लखनऊ,
अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर यूपी का सियासी पारा हाई है. इस बीच राज्य के एक अधिकारी ने वीआरएस मांगा है. चर्चा है कि वह बीजेपी से उपचुनाव के लिए टिकट मांग रहे हैं. दरअसल, मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट के दावेदार उप परिवहन आयुक्त सुरेंद्र कुमार रावत ने वीआरएस की अर्जी डाली है.
इसी साल 31 मार्च को सुरेंद्र रावत का रिटायरमेंट है लेकिन उससे पहले ही उप परिवहन आयुक्त ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्जी शासन को भेजी है. माना जा रहा है कि मिल्कीपुर सुरक्षित सीट पर नए चेहरे की तलाश में बीजेपी सुरेंद्र रावत को भी प्रत्याशी बना सकती है. मिल्कीपुर सुरक्षित सीट से बाबा गोरखनाथ और सुरेंद्र रावत को प्रबल दावेदार माना जा रहा है जिसकी वजह से ही रिटायरमेंट से ढाई महीने पहले रावत ने वीआरएस के लिए अर्जी दी है.
हालांकि सुरेंद्र रावत ने शासन को भेजे अपने पत्र में पारिवारिक कारणों को वजह बताया है, लेकिन चर्चा है कि असल वजह चुनावी है. सुरेंद्र रावत मिल्कीपुर सीट पर जातिगत समीकरण के आधार पर बीजेपी के लिए एक नए और बड़े वोट बैंक का चेहरा हो सकते हैं. 5 फरवरी को मिल्कीपुर में होने वाले चुनाव को लेकर नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. ऐसे में शासन अगर सुरेंद्र रावत की अर्जी पर जल्द निर्णय नहीं लगा तो उनकी राजनीतिक पारी शुरू होने से पहले विराम भी लग सकता है.
मिल्कीपुर सीट पर प्रत्याशी के दौड़ में गोरखनाथ बाबा सबसे प्रबल दावेदार हैं. 2017 में मिल्कीपुर से विधायक रह चुके गोरखनाथ 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद से 13000 वोट से हारे थे. ऐसे में गोरखनाथ बाबा की इलाके में राजनीतिक पकड़, और जातिगत खेमेबंदी दावेदारी को मजबूत करती है. लेकिन भाजपा हमेशा नए प्रयोग नए चेहरे को लेकर भी जानी जाती रही है. ऐसे में मिल्कीपुर सीट पर नए चेहरों पर भी बीजेपी दाव लगाने का प्रयोग कर सकती है.
नए चेहरों में पूर्व नौकरशाह उप परिवहन आयुक्त रहे सुरेंद्र रावत का नाम चर्चा में है. पार्टी के संगठन से नए चेहरों में प्रदेश अनुसूचित मोर्चा के कोषाध्यक्ष चंद्रकेश रावत के साथ साथ पूर्व विधायक रामू प्रियदर्शी भी चर्चा में हैं. इस बार के मिल्कीपुर चुनाव में वोटों का गणित भी बदला है. 2022 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस और बसपा मैदान में थी. इस बार यह दोनों दल लड़ाई से बाहर हैं. 2022 के चुनाव में कांग्रेस और बसपा को मिलकर 17.5 हजार मिले थे और भाजपा 12, 913 वोटों से हार गई थी. ऐसे में बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों ही कांग्रेस और बसपा की झोली वाले वोट बैंक पर नजर गड़ाए हैं. दोनों ही इस वोट बैंक को अपने पाले में करने में जुटे हैं.