नई दिल्ली
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को फाइनेंशियल ईयर 2025-26 का बजट पेश करेंगी। टैक्सपेयर्स की उम्मीदों एक बार फिर परवान चढ़ रही हैं। माना जा रहा है कि मांग और खपत को बढ़ावा देने के लिए सरकार इस बार इनकम टैक्स में कुछ राहत मिल सकती है। लेकिन आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सीतारमण को बजट में टैक्स में कटौती नहीं करने की सलाह दी है। उनका कहना है कि इसके बजाय देश में दीर्घकालिक समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार बढ़ाने में टारगेटेड इनवेस्टमेंट की जरूरत है।
राजन ने स्विट्जरलैंड के दावोस में इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में कहा कि फिस्कल स्पेस की सीमाओं का उल्लेख किया। उनका कहना था कि सरकारी पैसों का इस्तेमाल इकॉनमी में ढांचागत चुनौतियों के समाधान के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि खपत को बढ़ावा देने के लिए टैक्स में कटौती आकर्षक लग सकती है लेकिन मौजूदा राजकोषीय स्थिति में ऐसे उपायों के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त घाटे के हवाले से कहा कि देश की राजकोषीय स्थिति उतनी अच्छी नहीं है।
रोजगार बढ़ाने की जरूरत
उन्होंने चेतावनी दी कि सावधानीपूर्वक विचार किए बिना खर्च को और बढ़ाने से ऋण का बोझ बढ़ सकता है। इसके बजाय मानव पूंजी विकास पर सरकारी खर्च के प्रभावी इस्तेमाल से बेहतर परिणाम मिलेंगे। राजन ने कहा कि यह समय टैक्स में कटौती का नहीं है। हमें हर स्तर पर अपनी मानव पूंजी की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। इससे हमें भविष्य की नई अर्थव्यवस्था में एक मौका मिलता है।
राजन से पूछा गया कि क्या टैक्सेशन लोगों के लिए समस्या बन रहा है? इस पर उन्होंने कहा, ‘क्या यह बहुत अधिक है? यदि आप मजबूत इनकम ग्रोथ हासिल नहीं कर रहे हैं, तो समस्या है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे टैक्स के लेवल पर कोई बड़ी समस्या है। मैं कहूंगा कि हमें हर बार इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है। लेकिन मैं कहूंगा कि अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि हमें मजबूत रोजगार सृजन की आवश्यकता है।’
इकॉनमी में सुस्ती की वजह
राजन ने खपत में चल रही मंदी के लिए आर्थिक अनिश्चितताओं को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों को कुछ समय से उपभोग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जबकि उच्च मध्यम वर्ग के बीच सतर्क खर्च की बढ़ती प्रवृत्ति बढ़ रही है। ‘क्या हमारे पास उचित नौकरियां हैं? क्या हमारे बच्चे अच्छी तरह से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं? क्या हम भविष्य के बारे में इतना आश्वस्त हैं कि हम खर्च कर सकें?’ उन्होंने कहा कि इकॉनमी में सुस्त मांग के लिए यही असली वजह है।