MP का मतलब ‘More Pay’… सांसदों की सैलरी तो बढ़ी लेकिन बाकी आम लोगों का क्या?

नई दिल्ली,

देश के नेताओं के लिए वेतन वृद्धि का मौसम आखिरकार आ ही गया है. दो साल से ज़्यादा के इंतज़ार के बाद सांसदों की सैलरी में बढ़ोतरी की गई है. बेसिक सैलरी में 24 फीसदी की बढ़ोतरी से मौजूदा सैलरी 1 लाख रुपये से बढ़कर 1.24 लाख रुपये हो गई है. सांसदों के लिए अच्छी खबर यहीं खत्म नहीं होती. यह बढ़ोतरी एक अप्रैल 2023 से लागू होगी, जिससे उन्हें 31 मार्च तक 5.76 लाख रुपये का बकाया भी मिलेगा.

संसदीय कार्य मंत्रालय की ओर से 24 मार्च को जारी गजट नोटिफिकेशन में केंद्र ने सांसदों के सैलरी और भत्ते बढ़ा दिए हैं. दैनिक भत्ता (संसद सत्र के दौरान) 2,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया गया है. मंथली पेंशन भी 24 प्रतिशत बढ़कर 25,000 रुपये से 31,000 रुपये हो गई है. पांच साल से अधिक की सेवा के हर साल के लिए अतिरिक्त पेंशन भी 2,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रति माह कर दी गई है. पिछली बार सांसदों और पूर्व सांसदों की सैलरी और भत्ते 2018 में रिवाइज किए गए थे.

सांसद vs आम भारतीय
हालांकि, इस बार निर्वाचन क्षेत्र और कार्यालय भत्ते में बढ़ोतरी का कोई जिक्र नहीं किया गया है. अगर भत्ते में 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी लागू की जाती है, तो वे 70,000 रुपये से बढ़कर 86,800 रुपये (निर्वाचन क्षेत्र) और 60,000 रुपये से बढ़कर 74,400 रुपये (कार्यालय खर्च) हो जाएंगे.

अब एक सांसद को हर महीने 2.54 लाख रुपये मिलेंगे, यानी सालाना 30.48 लाख रुपये की इनकम होगी. यह देखते हुए कि 2022-23 के लिए भारत की प्रति व्यक्ति सालाना आय 1.72 लाख रुपये (मौजूदा कीमतों पर) थी, एक सांसद औसत भारतीय की मासिक आय से लगभग 17 गुना ज्यादा कमाता है. यह मानते हुए कि तीन संसदीय सत्रों में से हर सत्र 30 दिन तक चलता है, सांसदों को दैनिक भत्ते के रूप में सालाना 2.25 लाख रुपये ज्यादा मिलेंगे.

सुविधाएं और भत्ते
यह सांसदों को मिलने वाले लाभों और सुविधाओं का एक हिस्सा है. हर सांसद को अपने और अपने परिवार के लिए फ्री मेडिकल सर्विस, दिल्ली में किराया मुक्त आवास या 2 लाख रुपये प्रति माह का आवास भत्ता मिलता है. सांसदों को 50,000 यूनिट मुफ़्त बिजली, 4,000 किलोलीटर मुफ़्त पानी और फ़ोन और इंटरनेट यूज के लिए रिम्बर्समेंट भी मिलता है. वे अपने और अपने परिवार के लिए सालाना 34 घरेलू हवाई यात्राओं, फर्स्ट क्लास में फ्री की ट्रेन यात्रा और निर्वाचन क्षेत्रों के भीतर सड़क यात्रा के लिए माइलेज भत्ते के लिए रिम्बर्समेंट क्लेम भी कर सकते हैं.

महंगाई दर और सैलरी
भारत में प्राइवेट और पब्लिक दोनों सेक्टर में वेतन वृद्धि अक्सर महंगाई दर से पीछे रही है, जिसके कारण इनकम में ठहराव या यहां तक कि गिरावट आई है. 2000 के दशक की शुरुआत में भारत में मुद्रास्फीति औसतन 5-6 प्रतिशत प्रति वर्ष के आसपास रही. हालांकि 2010 के दशक की शुरुआत में महंगाई दर फिर ऊपर चढ़ी और 2013 में 10 फीसदी से ज्यादा हो गई. लेकिन 2010 के दशक के आखिर तक, मुद्रास्फीति दरें 3-5 प्रतिशत की सीमा के भीतर स्थिर हो गईं. हाल ही में 2023 में वार्षिक मुद्रास्फीति दर 5.65 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि इस साल फरवरी में मुद्रास्फीति दर घटकर 3.61 प्रतिशत हो गई.2019 और 2023 के बीच विभिन्न क्षेत्रों में वेतन वृद्धि 0.8 प्रतिशत से 5.4 प्रतिशत तक रही जबकि मुद्रास्फीति 3.73 प्रतिशत और 6.7 प्रतिशत के बीच उतार-चढ़ाव करती रही, जिससे क्रय शक्ति कम हो गई.

वेतन आयोग की सिफारिश और सैलरी
पब्लिक सेक्टर में भी स्थिति बेहतर नहीं है. पिछले कुछ सालों में सांसदों के मूल वेतन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो अक्सर केंद्रीय वेतन आयोगों की सिफारिशों से कहीं ज़्यादा है. 2006 में सांसदों को 33.3 फीसदी वेतन वृद्धि मिली, जबकि 6वें वेतन आयोग ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 54 प्रतिशत की वृद्धि को मंज़ूरी दी.

साल 2010 का रिवीजन सबसे अलग था, जिसमें सांसदों के वेतन में 212.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि उस वर्ष वेतन आयोग की कोई सिफारिश लागू नहीं हुई. 2018 में 7वें वेतन आयोग (2016) के तहत 14.3 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में सांसदों का वेतन दोगुना हो गया. 2023 में सबसे ताजा सांसदों को 24 प्रतिशत वेतन वृद्धि मिली, जो फिर से वेतन आयोग के फ्रेमवर्क से बाहर थी.

ये सभी भत्ते और सुविधाएं मिलकर सरकारी खजाने पर भारी दबाव बनाती हैं. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से 2018 में एक आरटीआई से पता चला है कि 2014-15 से 2017-18 तक लोकसभा और राज्यसभा सांसदों के वेतन और भत्तों पर 1,997 करोड़ रुपये खर्च किए गए. हर लोकसभा सांसद को प्रति वर्ष औसतन 71.29 लाख रुपये वेतन मिलता था, जबकि प्रत्येक राज्यसभा सांसद को 44.33 लाख रुपये मिलते थे.

महंगाई के चलते ईंधन और हवाई किराए की कीमतों में जिस तरह से बढ़ोतरी हुई है, उसे देखते हुए सरकारी खजाने पर बोझ अब और भी ज्यादा होगा. उदाहरण के लिए दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 2018 में लगभग 69.04 रुपये प्रति लीटर थी जो अब 37 फीसदी बढ़कर 95 रुपये प्रति लीटर के करीब पहुंच गई है.

लोकसभा में 93% सांसद करोड़पति
एडीआर के मुताबिक 18वीं लोकसभा में 543 निर्वाचित प्रतिनिधियों में से 504 करोड़पति हैं, जो सांसदों का 93 प्रतिशत है. यह आंकड़ा इसे अब तक की सबसे अमीर लोकसभा बनाता है. पिछले 15 साल में निर्वाचित सांसदों की औसत संपत्ति सात गुना से ज्यादा बढ़ी है, जो 2009 में 5.35 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024 में 46.34 करोड़ रुपये हो गई है. हालिया वेतन वृद्धि के साथ, उनकी संपत्ति में और इजाफा होने की उम्मीद है, जिससे देश में करोड़पति सांसदों की संख्या बढ़ गई है.

पहले कितनी थी सैलरी और भत्ते
साल 2018 में सांसदों का मासिक वेतन दोगुना होकर 1,00,000 रुपये हो गया, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 45,000 रुपये से बढ़कर 70,000 रुपये हो गया और कार्यालय व्यय भत्ता 45,000 रुपये से बढ़कर 60,000 रुपये हो गया. पूर्व सांसदों की पेंशन 20,000 रुपये से बढ़कर 25,000 रुपये प्रति माह हो गई. इससे पहले, 2006 में सांसदों का मूल वेतन 12,000 रुपये से बढ़कर 16,000 रुपये हो गया था, जो 33 प्रतिशत की वृद्धि थी. उस समय निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 10,000 रुपये से दोगुना होकर 20,000 रुपये हो गया था, दैनिक भत्ता 500 रुपये से दोगुना होकर 1,000 रुपये हो गया था. ऑफिस भत्ते में 14,000 रुपये से 23,000 रुपये तक की वृद्धि देखी गई थी.

अगली उछाल 2010 में आई, जब मासिक वेतन तीन गुना से ज़्यादा बढ़कर 50,000 रुपये हो गया. दैनिक भत्ता दोगुना हो गया. निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और कार्यालय व्यय भत्ता दोनों दोगुने से ज़्यादा बढ़कर 45,000 रुपये प्रति माह हो गए. पूर्व सांसदों की पेंशन में भी 8,000 रुपये से बढ़कर 20,000 रुपये प्रति माह हो गई. हालांकि, 2020 एक असाधारण वर्ष था जब सांसदों के वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती की गई थी, जो 1 लाख रुपये से घटकर 70,000 रुपये हो गई थी. कोरोना महामारी के दौरान वित्तीय जिम्मेदारी के उपाय के रूप में एक वर्ष के लिए भत्ते भी कम कर दिए गए थे.

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