नई दिल्ली,
महाकुंभ -2025 की शुरुआत हुए अब एक हफ्ता हो चुका है. संगम तट पर कल्पवास कर रहे लोगों में गजब का उत्साह और अद्भुद श्रद्धा देखी जा रही है. इसके अलावा भी श्रद्धालुओं का संगम तट पर आना जारी है. महाकुंभ को देखकर ये आश्चर्य होना लाजिमी है कि कैसे इतने बड़े और भव्य मेले की तैयारियां की जाती हैं. कैसे यह दुनिया का सबसे बड़ा मेला बन जाता है, जहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या देश की आबादी की एक तिहाई है. सवालों की शृंखला में एक सवाल ये भी है कि कैसा रहा होंगे वो कुंभ, जो आजादी के पहले होते रहे और फिर आजाद भारत में सरकारों ने इसे कैसे संपन्न कराया?
कैसा था आजादी के बाद का पहला कुंभ?
इन सवालों का जवाब पुराने अखबारों की रिपोर्ट खंगालने से मिलता है. कुछ जवाब रिपोर्ताज आधारित किताबें भी देती हैं. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक धनंजय चोपड़ा इन सवालों के जवाब अपनी किताब ‘भारत में कुंभ’ में देते हैं. किताब के मुताबिक, आजादी मिलने के सात साल बाद ही कुंभ का समय आ गया था. पहले पीएम रहे नेहरू जो खुद तबके इलाहाबाद के निवासी रहे थे और कुंभ की महत्ता को बहुत अच्छे से जानते थे. उन्होंने इसे लेकर खास इंतजाम करने के निर्देश दिए थे. इस इंतजाम में यातायात पर विशेष ध्यान रखा गया था और रेलवे ने अपनी ओर से युद्धस्तर पर तैयारियां की थीं. यही वह पहला मौका था जब वायरलैस सिस्टम का भी प्रयोग किया था.
रेलवे ने किए थे कई इंतजाम
उस समय इलाहाबाद उत्तर रेलवे जोन में आता था और इस जोन में आने वाले पांच मंडलों ने कुंभ के लिए अपना शेड्यूल भी रिवाइज किया था. इसके अलावा जो काम किए गए, वो थे संगम के निकट रेलवे स्टेशन बनाना, जो कि अस्थाई तौर पर था. शटल ट्रेनों की संख्या बढ़ाई गईं. कई नईं भी चलाई गईं. पैसेंजर गाइड की भर्ती की गई और प्लेटफॉर्म आदि पर भी नई व्यवस्थाएं की गई थीं.
संगमतट के नजदीक बनाया गया अस्थाई स्टेशन
किताब की मानें तो, 1954 के कुंभ के लिए रेलवे ने शटल ट्रेनें चलाईं. इसके साथ ही संगम के बहुत नजदीक ही रेलवे स्टेशन बनाया गया था. कुंभ के लिए दो सौ से अधिक टिकट कलेक्टर भर्ती किए गए थे. लोगों को कुंभ में कोई समस्या न हो इसलिए पैसेंजर गाइड की भर्ती की गई थी. ट्रैफिक कंट्रोल के लिए एरिया कंट्रोल ऑफिस बनाया गया था, जो रेलवे के देशभर के जोनल मुख्यालयों से जुड़ा था. रेलवे की तैयारियों से संबंधित रिकॉर्ड अब भी इलाहाबाद के क्षेत्रीय अभिलेखागार में सुरक्षित हैं.
ट्रेनों को दिया गया था स्पेशल कैरेक्टर ‘K’
उत्तर रेलवे में आने वाले इलाहाबाद मंडल, मुरादाबाद मंडल, लखनऊ मंडल, दिल्ली मंडल और फिरोजपुर मंडल विशेष रूप से कुंभ की तैयारियों से जुड़े थे. सभी पांचों मंडलों ने कुंभ के लिए अपने टाइम टेबल बदले और फिर ट्रेनों के समय में भी बदलाव किया था. मेले के लिए चलने वाली स्पेशल ट्रेनों का समय और प्लेटफार्म भी पहले से ही तय कर दिया गया था. कुंभ के लिए चलाई जाने वाली ट्रेनों और रैक को स्पेशल इंग्लिश कैरेक्टर ‘के’ लोगो दिया गया था. जिससे उनकी पहचान आसानी से हो सके.
भीड़ प्रबंधन की थी तैयारी
कुंभ में आने वाले करीब 50 लाख श्रद्धालुओं में से 16 लाख के ट्रेन से आने का अनुमान था. इसे देखते हुए इलाहाबाद के मुख्य स्ट्रेशन के साथ ही रामबाग, झूंसी, नैनी, प्रयाग और प्रयाग घाट स्टेशनों पर इंतजाम किए गए थे. रेलवे ने भीड़ प्रबंधन के लिए भी तैयारी की थी. भीड़ को अलग करने और दबाव कम करने के लिए टिकट देने के लिए भी नियम बनाए गए थे. मेले के लिए वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को नियुक्त किया गया था.
138 पैसेंडर गाइड की हुई थी नियुक्ति
138 पैसेंजर गाइडों की नियुक्ति करीब दो महीने के लिए की गई थी. जिससे स्टेशन पर यात्रियों को कोई परेशानी न हो. मेले में नियुक्त किए कर्मचारियों को बीस प्रतिशत और मेले के बाहर लेकिन मेला ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों को सैलरी का दस प्रतिशत अलाउंस दिया गया.मेले में पहली बार रेलकर्मियों ने वीएचएफ वायरलेस सेट का प्रयोग किया और इसके लिए उन्हें ट्रेंड भी किया गया था.