करीब 10 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी एक चुनाव क्या हारी, बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषकों ने आप के खत्म होने की घोषणा कर दी. पार्टी का मर्सिया तक पढ़ा जाने लगा, लेकिन जिन लोगों को लगता है कि सिर्फ एक चुनाव भर हार जाने से कोई पार्टी खत्म हो जाएगी, उन्होंने शायद दिल्ली के नतीजों को कायदे से देखा नहीं है.दिल्ली के नतीजों में ही आम आदमी पार्टी के लिए वो संदेश है, जिसे पढ़कर ये पार्टी न सिर्फ फिर से खड़ी हो सकती है बल्कि अपनी पुरानी जगह को भी हासिल कर सकती है.
आप को कितने वोट?
आप आम आदमी पार्टी की राजनीति से सहमत हों, असहमत हों लेकिन एक बात से तो आपको सहमत होना ही पड़ेगा कि दिल्ली में बीजेपी की इस लहर में भी आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत 43.57 फीसदी है.
10 साल की एंटी इनकम्बेंसी, भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप, यमुना की सफाई और टूटी हुई सड़कों की वजह से पब्लिक केजरीवाल के खिलाफ थी. इन्हीं वजहों ने बीजेपी के पक्ष में हवा भी बनाई. इसके बावजूद बीजेपी और आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में 2 फीसदी से भी कम का ही अंतर है.
बीजेपी को कितने वोट?
चुनाव आयोग का आंकड़ा बताता है कि दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 48 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी को इस चुनाव में 45.56 फीसदी वोट मिले, जबकि 22 सीटों पर सिमटने वाली आप के पास अब भी 43.57 फीसदी वोट हैं. इतनी भारी एंटी इनक्मेंबेसी, इतनी भारी नाराजगी के बाद भी 2020 की तुलना में आप के वोट प्रतिशत में 10 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि लहर के बावजूद बीजेपी 2020 की तुलना में 7 फीसदी वोट ही ज्यादा हासिल कर पाई है.
ऐसे में महज एक हार की वजह से पार्टी का मर्सिया पढ़ देना राजनीतिक समझ के लिहाज से जल्दबाजी है, क्योंकि आम आदमी पार्टी कोई पहली ऐसी पार्टी नहीं है, जिसने सत्ता का स्वाद चखा और फिर वो हार गई हो. इस देश में जितने भी कद्दावर नेता रहे हैं चाहे वो अटल बिहारी वाजपेयी हों या फिर इंदिरा गांधी सब चुनाव हारे हैं, सबकी पार्टी चुनाव हारी है और इसके बाद भी उन्होंने वापसी की है.
1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद बीजेपी महज 2 सीटों पर सिमट गई थी, खुद वाजपेयी भी चुनाव हार गए थे और तब भी बीजेपी के खत्म होने की भविष्यवाणी की गई है, लेकिन यही बीजेपी पहले 1998 और 999 में गठबंधन के सहारे तो 2014 और 2019 में अपने बूते बहुमत ले आई और 2024 में वो गठबंधन के सहारे फिर से एक बार सत्ता में है.
कांग्रेस के साथ भी यही हुआ था. 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में न सिर्फ कांग्रेस हारी बल्कि इंदिरा अपना खुद का चुनाव हार गईं. लेकिन 1980 में इंदिरा ने वापसी की और 1984 में इंदिरा की मौत के बाद कांग्रेस को इतनी सीटें मिलीं, जितनी आजतक के राजनीतिक इतिहास में किसी भी दल को नहीं मिली हैं और इस बड़ी जीत के ठीक पांच साल बाद 1989 में कांग्रेस ऐसी हारी कि उसके बाद वो कभी अपने बूते सत्ता में आ ही नहीं पाई और 2014 के बाद से तो वो 100 सीटें भी नहीं पहुंच पाई है, लेकिन तब भी किसी ने कांग्रेस के खत्म होने की बात नहीं कही. किसी ने उस पार्टी का मर्सिया नहीं पढ़ा.
ऐसे में अभी आप के भी खात्मे की बात करना जल्दबाजी है, क्योंकि अब भी पंजाब में आप की सत्ता है. गुजरात और गोवा में इस पार्टी के विधायक हैं और अगर अब भी अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली वाली गलती से सबक सीख लिया तो फिलवक्त दिल्ली में तो नहीं लेकिन शायद पंजाब में वो अपना जनाधार बचा सकें. बाकी तय तो जनता को ही करना है कि आप का क्या होगा.