान दिए वो कांग्रेस की गैर गांधी नेताओं को पर्याप्त महत्व न देने का एक उदाहरण ही था. शर्मिष्ठा मुखर्जी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा है, जब बाबा का निधन हुआ था, कांग्रेस पार्टी ने शोक जताने के लिए वर्किंग कमेटी की बैठक तक नहीं बुलाई थी. एक वरिष्ठ नेता ने मुझे कहा कि यह राष्ट्रपतियों के लिए नहीं होता.
वो आगे लिखती हैं कि यह तर्क पूरी तरह बकवास है, क्योंकि जैसा कि बाद में मुझे बाबा की डायरी से पता चला कि केआर नारायणन के निधन के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई गई थी और उनका शोक संदेश बाबा ने ही तैयार किया था.
इसी बीच नरसिम्हा राव के भाई का भी बयान आ गया कि पूर्व पीएम नरसिम्हा राव की मृत्यु के बाद उनकी अंत्येष्ठि के लिए दिल्ली में जगह नहीं दी गई. उनकी शवयात्र के समय कांग्रेस मुख्यालय के गेट तक नहीं खोले गए. जाहिर है कि कांग्रेस की ओर से ऐसी गलती मनमोहन सिंह के लिए नहीं की गई. इसके पीछे कही न कहीं बीजेपी का डर था कि मनमोहन भी कहीं मरने के बाद बीजेपी के खेमें में न चले जाएं. वैसे अभी भी बीजेपी मनमोहन सिंह का स्मारक और भारत रत्न की घोषणा करके कांग्रेस से आगे निकल सकती है.
बीजेपी मनमोहन सिंह को लेकर क्यों बहुत उदार दिख रही है
अब सवाल उठता है कि क्या कारण है कि भारतीय जनता पार्टी मनमोहन सिंह को लेकर इतना उदार दिख रही है. साफ है कि मनमोहन सिंह कांग्रेस नेता रहे हैं उसके साथ ही मोदी सरकार के लिए उन्होंने कई तल्ख बयान दिए हैं. फिर भी मोदी सरकार ने मनमोहन के लिए जो जेस्चर दिखाया वह विचारणीय है. शुक्रवार को गृह मंत्रालय ने अपनी एक प्रेस रिलीज़ में कहा था कि उसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जगह आवंटित करने का एक निवेदन कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से मिला था. इसमें कहा गया कि कैबिनेट मीटिंग के तुरंत बाद गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार को बताया था कि सरकार स्मारक के लिए जगह देगी. इस बीच उनके अंतिम संस्कार और अन्य रस्म पूरे किए जा सकते हैं क्योंकि स्मारक के लिए एक ट्रस्ट का निर्माण और जगह का आवंटन किया जाना है.
इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने अंतिम संस्कार के समय भारत सरकार के खास मंत्रियों गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आदि के साथ अंत्येष्टि स्थल निगम बोधि घाट पर पहुंचे. सरकार बार-बार कह रही है कि वो मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जल्द ही जमीन आवंटित कर देगी.
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी बहुत कोशिश करके भी पंजाब विजय की स्क्रिप्ट नहीं लिख पा रहे हैं. तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी वहां चौथे नंबर से ऊपर नहीं उठ पा रही है. इसी तरह दिल्ली में बस विधानसभा चुनाव होने ही वाले हैं. दिल्ली विधानसभा की कई सीटें सिख बाहुल्य वाली हैं. दिल्ली में लगभग 12 प्रतिशत वो सिख समुदाय के हैं. इसके साथ ही दिल्ली के कई सीटों पर सिख समुदाय काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. लगभग 9 सीटों पर सिख हार जीत का आधार बनते हैं. राजौरी गार्डन, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर और ग्रेटर कैलाश जैसी सीटों पर सिखों का असर ज्यादा है. वर्तमान समय में 9 सीटों में से आठ पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है. अकाली दल का साथ छूटने के बाद से बीजेपी को चिंता है कि कहीं उसके वोट इस बा के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के साथ न चले जाए.
कैसे शुरू हुआ विवाद, पूरा विपक्ष मनमोहन के स्मारक के लिए एकजुट दिखा
डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार कहां होगा, इसका फैसला हुआ भी नहीं था कि कांग्रेस ने आक्रामक खेल शुरू कर दिया. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि देश की जनता यह नहीं समझ पा रही है कि सरकार को उनके अंतिम संस्कार और स्मारक के लिए एक जगह क्यों नहीं मिल पा रही है. ताबडतोड़ स्मारक के लिए जगह की की मांग को लेकर कांग्रेस के कई नेताओं के बयान आने लगे. सरकार ने तय किया कि निगम बोधि घाट पर पूर्व पीएम की अंत्येष्टि की जाएगी. इसके बाद तो कांग्रेस के हमले और भी तेज हो गए.
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने लिखा, एनडीए सरकार ने डॉ. मनमोहन सिंह जी जैसे महान व्यक्तित्व के अंतिम संस्कार एवं स्मारक बनाने को लेकर अनावश्यक विवाद पैदा किया है. जिस व्यक्तित्व को दुनिया सम्मान दे रही है उनका अंतिम संस्कार भारत सरकार किसी विशेष स्थान की जगह निगम बोध घाट पर करवा रही है.
हैरानी तो तब हुई जब शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी मनमोहन सिंह के स्मारक के मुद्दे पर मोदी सरकार से नाराज़गी जताई है. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, चौंकाने वाला और अविश्वसनीय! डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार ने इस प्रतिष्ठित और उत्कृष्ट नेता का अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर करने का अनुरोध किया था जहां एक ऐतिहासिक स्मारक बनाया जा सके. केंद्र सरकार ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया. यह अत्यंत निंदनीय है…
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सरकार पर हमले किए. सोशल मीडिया एक्स पर मायावती ने लिखा है, केन्द्र सरकार देश के पहले सिख प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह के देहांत होने पर उनका अन्तिम संस्कार वहा कराए और उनके सम्मान में भी स्मारक आदि वहीं बनवाए जहां उनके परिवार की दिली इच्छा है.