नई दिल्ली:
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बड़ा प्रशासनिक फैसला लेते हुए 194 राजनीतिक नियुक्तियों को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। ये नियुक्तियां पिछली आम आदमी पार्टी सरकार में हुई थीं। जिन लोगों को सरकार ने पद से हटाया है उनमें आम आदमी पार्टी के कई प्रमुख नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी सहयोगी शामिल हैं।
इन संस्थाओं में लोगों की नियुक्तियां रद्द
दिल्ली सरकार ने 17 संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्तियों रद्द कर दिया है। इन संस्थाओं में दिल्ली जल बोर्ड, पशु कल्याण बोर्ड, दिल्ली हज कमेटी, तीर्थयात्रा विकास समिति, उर्स समिति, हिंदी अकादमी, उर्दू अकादमी, साहित्य कला परिषद, पंजाबी अकादमी और संस्कृत अकादमी शामिल हैं।
AAP के कौन-कौन से बड़े चेहरे शामिल?
2024 में AAP सरकार ने पार्टी विधायक पवन राणा को दिल्ली जल बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था। वहीं विधायक विनय मिश्रा उपाध्यक्ष बने थे। AAP नेता जितेंद्र तोमर की पत्नी प्रीति तोमर को सदस्य बनाया गया था। पूर्व आप विधायक अब्दुल रहमान और हाजी यूनुस को दिल्ली हज कमेटी में जगह मिली थी। आप विधायक जरनैल सिंह पिछली सरकार में पंजाबी अकादमी के उपाध्यक्ष थे। इसके अलावा पूर्व एमएलए अजेश यादव को कृषि विपणन बोर्ड का अध्यक्ष और आदिल अहमद खान को उपाध्यक्ष बनाया गया था। सूत्रों के अनुसार इन सभी के पद अब छिन गए हैं।
इसके साथ ही आप सरकार ने पूर्व पर्यावरण मंत्री गोपाल राय, मैथिली-भोजपुरी अकादमी के उपाध्यक्ष संजीव झा जैसे आप के बड़े चेहरे भी इस लिस्ट में शामिल हैं। वर्तमान दिल्ली सरकार के सूत्रों का कहना है कि ये नियुक्तियां राजनीतिक थीं। इनका मकसद पिछली सरकार के पार्टी नेताओं को फायदा पहुंचाना था। इसलिए, इन्हें रद्द करना जरूरी था।
सरकार बनते ही सीएम ने किया था रिव्यू
सीएम रेखा गुप्ता ने फरवरी 2025 में दिल्ली की कमान संभालने के बाद से ही पूर्ववर्ती AAP सरकार की नीतियों और नियुक्तियों की समीक्षा शुरू की थी। सरकार का दावा है कि ये नियुक्तियां गैर-कानूनी और पक्षपातपूर्ण थीं, जिन्हें बिना उचित प्रक्रिया के लागू किया गया था। सरकार का कहना है कि दिल्ली की जनता के हित में हमने यह कदम उठाया है। प्रशासन में केवल योग्यता और पारदर्शिता को प्राथमिकता दी जाएगी।
क्या होगा फैसले का असर?
यह फैसला दिल्ली की सियासत में नया तनाव पैदा करेगा। बीजेपी और आप के बीच पहले से ही तल्ख रिश्ते और गहरे हो सकते हैं। यह कदम बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके तहत वह दिल्ली में अपनी प्रशासनिक पकड़ मजबूत करना चाहती है।