इंदौर
मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में हर साल रंगपंचमी पर ऐतिहासिक गेर निकाली जाती है। इस ऐतिहासिक गेर को यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल कराने की कोशिशें की जा रही है। हालांकि इस प्रयास को इस बार कठिन चुनौती मिलने जा रही है। जिला प्रशासन लंबे समय से इस प्रयास में जुटा है, लेकिन इस बार संस्कृति मंत्रालय मथुरा, वृंदावन और बरसाना की प्रसिद्ध होली को भी इस सूची में शामिल करने का प्रस्ताव भेजने की तैयारी कर रहा है।
इंदौर गेर बनाम ब्रज की होली
संभावना जताई जा रही है कि सांस्कृतिक श्रेणी में केवल एक परंपरा को ही स्थान मिल सकता है। जिससे इंदौर की गेर और ब्रज की होली के बीच कड़ा मुकाबला होगा। पूरे भारत में होली अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाई जाती है। लेकिन मथुरा, वृंदावन और बरसाना की होली की ऐतिहासिकता सदियों पुरानी है। वहीं, इंदौर में रंगपंचमी के दिन गेर निकालने की परंपरा लगभग 70-75 साल पुरानी मानी जाती है।
बरसाना और वृंदावन की होली की खासियत
बरसाना की लठमार होली देशभर में प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाएं पुरुषों को लाठियों से प्रेमपूर्वक प्रहार करती हैं। वहीं, वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली खेली जाती है, जो अपने अनूठे अंदाज के लिए मशहूर है। दूसरी ओर, इंदौर के राजवाड़ा पर होली और रंगपंचमी पर रंग-गुलाल उड़ाने की परंपरा होलकर राजवंश के समय से चली आ रही है, लेकिन संगठित रूप में गेर निकालने की परंपरा बाद में शुरू हुई।
वैश्विक स्तर पर मिलेगी पहचान
यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल होने से किसी परंपरा या स्थल को वैश्विक पहचान मिलती है। जिससे उसकी महत्ता बढ़ जाती है। इससे पर्यटन, रोजगार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलता है। यदि इंदौर की गेर इस सूची में स्थान पाती है, तो यह प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में मददगार साबित होगी।
यूनेस्को की सूची में शामिल होने की प्रक्रिया
यूनेस्को की सूची में स्थान पाने के लिए सबसे पहले भारत सरकार की नेशनल इन्वेंट्री में शामिल होना अनिवार्य होता है। इसके बाद विशेषज्ञों की टीम परंपरा का गहन अध्ययन किया जाता है और फिर नामांकन की प्रक्रिया शुरू होती है। हालांकि 75 सालों से निकल रही गेर को अभी तक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में मार्क नहीं की गई है। ऐसे में इंदौर की गेर को यूनेस्को में शामिल होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
दुर्गा पूजा, रामलीला,वेदपाठ को मिला दर्जा
अब तक भारत की कई सांस्कृतिक परंपराएं यूनेस्को की सूची में शामिल हो चुकी हैं। हाल ही में गुजरात के पारंपरिक गरबा नृत्य को स्थान मिला था। इससे पहले दुर्गा पूजा को इस सूची में शामिल किया गया था। वहीं, इससे पहले रामलीला, वेदपाठ, नवरोज, कुंभ मेला और सिंहस्थ को भी सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया जा चुका है।
कोरोना के कारण पिछड़ गई थी गेर की दावेदारी
साल 2020 में तत्कालीन कलेक्टर लोकेश कुमार जाटव ने गेर को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत श्रेणी में शामिल कराने के लिए प्रस्ताव तैयार करवाया था। इस दौरान गेर के जुलूस पर फिल्म बनाकर यूनेस्को को भेजने की योजना थी। हालांकि कोरोना महामारी के कारण गेर का आयोजन नहीं हो सका, जिससे यह प्रयास अधूरा रह गया।
अब इस बार इसे फिर से यूनेस्को की सूची में शामिल कराने के लिए पुरजोर कोशिशें की जा रही हैं। सांसद शंकर ललवानी ने कहा कि दिल्ली में संस्कृति मंत्री से मुलाकात कर ऐतिहासिक गेर के संबंध में चर्चा की जाएगी। ताकि इंदौर की गेर को यूनेस्को की सूची में शामिल करने का प्रयास तेज हो सके।