नई दिल्ली,
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ हुई रेप और मर्डर की वारदात ने पूरे देश को झकझोर दिया था. अब इस मामले के मुख्य आरोपी संजय रॉय को अदालत ने दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है. लेकिन इस जघन्य अपराध में कई लोगों के नाम आरोपी के तौर पर शामिल थे, जिन पर शक की सुई घूम रही थी. चलिए जान लेते हैं, कौन थे वो आरोपी और उन पर क्या इल्जाम थे? और इस मामले में क्या लापरवाही हुई थी.
पुलिस का सिविक वॉलंटियर संजय रॉय
मुख्य आरोपी संजय रॉय कोलकाता पुलिस का स्वयंसेवक था. पुलिस और सीबीआई की जांच के मुताबिक, संजय रॉय ही वो शख्स था, जिसने इस घिनौनी वारदात को अंजाम दिया था. इसलिए संजय रॉय को इस मामले का मुख्य आरोपी बनाया गया था. उस पर जूनियर डॉक्टर के साथ रेप और हत्या का आरोप लगाया गया. असल में वारदात के दिन पीड़िता जूनियर डॉक्टर को अस्पताल के सेमिनार हॉल में मृत अवस्था में पाया गया था. उसके जिस्म पर गंभीर चोटों के निशान थे.
पुलिस जांच में सामने आया था कि संजय रॉय घटना स्थल पर मौजूद था. उसके खिलाफ डीएनए भी एक अहम सबूत साबित हुआ, जिससे इस मामले में उसकी संलिप्तता साबित हुई. संजय रॉय को 10 अगस्त को सीसीटीवी फुटेज के आधार पर गिरफ्तार किया गया था. बाद में, 20 जनवरी 2025 को अदालत ने उसे दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
ताला पुलिस स्टेशन के SHO अभिजीत मंडल
जिस इलाके में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल है, वो ताला थाना इलाके में आता है. वारदात के वक्त वहां थाना प्रभारी अभिजीत मंडल थे. जिन पर क्राइम सीन को नष्ट करने और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने का इल्जाम लगा था. दरअसल, मामले की जांच के दौरान पाया गया कि अपराध के तुरंत बाद पुलिस की ओर से घटना स्थल की सफाई कर दी गई थी. पुलिस की इस कार्रवाई से महत्वपूर्ण फोरेंसिक सबूत मिट गए थे.
साथ ही अभिजीत मंडल पर पर अपराधियों को बचाने और न्याय प्रक्रिया को बाधित करने के आरोप लगाए गए थे. इसी वजह से पश्चिम बंगाल सरकार के सेवा नियमों के अनुसार अभिजीत मंडल को निलंबित किया गया था. इसके बाद 14 सितंबर को सीबीआई ने अभिजीत मंडल को गिरफ्तार कर लिया था. बाद में सीबीआई ने अदालत को बताया था कि दोनों पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहे हैं. लेकिन बाद में अदालत ने अभिजीत मंडल को भी जमानत दे दी थी.
पुलिस की लापरवाही
इससे पहले भी सीबीआई ने कोलकाता पुलिस की लापरवाही को लेकर एक बड़ा खुलासा किया था. जांच एजेंसी ने कहा था कि मुख्य आरोपी संजय रॉय की गिरफ्तारी के दो दिन बाद उसके कपड़े और सामान बरामद किए गए थे. पुलिस ने यह जानते हुए कि आरोपी से जुड़े सामान अपराध में उसकी भूमिक तय करने में अहम साबित हो सकते हैं, इसके बावजूद देरी की गई थी. इसके अलावा इलाकाई पुलिस पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और आरोपियों को बचाने की कोशिश करने का इल्जाम भी लगा था.
प्रिंसिपल संदीप घोष पर इल्जाम
यह मामला सीबीआई के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं था. इससे पहले कोलकाता पुलिस ने इस मामले की जांच की थी. संजय रॉय की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने एक तरह से इस मामले को सुलझाने का दावा करते हुए लगभग केस क्लोज करने का मन बना लिया था. जबकि लोगों को ऐसा लगा कि ऐसा करके पुलिस आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल संदीप घोष समेत कुछ लोगों की गलतियों को छुपाने की कोशिश कर रही है.
आरजी कर मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रमुख संदीप घोष पर सुरक्षा में लापरवाही बरतने और साक्ष्यों को नष्ट करने के आरोप थे. उन्हें सुरक्षा उपायों में चूक और साक्ष्यों के संरक्षण में असफलता का दोषी माना गया. उन पर आरोप है कि घटना के बाद उन्होंने सेमिनार हॉल को जल्दी साफ करवा दिया था, जिससे क्राइम सीन खुर्द बुर्द हो गया था. कोलकाता हाई कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई जांच शुरू की गई तो जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, जैसे सुरक्षा कैमरों का काम न करना और क्राइम सीन का खराब होना. इस लापरवाही ने अपराधियों को सबूत नष्ट करने का मौका दिया.
शुरू से संदिग्ध थे संदीप घोष
इस पूरे केस में डॉक्टर संदीप घोष अपने आप में एक संदिग्ध कैरेक्टर रहे. सत्ता और स्वास्थ्य मंत्रालय में इनकी अच्छी खासी पैठ है. इतनी जबरदस्त पैठ कि जब आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के प्रिंसिपल को चुनने के लिए इंटरव्यू हो रहा था, तब उस इंटरव्यू में ये 16वें नंबर पर रहे थे, पर इसके बावजूद इन्हें प्रिंसिपल बना दिया गया था. इसके बाद दो मौके ऐसे आए, जब इन्हें आरजी कर अस्पताल से ट्रांसफर भी कर दिया गया. लेकिन ट्रांसफर ऑर्डर निकलने के बावजूद दोनों बार ना सिर्फ इन्होंने उस ऑर्डर को रुकवाया बल्कि इसी आरजी कर अस्पताल में डटे रहे.
इनके ऊपर अस्पताल के वेस्ट मेटेरियल टेंडर से लेकर पार्किंग के टेंडर तक को लेकर घूस लेने के इल्जाम लगते रहे हैं. जूनियर डॉक्टर की मौत के बाद से इन पर और भी अब तरह तरह के इल्जाम लग रहे हैं. हालांकि गिरफ्तारी के बाद 13 दिसंबर 2024 को सियालदह कोर्ट ने पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष को जमानत दे दी थी. हालांकि, सीबीआई ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था.
53 घंटे हुई थी पूछताछ
जानकारी के अनुसार, पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष पर अनियमितता, अवैध कमीशन लेने और नियुक्तियों में हेरफेर के आरोप लगे थे. आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष से जांच एजेंसी CBI की टीम पूछताछ करती रही. संजय रॉय के अलावा वो अकेले ऐसे शख्स थे जिनसे महज 4 दिनों में सीबीआई ने 53 घंटे की पूछताछ की थी.
कौन है संदीप घोष?
कोलकाता से लगभग 80 किमी दूर स्थिति बनगांव में जन्मे और पले-बढ़े डॉ. घोष ने अपनी पढ़ाई 1989 में बनगांव हाई स्कूल से पूरी की. बाद में उन्होंने आरजी कर मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा हासिल की और 1994 में ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की. शुरुआती शिक्षा और व्यावसायिक यात्रा काफी अच्छी रही. हालांकि डॉ. घोष का बाद का करियर विवादों से भरा हुआ है.
घोष के खिलाफ राज्य स्वास्थ्य विभाग को कई शिकायतें भेजी जा चुकी हैं. एक जांच भी बिठाई गई थी. नतीजा यह हुआ कि दो बार घोष का ट्रांसफर हुआ और दोनों बार वह ट्रांसफर ऑर्डर को पलटवाने में कामयाब रहा. संदीप घोष पर पोस्टमार्टम के लिए रखी गई लाशों के गैर-कानूनी इस्तेमाल जैसे गंभीर मामले शामिल हैं. कई बार कॉलेज के स्टाफ ने स्वास्थ्य विभाग को इसे लेकर पत्र लिखा लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
साल 2021 में आर्थोपेडिक प्रोफेसर डॉ. संदीप घोष को आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया था. लेकिन 31 मई 2023 को उन्हें मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हड्डी रोग विभाग के प्रोफेसर के रूप में ट्रांसफर करने का आदेश जारी किया गया. हालांकि, घोष ने आदेश को पलटवा दिया था. इसके बाद 12 सितंबर 2023 को उन्हें ऑर्थोपेडिक्स विभाग के प्रोफेसर के रूप में एक बार फिर मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रांसफर करने का आदेश जारी किया गया था. एक बार फिर घोष ने उस आदेश को पलटवा दिया था.
12 अगस्त, 2024 को कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के प्रिंसिपल के रूप में उनका ट्रांसफर किया गया. लेकिन छात्रों के विरोध के कारण वह सीएनएमसी में चार्ज नहीं ले पाए. बाद में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को उन्हें छुट्टी पर भेजने का आदेश दिया. इसके बाद सीबीआई ने उनसे कई घंटे की पूछताछ भी की. फिर कुछ दिनों बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.
ऐसे मिली थी संदीप और अभिजीत को जमानत
दरअसल, कोर्ट ने आरोपियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए संदीप घोष और ताला थाना के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक अभिजीत मंडल को जमानत दे दी थी. मंडल को सीबीआई ने कथित तौर पर सबूत नष्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. लेकिन सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी के 90 दिन बाद भी उनके खिलाफ पूरक चार्जशीट दाखिल न करने के बाद अदालत ने दोनों को जमानत दे दी थी.
अलग-अलग थ्योरी
तभी आरजी कर अस्पताल के कुछ पुराने मामले भी सोशल मीडिया पर तैरने लगे थे. जिनमें 2003 का सौमित्र विश्वास खुदकुशी केस भी शामिल है. इल्जाम लगे कि सौमित्र की भी हत्या हुई थी और ये हत्या अस्पताल के अंदर चल रहे सेक्स और पोर्नोग्राफी रैकेट को दबाने के लिए की गई थी. इस बीच बीजेपी के एक सांसद ने आरजी कर अस्पताल में मानव अंगों की तस्करी का मुद्दा उठा कर एक नई थ्योरी उछाल दी थी.
क्या हुआ था उस रात?
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, आरोपी सुबह करीब 4 बजे चेस्ट मेडिसिन के सेमिनार रूम में पहुंचा था. उस वक्त जूनियर डॉक्टर कंबल ओढ़कर सो रही थी. इसका फायदा उठाकर आरोपी ने पहले उसके शरीर पर कई हमले किए. फिर कंबल हटाया. इसके बाद डॉक्टर ने विरोध किया तो उसने हमला किया. पीड़िता के बाएं गाल पर चोट के निशान इसकी तस्दीक करते हैं. उसके गाल पर नाखून की खरोंचें भी मिली हैं. हमला करने के बाद आरोपी ने उसका गला पकड़ा और चेहरे, पेट और छाती पर कई मुक्के मारे. इससे पीड़िता बेहोश हो गई और आरोपी ने उसके साथ रेप किया.