नई दिल्ली
हाल ही में वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में 147 देशों को शामिल किया गया है, जिसमें कई युद्धग्रस्त देश भी शामिल हैं। हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत 118वें नंबर पर है। पहले नंबर पर पिछले 8 सालों से फिनलैंड बना हुआ है। हैरानी की बात यह है कि युद्ध झेल रहा यूक्रेन और कंगाल पाकिस्तान भी इस लिस्ट में हमसे आगे है। यानी ये रिपोर्ट यह मानती है कि तीन सालों से युद्ध झेल रहे यूक्रेनी नागरिक और हिंसा-आतंकवाद, गरीबी का शिकार पाकिस्तानी नागरिक भारतीयों से ज्यादा खुश हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट और इसे तैयार करने वाली संस्थाओं पर सवाल उठना लाजमी है। आज हम समझेंगे कि वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स कैसे तैयार होता है? यह डाटा कलेक्ट कैसे होता है हैप्पीनेस को मेजर कैसे किया जाता है और सबसे बड़ा सवाल क्या यह रिपोर्ट सच में हैप्पीनेस दिखाती है या एक और बायस रैंकिंग है।
हैप्पीनेस इंडेक्स कैसे तैयार होता है?
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट (World Happiness Report) संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क (SDSN) द्वारा प्रकाशित की जाती है। यह रिपोर्ट गैलप वर्ल्ड पोल (Gallup World Poll) से प्राप्त डेटा पर आधारित होती है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों की आत्म-रिपोर्टेड जीवन संतुष्टि (life satisfaction) को मापना है। यह इंडेक्स छह कारकों पर आधारित होती है। यानी इन 6 बातों के जरिए ये मान लिया जाता है कि कौन सा देश ज्यादा खुश है।
- प्रति व्यक्ति जीडीपी: प्रति व्यक्ति जीडीपी का मतलब जितना एक देश अमीर उतने ही लोग खुश। लेकिन क्या सिर्फ पैसा ही खुशी ला सकता है भारतीय संस्कृति और आध्यात्म जैसे बड़े कारक खुशी का कारण नहीं बनते।
- सामाजिक समर्थन: इसका मतलब है कि संकट के समय परिवार या दोस्तों से सहायता की उपलब्धता।
- स्वस्थ जीवन प्रत्याशा: यानी खुशी का कारक ज्यादा सालों तक स्वस्थ रहना और जीना माना जा रहा है। लेकिन क्या लंबा जीवनकाल खुशी का कारण हो सकती है।
- स्वतंत्रता: जीवन के जरूरी फैसले लेने की आजादी।
- उदारता: दान या परोपकार की भावना। लेकिन भारत जैसे देश में तो दान और परोपकार की पुरानी संस्कृति रही है।
- भ्रष्टाचार की धारणा: सरकार और व्यवसायों में भ्रष्टाचार का स्तर। लेकिन ये पूरी तरह धारणा पर आधारित है, जो मीडिया और नरेटिव से इन्फ्लुएंस होता है। सच्चाई और धारणादोनों अलग हो सकते हैं।
0 से 10 के बीच देना होता है नंबर
इन छह कारकों को गैलप वर्ल्ड पोल के सर्वे के जरिए मेजर किया जाता है, जिसमें लोगों से ‘कैन्ट्रिल लैडर’ सवाल पूछा जाता है। यानी लोगों से पूछा जाता है कि वो 0 से 10 के पैमाने पर कितना नंबर देंगे। जहां 0 सबसे खराब और 10 सबसे ज्यादा खुशी दर्शाता है।
सिर्फ 1000 लोग तय करते हैं पूरे देश की हैप्पीनेस
सबसे बड़ा सवाल इस सर्वे के सैंपल साइज को लेकर है। आखिर वो कौन लोग हैं, जो किसी देश की हैप्पीनेस को डिसाइड करते हैं। गैलप वर्ल्ड पोल हर साल 140 से ज्यादा देशों में करीब 1,000 लोगों का सर्वे करता है। यानी किसी भी देश के एक हजार लोग ये तय करते हैं कि पूरा देश कितना खुश है। भारत जैसे देश जहां की आबादी 140 करोड़ से भी ज्यादा है, वहां महज 1000 लोग हैप्पीनेस कैसे तय कर सकते हैं?
कौन हैं वो लोग जो सर्वे में होते हैं शामिल?
इससे भी बड़ी रोचक बात यह है कि जिन लोगों को सर्वे में शामिल किया जाता है, उनके बारे में SDSN कोई जानकारी नहीं देता। बस यह बताया जाता है कि सर्वे में रैंडम सैंपलिंग ली गई है। अब सवाल यह भी है कि भारत के लिए जिन 1000 लोगों का सैंपल लिया गया क्या उनका धर्म, संस्कृति और जीवन जीने का तरीका अलग-अलग है या एक ही है। अगर सिर्फ एलिट या अर्बन पॉपुलेशन पर सर्वे किया जाए तो क्या वो गांव में रहने वाले किसानों, आदिवासी और मिडिल क्लास फैमिली की खुशी को तय कर सकते हैं?
रिसर्च एक्सपर्ट्स की मानें तो अच्छा सर्वे वह होता है, जहां आबादी के हिसाब से सैंपल लिया जाए। ऐसे में हैप्पीनेस इंडेक्स का सैंपल साइज अपेक्षाकृत छोटा होने के कारण इसकी सटीकता पर सवाल उठते हैं, खासकर भारत जैसे बड़े और विविध देशों के संदर्भ में।
‘भारत को गलत रैंकिंग दी जाती है’
एक ऑस्ट्रेलियन सोशलिस्ट सैल्वाटोर बाबोनेस ने निजी चैनल से बात करते हुए बड़ा खुलासा किया था। उन्होंने कहा था कि ये वर्ल्ड रैकिंग्स और इंडेक्स को गलत तरीके से तैयार किया जाता है। इन रैंकिंग्स को दरअसल सर्वे के आधार पर तैयार किया जाता है, सवाल ये है कि ये सर्वे किन लोगों पर किए जाते हैं, इनमें इंटेलेक्चुअल वर्ग से जुड़े लोग, विदेश और भारत के छात्र, एनजीओ और मानवाधिकार संगठनों से जुड़े लोग होते हैं। इन रैंकिंग्स में भारत को गलत आंका जाता है।
सर्वे करने वाली संस्थाओं की फंडिंग कहां से होती है?
हमें ये भी समझना होगा कि जो संस्था ये रिपोर्ट तैयार करती है, उसे फंडिंग कहां से मिलती है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क जो यह रिपोर्ट बनाता है वो बिल गेट्स फाउंडेशन रॉकेफेला फाउंडेशन जैसे ग्लोबलिस्ट ग्रुप से फंडेड है। यह वही लोग हैं जिनपर भारत के खिलाफ नैरेटिव और एजेंडा चलाने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में क्या हैप्पीनेस इंडेक्स पर सवाल उठाना जरूरी नहीं है?
पहले नंबर पर फिनलैंड, क्या वाकई खुश है?
हैप्पीनेस रिपोर्ट में यूरोप के देश फिनलैंड को सबसे ज्यादा खुश बताया गया है। फिनलैंड लगातार आठ साल से वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में पहले स्थान पर है। लेकिन वहां के आंकड़े कुछ और ही बयां करते हैं। WHO के अनुसार फिनलैंड में 16 से 20% लोग मेंटल डिसऑर्डर से जूझ रहे हैं। वहीं इसके 7% लोग डिप्रेशन में है जो दुनिया के वर्स्ट डिप्रेशन रेट्स में नौवें नंबर पे आता है। इसके साथ ही फिनलैंड का तलाक रेट 61% है और यूएसए वहां डवोर्स रेट 47% है। अगर इनकी भारत से तुलना की जाए तो भारत में महज एक से दो फीसदी लोग ही तलाक लेते हैं। अब सवाल यही है कि क्या तलाक जैसे सामाजिक मुद्दे और मेंटल हेल्थ, डिप्रेशन को हैप्पीनेस से नहीं जोड़ा जाएगा?
क्या होनी चाहिए भारत की रैंकिंग?
कई भारतीय विश्लेषकों और नेताओं का मानना है कि हैप्पीनेस इंडेक्स जैसे सूचकांक भारत की प्रगति को कम आंकते हैं और इसे बदनाम करने की कोशिश करते हैं। ये रैंकिंग पश्चिमी मापदंडों पर आधारित है, जो भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक ताकत जैसे पारिवारिक संबंध, धार्मिक आस्था को नजरअंदाज करता है। इसके अलावा दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन फिर भी इसे इंडेक्स में शामिल नहीं किया। SBI Ecowrap की एक रिपोर्ट ने 2023 में दावा किया कि भारत की रैंकिंग 126 की जगह 48 होनी चाहिए थी, क्योंकि इंडेक्स वास्तविक प्रगति को नजरअंदाज करता है।